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गुरुवार, 21 अगस्त 2014

मुस्कुराहटों पर से दर्द के लिबास ही उतार दे

कहकहों के सफ़र की जमीन ना पूछ 
दलदली मिट्टी मे धंसे पाँव कब आगे बढे हैं 
मै ना बढा ना सही मगर 
उदासियों के कम्बल तू भी ना ओढ 
हो सके तो इतना कर 
मेरे पाँव के नीचे से ये दलदल निकाल दे 
दे दे मुझे जमीन का एक टुकडा ही 
जिस पर खडे हो आसमाँ निहार सकूँ
कुछ देर मुस्कुरा सकूँ 
कर्ज़ उतारने के लिये 
एक करम इतना ही कर दे .....ओ खुदा 
मुस्कुराहटों पर से दर्द के लिबास ही उतार दे 

7 टिप्‍पणियां:

Maheshwari kaneri ने कहा…

बहुत सु्न्दर प्रस्तुति...

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

कल 24/अगस्त/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
धन्यवाद !

Onkar ने कहा…

सुंदर

Pratibha Verma ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति।

रश्मि शर्मा ने कहा…

Dard ka libas...bahut sundar abhiwakyti

Anita ने कहा…

आमीन...मुस्कुराहटें मुबारक हों..

Smt. Mukul Amlas ने कहा…

सुंदर प्रस्तुति ।