बस यूँ ही कभी कभी
तुम ख्यालों में उतर जाते हो
हे ........कैसे आ जाते हो
और सारी कायनात धड़का जाते हो
जबकि जानते हो
मैंने तुम्हें कभी बुलाया नहीं
कभी आवाज़ नहीं दी
कभी चाहा भी नहीं
फिर भी ना जाने कैसे
तुम गाहे बगाहे अपनी
उपस्थिति दर्शा जाते हो
हवाओं के पंखों पर
पैगाम भेजने का रिवाज़
कभी मैंने निभाया नहीं
तुम्हारी नशीली नीली आँखों में
तैरता गुलाबी ख्वाब
कभी आकार ले पाया नहीं
वो देवदार के तले
तुमने भी कभी
कोई गीत गया नहीं
और मेरी छत की मुंडेर पर भी
कभी मेरा दुपट्टा लहराया नहीं
जो तुम्हें इशारा दे देता
फिर बताओ तो ज़रा
कैसे तुम बिना दस्तक के
ख्वाबों की तस्वीर बन जाते हो
कैसे तुम इन्द्रधनुषी रंगों सा
मेरी आँखों में उतर जाते हो
और सारे जहान को तुम्हारे होने का
आभास करा जाते हो .............
ये आँखों का दर्पण झूठ क्यों नहीं बोलता ...........कभी कभी बस यूँ ही
28 टिप्पणियां:
एक तो आंख नशीली और ऊपर से नीली भी
वाह
रंग गोरा या गंदुमी हुआ तो और भी फबेगी।
Nice.
चाहने न चाहने से क्या होता है ...
ये है यादोँ का सिल-सिला यूँ ही रवां होता है ....
शुभकामनाएँ!
Bhavapoorn rachana ... abhaar
ये आंखों का दर्पण झूठ क्यों नहीं बोलता ...
वाह बहुत खूब ...
अद्भुत प्रस्तुतीकरण भावो का....
बहुत सुन्दर!
कुँवर जी,
मन के सुंदर ख्याल......
कोमल भावों की शाब्दिक अभिव्यक्ति।
यही ख्याल तो दुनिया का सबसे बड़ा चमत्कार है।
दर्पण झूठ ही तो नहीं बोलता .... सुंदर प्रस्तुति
दिल के भावों की बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!...आभार!
प्रेमिल मन की कोमल भावनाएं। प्रेम की गरिमा अव्यक्त में ही है।
पूरी कायनात की धड़कन .... बहुत सुन्दर
जो बिन बुलाए आये, बिन कहे सुन ले... वही तो है, बहुत सुंदर भावों को व्यक्त करती नज्म..
कभी कभी यूँ ही बहुत कुछ हो जाता है.
सुन्दर प्रस्तुति.
सुन्दर कविता...
वाह स्वप्निल सा अहसास खुबसूरत पोस्ट है दी।
बहुत सुंदर भाव वंदना जी..आभार
सुन्दर प्रस्तुति ।।
priya ne kabhi devdar ke neeche koi geet nahi gya...preysi ne hawa me dupatta nahi lahrya..phir bhee ye dastak rahsymayee hai...isiliye mohabbat kabhi jaadu lagtia hi..kabhi khuda..bahut hee acchi rachna ke liye aapko sadar badhayee...sadar amantran ke sath
बस यूँ ही कभी-कभी.. कोई तो याद आ ही जाता है..
बहुत खूब.. खूबसूरत रचना..
wah lajbab prastuti bahut bahut abhar vandana ji.
ये आँखों का दर्पण झूठ क्यों नहीं बोलता ...........कभी कभी बस यूँ ही
बड़ी प्यारी सी कविता है...
आंखों का दर्पण .. आंख से मन तक .. और मन का दर्पण तो कभी मैला होता ही नहीं, सुना नहीं आपने मन ही देवता मन ही ईश्वर मन से बड़ा न कोय, ... तोरा मन दर्पण कहलाए ...
बहुत खूब वंदना जी ..
शुभकामनायें आपको !
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
आपका श्रम सराहनीय है!
नशीली नीली आँखें , गुलाबी खयाल
आँखों में इन्द्रधनुष ....
होली का मौसम तो कब का बीता , आपकी कविता में अब तक छाया है !
सुन्दर !
अनूठे शब्द और अद्भुत भाव से सजी इस रचना के लिए बधाई स्वीकारें...
नीरज
कैसे तुम बिना दस्तक के ख्वाबों की तस्वीर बन जाते हो कैसे तुम इन्द्रधनुषी रंगों सा मेरी आँखों में उतर जाते हो और सारे जहान को तुम्हारे होने का आभास करा जाते हो
बहुत ही कोमलता सेऔर कुशलता से रंग उकेरे हैं
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