रश्मि जी ने इस लिंक पर ( http://paricharcha-rashmiprabha.blogspot.in/2012/09/blog-post.html)
ये परिचर्चा लगाई । सब जगह हम भी पढ ही रहे हैं कि क्या हो रहा है और सब पढ रहे हैं कोई व्यथित है तो कोई खुश , किसी को भडास निकालने का मौका मिल रहा है तो किसी को पंगे लेने का तो किसी को आत्मप्रचार का …………सभी तरह के लोग सभी तरह की बातें ………ये तो होगा ही मगर ये परिचर्चा पढकर मुझे जो लगा वो मैने इस प्रकार लिख दिया……
आयोजन हो या लेखन आलोचना का तो चोली दामन का साथ रहा है और रहेगा इससे बचा नही जा सकता ।जब निज़ी जीवन मे हम बच नही पाते तो फिर यहाँ तो वैसे भी राजनीति होती है सभी जानते हैं बेशक लेखन उम्दा हो तब भी सम्मानित नही हो पाता और कहीं सिर्फ़ जुगाड ही सम्मान पा जाता है उसी तरह आयोजनों का हाल होता है तो ये सब चलता रहा है और चलता रहेगा क्योंकि लोग ना कल परिपक्व थे ना आज हैं और ना ही आगे होंगे । मैने तो इसीलिये जब रविन्द्र जी ने इस आयोजन के बारे मे पोस्ट लगाई थी तभी एक कविता लगा दी थी क्योंकि पहले भी यही सब हुआ और आज भी मगर उसमे भी लोगों को लगा जैसे गलत कह दिया जबकि जो यहाँ की रीत है वो ही लिखी और देखिये वो ही होता रहा और हो रहा है ………(अब मुझे अन्तर्यामी मत कह देना ) :)
हर चीज़ के दो पहलू होते हैं अच्छे भी बुरे भी फिर हर किसी का नज़रिया भी अलग होता है तो हम किसी को कुछ कहने के हकदार नही क्योंकि जो एक की नज़र मे अच्छा है वो दूसरे की नज़र मे नही है …………फिर क्या जरूरी है जिस नज़र से हम देखें उसी नज़र से सारी दुनिया देखे ? इसलिये जो हो रहा है होने दीजिये और मस्त रहिये दुनिया ऐसे ही चलती है कुछ के लिये दुनिया सम्मान पर ही टिकी है तो कुछ के लिये अपमान पर तो कुछ के लिये सिर्फ़ लेखन पर …………अलग अलग नज़रिये और अलग अलग सोच …………आखिर कब तक बहस होगी और क्या हल निकलेगा ? इन बातों का ना ओर है ना छोर और ना ही हल ।
सोचने वाली बात सिर्फ़ इतनी है कि क्या सम्मान पाने से ही इंसान बडा कहलाता है जो इतना हल्ला मचाया जाये ?
या इस तरह के आयोजन कोई बदलाव लाते हैं ज़िन्दगी मे ?
क्या इस तरह प्राप्त सम्मान से ही प्रशंसक बढते हैं ?
अरे जो आपको पसन्द करते हैं वो हमेशा ही करेंगे और जो नही करते वो नही करेंगे तो बेकार मे वक्त की बर्बादी क्यों की जाये?
तो निष्कर्ष सिर्फ़ यही है ………
मस्तराम मस्ती मे आग लगे बस्ती मे इस तरह अपने कर्म मे लगे रहो
और दुनिया को अपने हिसाब से जीने दो ………ये दुनिया ना बदली है ना बदलेगी तो क्यों हम खामख्वाह मे अपना वक्त बर्बाद करें और अपने कर्म से च्युत हों । अपने समय का सदुपयोग ही वास्तव मे सबसे बडा धन संचय है और अपने पाठकों का प्रेम सबसे बडा सम्मान यदि ये बात सब समझ लें तो सारी बहसें निर्रथक हो जायें ।
ये सिर्फ़ मेरे विचार हैं इनका किसी से कोई लेना देना नही है ना ही किसी पर कोई कटाक्ष है ना ही बहस ………पसन्द आयें तो भी वाह वाह ना आयें तो भी वाह वाह :))))))))))
12 टिप्पणियां:
वाह वाह :)
सब पढ रहे हैं कोई व्यथित है तो कोई खुश ,
किसी को भडास निकालने का मौका मिल रहा है
तो किसी को पंगे लेने का तो किसी को आत्मप्रचार का .... !!
बहुत सुन्दर, सार्थक प्रस्तुति!
बिलकुल सही .... वाह वाह
वाह :) सौ बात की एक बात कि लाख सर फुटौव्वल हो, अंत में सब अपने-अपने काम में लग जाते हैं और ऐसा ही होना भी चाहिए. और चाहे जो भी हो पर्सनल कमेंट्स नहीं होने चाहिए.
आपकी टिप्पणी पढ़कर मैं भी परिचर्चा में यह कहने जा रहा हूं-
अंग्रेज़ी सरकार राय बहादुर और ख़ान बहादुर के खि़ताब दिया करती थी। हिन्दुस्तानी सरकार भी हर साल सौ पचास ब्लॉगर्स को ‘ब्लॉग बहादुर‘ के खि़ताब दे दिया करे तो सब अपनी सिटटी पिटटी गुम और बोलती बंद करके ख़ुद ही बैठ जाएंगे।
इंडी ब्लॉगर एग्रीगेटर तो ब्लॉगर्स से सामान भी बिकवाता है। आप कहते हैं कि ब्लॉगिंग का अधिकार नहीं है।
अधिकार कैसे नहीं है जी ?
फिर कंपनियों का सौदा कौन बेचेगा ?
ये इश्क़ नहीं आसां
की तर्ज़ पर कहा जा सकता है
ये ब्लॉगिंग नहीं आसां
सत्य वचन
क्या सम्मान पाने से ही इंसान बडा कहलाता है ...
nahin...bilkul nahin ...
वाह..वाह...सही कहा आपने
आपकी बाते पसंद आई है
इसलिए वाह वाह:-)
पसन् आई इसलिए वाह वाह :-)
आप तो सच में अन्तर्यामी हैं वन्दना जी.
दिल की सब बातें जानती हैं.
आपको मालूम है कि आपकी बात या तो
पसंद की जायेगी,या नही की जायेगी.
इसीलिए दोनों तरफ की वाह! वाह!)))))
हाँ, मुझे तो आपकी बात पसंद आई.
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