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मंगलवार, 31 मई 2016

मेरी मोहब्बत की दीवानगी ...

तेरे पुकारने और मेरे आने के बीच
देख सदियाँ जाने कहाँ बह गयीं
कोई पुल बचा ही नहीं
जिस पर पाँव रख तुझ तक पहुँच पाती मेरी सदा

जानते हो
यहाँ हवाएं नहीं करतीं सरगोशी
जो भेज देती पैगाम उनके परों पर लिख

सुनो
शब्दातीत हो चुकी है हमारी मोहब्बत
फिर किस भाषा में व्यक्त करूँ

मगर
तुमने दी है सदा
पुकारा है मोहब्बत को
दो बोल सुनने की ख्वाहिश से
देख बिना माध्यम के भी पहुंची है मुझ तक पुकार
तो क्या तुझ तक नहीं पहुँचेगा मेरा पैगाम


तेरी ख्वाहिश के सदके
मैंने मोहब्बत को आवाज़ दे दी
क्या पहुंची तुम तक ?
देख फिजाओं में नर्तन करते संगीत की गुंजार
बस इसी में तो हूँ मैं
तू कहे जा
मैं सुन रही हूँ
क्यूंकि
मोहब्बत किसी प्यास की मोहताज नहीं होती ...

सुन रहे हो न  .. . बतिया रहे हो न .......ओ मेरे दरवेश

तेरी कोई इच्छा अधूरी रह जाए ........क्या संभव है ?

बस यही है मेरी मोहब्बत की दीवानगी ...

रविवार, 8 मई 2016

मदर्स डे ?

कहने को आज मदर्स डे है और कोशिश करेंगे सब खुद को माँ का खैरख्वाह सिद्ध करने की लेकिन क्या हम यकीन से कह सकते हैं कि कहीं ऐसा नहीं हो रहा होगा कि कहीं कोई माँ बेघर हो रही हो , बेटे उसे रखने को राजी न हो फिर चाहे सब कुछ उसी माँ का दिया हो जिसने उन्हें जन्म दिया , ज़िन्दगी भर जिनकी ख़ुशी के लिए सौ सौ खून के आंसू रोते रही लेकिन उफ़ नहीं की , सास , पति आदि सबके जुल्म सहती रही सिर्फ इसलिए कि एक दिन बड़े होकर ये बच्चे ही उसकी सबसे बड़ी पूँजी होंगे और वो ही बच्चे सिर्फ अपनी खुशियों के लिए एक माँ को आसरा न दे पायें , दो वक्त की रोटी न दे पायें , रहने को छत न दे पायें ............ क्या संभव नहीं कहीं आज ही के दिन ऐसा भी हो रहा हो ?

आज के समय में यदि शिक्षित और उच्च पद पर होते हुए भी यदि बेटों में इतनी भी संवेदना न बची हो क्या फायदा उस शिक्षा का . क्या फायदा उन मूल्यों का जो हमारे देश की , हमारी संस्कृति की धरोहर हैं ?

तभी ये कहने को दिल करता है :

ये कैसा चलन आया ज़माने का
सुनता है घुटती हुई चीखें
फिर भी सांस लेता है
दो शब्द अपनेपन के कहकर
कर्तव्य की इतिश्री कर लेता है

काश ! उसने भी ऐसा किया होता
तेरी पहली ही चीख को
ना सुना होता
बल्कि अनसुना कर दबा दिया होता
फिर कैसे तेरा वजूद आज
सांस ले रहा होता
मगर इक उसने ही
वो दिल पाया है
जिसमे सिर्फ प्यार ही प्यार समाया है
जिसने ना कभी
अपनी ममता का
मोल लगाया है
सिर्फ तुझे हंसाने की खातिर
अपना लहू बहाया है
अपनी साँस देकर
तेरा जीवन महकाया है
जन्म मृत्यु के द्वार तक जाकर
तुझको जीवनदान दिया है
ये तू भूल सकता है
बेटा है ना ............
मगर वो माँ है ............

पारदर्शी शीशों के पीछे
सिसकती ममता
सिर्फ आशीर्वाद रुपी
अमृत ही बरसाती है
जिसे देखकर भी तू
अनदेखा किया करता है
जिसे जानकर भी तू
अन्जान बना करता है
सिर्फ उसके बारे में
दो शब्द बोलकर
अपने कर्तव्यों से मुँह मोड़ सकता है
ऐसा तो बेटा सिर्फ
तू ही कर सकता है

क्योंकि
अपनी उम्र को तो शायद तूने तिजोरी में बंद कर रखा है ...........