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रविवार, 7 सितंबर 2014

कोई महबूब होता तो


कोई महबूब होता 
तो झटकती जुल्फों से 
गिरती बूंदों को सहेज लेता 

कोई महबूब होता 
तो आँखों में ठहरे 
सागर को घूँट भर पी लेता 

कोई महबूब होता 
तो होठों पर रुकी बातों की 
मुकम्मल इबादत कर लेता 

कोई महबूब होता 
तो अदाओं की शोखियों से 
एक नगमा बुन लेता 

कोई महबूब होता 
तो दर्द की जकड़नों से 
मोहब्बत की रूह आज़ाद कर देता 

कोई महबूब होता 
तो रेशम के पायदानों पर 
गुलाब बिछा सिज़दे किया करता 

कोई महबूब होता 
तो चौखट पर खड़ा हो 
मोहब्बत के मुकम्मल होने तक आमीन किया करता

कोई महबूब होता 
तो चेनाब के पानी से 
मोहब्बत के घड़े भरा करता 

दर्द के गुबार हों 
ज़ख्मों के मेले 
ग़मों के शहरों में 
नहीं लगा करते मह्बूबों के मेले 
ये जानते हुए भी 
जाने क्यों रूह बावस्ता हुए जाती है 
इक अदद महबूब की ख्वाहिश में सुलगे जाती है 
उफ़ ………… मोहब्बत 
क्यों ठहर जाती है तेरी चाहत 
अधूरी प्यास के अधूरे तर्पण सी  
कोई महबूब होता तक ही …… 
 

8 टिप्‍पणियां:

अजय कुमार झा ने कहा…

वाह जी वाह , बरसते मेघ और मुहब्बत राग ...अहा :) गजब जुगलबंदी साधी आपनी :) :)

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

badhiya !

vandana gupta ने कहा…

@अजय कुमार झा जी क्या करें मोहब्बत होती ही पहाडी घटा सी है कब बरस जाये कौन जानता है , बस भीगने को तैयार रहना चाहिए :)

अजय कुमार झा ने कहा…

हा हा हा दोस्त जी , खूब भीगें और हमें भी अपनी स्नेहिल बूंदों की बौछार से सराबोर होने दें ...बहुत बहुत शुभकामनाएं आपको

Anita ने कहा…

कोई नहीं खुद को बनना होगा खुद का महबूब और तब सारी कायनात बन जाती है महबूब...

RAJESH CHAUDHARY ने कहा…

khoo6surat vichaar..

RAJESH CHAUDHARY ने कहा…

khoo6surat vichaar..

Unknown ने कहा…

Koi mahboob hota to ......waah kya baat hai..sunder !!