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बुधवार, 24 फ़रवरी 2016

असुरक्षा की भावना

हम खुद कुछ कर नहीं सकते
करना आता जो नहीं
मगर यकीन जानिये
जोड़ तोड़ में माहिर हैं
इसकी टोपी उसके सिर
करना हमारी पुरानी फितरत है

सत्ता परिवर्तन हो या निष्कासन
बाएं हाथ का खेल है हमारे लिए
माहिर हैं हम शतरंजी चालों में
जब भी कोई पैदल चलने की कोशिश करे
अपनी ढाई चालों से कर धराशायी
जीत ही लेते हैं बाजी

हम आत्ममुग्ध वर्णसंकर प्रजाति हैं
जो अपने रूप सौन्दर्य से कभी
बाहर ही नहीं आ पाते
तो भला कैसे जाने दुनिया का सौदर्य

हमें चाहिए सुरक्षित ठिकाने
इसीलिए
असुरक्षा की भावना से ग्रस्त हम
कभी नहीं लांघ पाए सफलता के पहाड़

चलिए कीजिये हमारी जय जयकार
यूँ कि
आज के वक्त की आवाज़ है ये 
 
तीलियों को मिटटी के तेल में डुबाकर ही आग लगाने का चलन है आजकल




बुधवार, 17 फ़रवरी 2016

न देशभक्त न देशद्रोही

चलिए देशभक्ति शब्द को फांसी दे दें
या कर दें बनवासी
और देशद्रोह शब्द को आदर सम्मान दे दें
शायद आज इन शब्दों की बस इतनी सी है पहचान

वो और वक्त था
जब देशभक्ति एक जज़्बा हुआ करता था
ये और वक्त है
जब देशद्रोह एक जज़्बा हुआ करता है 
 
फूट डालो और शासन करो 
की कभी बिसात बिछायी जाती थी 
क्या ऐसा नहीं लगता 
एक बार फिर वो ही चक्रव्यूह रचा गया 
देशद्रोह और देशभक्ति के मध्य खड़ा किया गया

क्या हुआ है
देश बदला या समय या सोच
जरा सोचिये
कुछ भी कहने या करने से पहले
उत्तर तुम स्वयं जानते हो
फिर भी
अपने ही देश को धिक्कारते हो

न ,न , नहीं कहूँगी कुछ भी तुम्हें
न देशभक्त न देशद्रोही
बस तुम खुद का खुद आकलन कर लेना
देशभक्ति और देशद्रोह शब्दों की
थोड़ी व्याख्या कर लेना
अंतर जब समझ जाओ
देश के प्रति कुछ नतमस्तक हो लेना

मेरा देश तुम्हें माफ़ कर देगा ...........जानती हूँ बहुत सहिष्णु है ये

गुरुवार, 11 फ़रवरी 2016

कैसे करूँ नमन ?




शहीदों को नमन किया
श्रद्धांजलि अर्पित की
और हो गया कर्तव्य पूरा


ए मेरे देशवासियों
किस हाल में है मेरे घर के वासी
कभी जाकर पूछना हाल उनका


बेटे की आंखों में ठहरे इंतज़ार को
एक बार कुरेदना तो सही
सावन की बरसात तो ठहर भी जाती है
मगर इस बरसात का बाँध कहाँ बाँधोगे
कभी बिटिया के सपनो में झांकना तो सही
उसके ख्वाबों के बिखरने का दर्द
एक बार उठाना तो सही
कुचले हुए
अरमानों की क्षत-विक्षत लाश के
बोझ को कैसे संभालोगे?


कभी माँ के आँचल को हिलाना तो सही
दर्द के टुकड़ों को न समेट पाओगे
पिता के सीने में जलते
अरमानो की चिता में
तुम भी झुलस जाओगे


कभी मेरी बेवा के
चेहरे को ताकना तो सही
बर्फ से ज़र्द चेहरे को
एक बार पढ़ना तो सही
सूनी मांग में ठहरे पतझड़ को
एक बार देखना तो सही
होठों पर ठहरी ख़ामोशी को
एक बार तोड़ने की कोशिश करना तो सही
भावनाओं का सैलाब जो आएगा
सारे तटबंधों को तोड़ता
तुम्हें भी बहा ले जाएगा
तब जानोगे
एक ज़िन्दगी खोने का दर्द


चलो ये भी मत करना
बस तुम कुछ तो जिंदा खुद को कर लेना
मेरी बीवी मेरे बच्चे
मेरी माँ मेरे पिता
सबके चेहरे पर मुस्कान खिल जायेगी
जिस दिन शहादत के सही मायने तुम्हें समझ आयेंगे
और तुम
अपने घर में छुपे गद्दारों से दो - दो हाथ कर पाओगे 


पडोसी मुल्क जिंदाबाद के नारों
और आतंकवादी की मृत्यु के विरोध में
उठती आवाजों से
जिस दिन तुम्हारे कान फट जायेंगे
विद्रोह के बीज के साथ
देशभक्ति के बीज तुम्हारी नस्लों में बुब जायेंगे
मेरी शहादत आकार पा जायेगी
देश की मिटटी देश के काम आयी
सोच , मेरी रूह सही मायनों में
उस दिन सुकून पाएगी 


क्योंकि तुम
तब शायद समझ पाओगे
कर्तव्य सिर्फ़ नमन तक नही होता
सिर्फ़ नमन तक नही होता....

शुक्रवार, 5 फ़रवरी 2016

पहाड़ भर सपने ... अंजुरी भर प्यार

तुम्हारे
अंजुरी भर प्यार में
मैंने
पहाड़ भर देख डाले सपने

पहाड़
जिन्होंने नहीं सीखा हिलना
अडिग रहना है
जिनकी नियति

अंजुरी
जिसे कभी न कभी
खुलना ही था
हथेली सीधी करते हुए

फिर भी
जानते हुए इस सत्य को
तुम्हारे 

अंजुरी भर प्यार में
मैंने
पहाड़ भर देख डाले सपने