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शुक्रवार, 17 जनवरी 2014

पीठ पर सदियों को लादे ……अपनी माटी पर

साहित्य और संस्कृति की मासिक ई-पत्रिका अपनी माटी के जनवरी अंक में प्रकाशित मेरी  कवितायें 




पीठ पर सदियों को लादे 
आखिर कितना चल सकते हो 
झुकना लाज़िमी है एक दिन 
तो बोझ थोड़ा कम क्यों नहीं कर लेते 
या हमेशा के लिए उतार क्यों नहीं देते 
और रख लो एक सलीब 
आने वाले कल की 
पीठ की दु:खती रगों को 
कुछ तो सुकून मिलेगा 

आगे ऊपर दिये गये लिंक पर पढिये ।

4 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

कभी केवल अपने में ही क्यों न खो जायें?

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

वाह॥ सुंदर !!

Anurag Choudhary ने कहा…

सुन्दर प्रस्तुति ।

Anju (Anu) Chaudhary ने कहा…

वाह बहुत खूब