जब चाँद से आग बरसती हो
और रूह मेरी तडपती हो
मुमकिन है तुम आ जाओ
जब आस का दिया बुझता हो
और सांस मेरी अटकती हो
मुमकिन है तुम आ जाओ
जब सफ़र का अंतिम पड़ाव हो
और आँखों मेरी पथरायी हों
मुमकिन है तुम आ जाओ
अच्छा चलते हैं अब
सुबह हुयी तो
फिर मिलेंगे
36 टिप्पणियां:
वक्रोक्त में लिखी गई रचना का सौन्दर्य देखते ही बनता है!
सुन्दर रचना, साधुवाद.
इस रचना की संवेदना और शिल्पगत सौंदर्य मन को भाव विह्वल कर गए हैं। बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
आज की कविता का अभिव्यंजना कौशल
बहुत ही बेहतरीन रचना है...
खुदा करे कि कयामत हो और तू आये।
बहुत ही सुन्दर और नाज़ुक अभिव्यक्ति। बधाई।
इंतज़ार इंतज़ार इंतज़ार .............
जी हाँ,मुमकिन हैं.......................
वंदना जी,
क्या बात है .....चाँद से आग बरसा दी.....आखिरी लाइन बिलकुल भी अच्छी नहीं लगीं.....एकदम अलग सी हो गयीं|
ओह ऐसी विरह कि ...चाँद भी आग बरसाने लगा ...चाँदनी जलाने लगी ....
जल्दी सुबह हो जो मिलने की आस बंधे ...और सूरज शीतल लगे
उम्मीद पर ही दुनिया कायम है।
Anokhee soch
badhaiyan
subah zarur hogi ...
बेहतरीन!
सादर
सुन्दर रचना.. काफी दिनों बाद कुछ पोस्ट किया आपने..
रजनी चालीसा का जप करने ज़रूर पधारें ब्लॉग पर :)
आभार
वो सुबह कभी तो आयेगी ....
आशा पर आसमान टिका है और कितनी जिन्दगी इसी आशा के सहारे चल रही हैं. उसको बहुत सुंदर शब्दों में आपने व्यक्त किया है.
बेहद संवेदनशील रचना। आभार
aash ki saans me hi to zindgi atki hai!
vyakul rachna.
bahut sundar.
"aaye ya nahi????"...:)
kitna pyar hai, aapke shabdo me...
विरह व्यथा को कितने सुंदर शब्दों में ढाला है आपने!....मिलन की आस कितनी बलवती है!....
बेहतरीन रचना है...वंदना जी
उम्मीद के सहारे जीने का मज़ा ही कुछ और है
एक अच्छी भली कविता ने अंत में दम तोड़ दिया।
अच्छा है जी
इन्तजार,,
सुबह हुई तो फिर मिलेगे..... ख़ूबसूरत!
mumkin hai tum aa jao......
bada khoob andaaz hai....khoobsurat nazm :)
dekho sab to aa gaye hain ....ab aur kiska intzar hai ...bata to do :)
वाह ...वाह...वाह...
वंदना जी, बहुत प्यारी कविता है। बधाई।
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प्रेत साधने वाले।
रेसट्रेक मेमोरी रखना चाहेंगे क्या?
वंदना जी इसे संयोग ही कहेगें की आपकी "मुमकिन है तुम आ जाओ" मुझे अपनी " अब तो प्रियतम आ जाओ " के काफी करीब लगी जहाँ आपने कहा सुबह हुई तो फिर मिलेगे..
और हमने कहा
सूरज भी आने को है
अब तो प्रियतम आ जाओ ......
बहुत अच्छी रचना
आपसे भी एक जुडाव सा महसूस होने लगा है
जब चांद से आग बरसती हो
और रूह मेरी तड़पती हो
मुमकिन है तुम आ जाओ।
मन के कोमल भावों को अभिव्यक्त करती अति सुंदर रचना।
vandna ji bahut pyari kavita hai... isi liye isey mai dubara charchamanch me rakh rahi hoon.. aapkaa abhaar..
बहुत ही खुब लिखा है आपने......आभार....मेरा ब्लाग"काव्य कल्पना" at http://satyamshivam95.blogspot.com/ जिस पर हर गुरुवार को रचना प्रकाशित नई रचना है "प्रभु तुमको तो आकर" साथ ही मेरी कविता हर सोमवार और शुक्रवार "हिन्दी साहित्य मंच" at www.hindisahityamanch.com पर प्रकाशित..........आप आये और मेरा मार्गदर्शन करे..धन्यवाद
sundar.....
wo sabah kabhi to aayegee.
क्या प्रवाह है इस कविता में.. लहरों की तरह बलखाती कविता.. भावों का रेला है... सुन्दर कविता
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