tag:blogger.com,1999:blog-2962073777377545256.post6610746087401981921..comments2024-02-09T10:28:01.965+05:30Comments on ज़ख्म…जो फूलों ने दिये: vandana guptahttp://www.blogger.com/profile/00019337362157598975noreply@blogger.comBlogger5125tag:blogger.com,1999:blog-2962073777377545256.post-15895067400452607292009-03-05T21:44:00.000+05:302009-03-05T21:44:00.000+05:30न जला सकी प्यार के दिए कभीइस डर से की अंधेरे और न ...न जला सकी प्यार के दिए कभी<BR/>इस डर से की अंधेरे और न बढ़ जायें<BR/>...बहुत अच्छी पंक्तियां.<BR/>बधाई.<BR/>एक शेर याद आया-<BR/>खुद अपनेआप में ये कायनात डूब गई,<BR/>खुद अपनी महक से ये जगमगा के उभरेगी.मुंहफटhttps://www.blogger.com/profile/08368420570289784107noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2962073777377545256.post-51801755557326278302009-03-05T20:19:00.000+05:302009-03-05T20:19:00.000+05:30जिसने तम को ही देखा हो,वो उज्वल किरणों से डरता।इक ...जिसने तम को ही देखा हो,<BR/>वो उज्वल किरणों से डरता।<BR/>इक आफताब की आशा में,<BR/>उसको घुटकर जीना पड़ता ।डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'https://www.blogger.com/profile/09313147050002054907noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2962073777377545256.post-38983775625266730112009-03-05T19:21:00.000+05:302009-03-05T19:21:00.000+05:30gehre bhav sundar rachanagehre bhav sundar rachanamehekhttps://www.blogger.com/profile/16379463848117663000noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2962073777377545256.post-85144978765726475512008-09-12T20:15:00.000+05:302008-09-12T20:15:00.000+05:30"मेरे आँगन में न उतरी धूप कभीतब कैसे जानूं उसकी रौ..."मेरे आँगन में न उतरी धूप कभी<BR/>तब कैसे जानूं उसकी रौशनी है क्या"<BR/><BR/><BR/>वाह, क्या बात है!<BR/><BR/><BR/><BR/>-- शास्त्री जे सी फिलिप<BR/><BR/>-- समय पर प्रोत्साहन मिले तो मिट्टी का घरोंदा भी आसमान छू सकता है. कृपया रोज कम से कम 10 हिन्दी चिट्ठों पर टिप्पणी कर उनको प्रोत्साहित करें!! (सारथी: http://www.Sarathi.info)Shastri JC Philiphttps://www.blogger.com/profile/00286463947468595377noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2962073777377545256.post-55102548708329120012008-09-12T15:55:00.000+05:302008-09-12T15:55:00.000+05:30मेरे आँगन में न उतरी धूप कभीतब कैसे जानूं उसकी रौश...मेरे आँगन में न उतरी धूप कभी<BR/>तब कैसे जानूं उसकी रौशनी है क्या<BR/>न बुन सकी कभी तमन्नाओं के धागे<BR/>न जोड़ सकी यादों के तार कभी<BR/>न जला सकी प्यार के दिए कभी<BR/>इस डर से की अंधेरे और न बढ़ जायें<BR/>sunder chitr khincha hai aapneMANVINDER BHIMBERhttps://www.blogger.com/profile/16503946466318772446noreply@blogger.com