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शुक्रवार, 30 अप्रैल 2010

क्षणिकाएं

तेरा चहकना
महकना ,मचलना
खिलखिलाना 
कुछ यूँ लुभाता है
जैसे कोई नदिया तूफानी 
सागर के सीने पर
अठखेलियाँ कर रही हो 

तेरे पहलू में 
सिर रखकर
सुकून पाना
अब किस्मत नहीं
तुझे याद रखना
या भूल जाना
अब बस में नहीं


दीदार तेरा हो 
अक्स मेरा हो
रूह तेरी हो
जिस्म मेरा हो
नींद तेरी हो
ख्वाब मेरा हो
मौत मेरी हो जिसमें
वो गोद तेरी हो 


नज़्म बना मुझे
कागज़ पर उतार मुझे
ख्वाहिश बना मुझे
नज़रों में बसा मुझे
तेरी चाहत का सिला बन जाऊँ
बस एक बार पुकार मुझे 


ख्वाबों के सूखे दरख्तों पर 
आशियाँ बनाया नहीं जाता
हर चाहने वाली सूरत को
दिल का दरवाज़ा दिखाया नहीं जाता 


तेरे ग़मों की दुनिया में
अश्क मेरे बहते हैं
दर्द के ये कुछ फूल हैं
जो काँटों पर ही सोते हैं

 

बुधवार, 21 अप्रैल 2010

अधूरे ख्याल

यूँ ही
भटकते- भटकते
कभी- कभी
अधकचरे , अधपके
अधूरे ख्यालात
दस्तक देते हैं
और फिर ख्यालों
की भीड़ में
खो जाते हैं
और हम फिर
उन्हें ख्यालों में
ढूंढते हैं
मगर कभी
खोया हुआ
मिला है क्या
जो मिल पाता
ये अधूरे ख्याल
क्यूँ अंधेरों में
खो जाते हैं
क्यूँ इतना तडपाते हैं
क्यूँ अधूरे ख्याल
अधूरे ही रह जाते हैं
भावनाओं में
क्यूँ नही
पलते हैं
शब्दों में
क्यूँ नही बंधते हैं
क्यूँ अधूरेपन की
पीर सहते हैं
शायद कुछ ख्यालों की
किस्मत अधूरी होती है
या अधूरापन ही
उनकी फितरत होती है

शनिवार, 10 अप्रैल 2010

कहा था ना .............२०० वीं पोस्ट

देखा 
कहा था ना
कभी मैंने 
एक वक़्त 
आएगा
जब तेरे 
अरमाँ जवाँ होंगे
 और मेरे
वक़्त की 
कब्र में 
तेरे ही हाथों 
दफ़न हो
चुके होंगे
उस वक़्त
कैसे , फिर से
जिंदा करेगा 
मृत जज्बातों को
 कहा था ना 
एक दिन 
आवाज़ देगा मुझे
जब तेरे अहसास 
जागेंगे तुझमें
जब अरमानो की
झिलमिलाती चादर
बह्काएगी तुझे 
जब ख्वाबों के 
अंकुर झूला 
झुलायेंगे तुझे 
तब आवाज़ 
देगा मुझे
मगर जिंदा लाशें भी
कहीं सुना करती हैं 
जिसके हर अहसास 
को तूने ही कभी
अरमानो की 
चिता पर राख़ 
किया था
और राख़ को भी
तूने ना सहेजने 
दिया था
फिर कैसे आज 
रिश्ते की राख़
ढूंढता है
अब किस नेह 
के बीज का 
अंकुरण करता है
मुरझा चुके हैं 
जो फूल
कितना ही नेह के 
जल से सींचो
फिर नहीं 
खिलने वाले
कहा था ना
मौसम बेशक 
बदलते हैं
मगर जिस 
गुलशन को 
अपने हाथों 
उजाडा हो
वहाँ बसंत 
नहीं आता
पतझड़ हमेशा 
के लिए 
ठहर जाता है
कहा था ना
वक़्त किसी का 
नहीं होता
अब लाख 
सदाएँ भेज
गया वक़्त
लौट कर 
नहीं आता
 

बुधवार, 7 अप्रैल 2010

मन का पंछी

ना जाने 
वो कौन सी 
बंदिश है
जिसे तोड़ 
नहीं पाता
ये मन 
पंछी- सा
क़ैद में 
फ़डफ़डाता
उड़ना चाहकर 
भी उड़ नहीं पाता
सिसकता 
तड़पता 
मचलता
पल- पल
मगर फिर भी
उड़ने की चाहत
ना जाने 
कौन से गर्त
में दब गयी
किस खोह में
छुप गयी
और अपने 
पिंजरे के 
मोह में 
क़ैद पंछी 
मोह की बंदिशें
ना तोड़ पाता है
और यूँ ही
सिसक- सिसक कर
दम तोड़ जाता है

शनिवार, 3 अप्रैल 2010

यादों का विकल्प

यादों की कहानी 
यादों के फ़साने 
हर दिल ने गाये
हर दिलजले ने
जीने का सबब बनाया
यादों का ही 
कफ़न सजाया
किसी ने खुद को 
नशे में डुबाया
तो किसी ने 
ज़िन्दगी को 
कर्मभूमि बनाया
मगर यादों से 
कभी बच ना पाया 
दिल-ओ-दिमाग को
यादों की गिरफ्त से
ना कोई छुड़ा पाया
 और कभी कोई ना
ढूंढ पाया
यादों का विकल्प
चाहे कितना ही 
अंधेरों में छुपाया
दिल की तहों में
लाख दबाया
मगर फिर भी
कोई ना कोई याद
किसी ना किसी 
कोने से कब , कैसे
दस्तक दे ही जाती है
फिर यादों को 
कहाँ दफ़न करे कोई
और कैसे 
यादों के विकल्प 
ढूंढें कोई