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गुरुवार, 9 मार्च 2017

ये है सरकारी होली :)

सरकार आपको होली तक फ्री राइड करवाएगी फिर वो बस हो ऑटो टैक्सी या फिर मेट्रो क्योंकि यदि नोट लेकर निकले और किसी ने रंग भरा गुब्बारा मार दिया तो आपकी तो बल्ले बल्ले हो जाएगी न ........अब खाली जेब खाली हाथ निकालिए और काम पर चलिए ........होली है भई , सरकार को भी मौका चाहिए था रंग डालने का तो देखिये किस खूबी से डाला है .......अपने हाथ रंगे बिना रंग डालना कोई उनसे सीखे .......देखिये उन्हें पता है उनके नोट का रंग छूटता है अब यदि पानी में गीला हुआ और आपने रगड़ दिया और रंग हट गया तो जिम्मेदार कौन ? आप ही न , आप ही न ........देखिये सबका साथ सबका विकास यूँ ही नहीं होता उसके लिए खुद भी जिम्मेदार बनना होता है .......तो क्या साहेबान आप इतना सा उनका साथ नहीं दे सकते जो वो सीधे आपकी जेब पर डाका डालें और किसी के हलक से जुबान भी बाहर न निकले ........बहुत नाइंसाफी है ये , क्या हुआ जो वो रूप बदल बदल कर रंग डाल रहे हैं , आपकी जेब हलकी कर रहे हैं और रोज नए फरमान गढ़ रहे हैं ........आखिर माई बाप चुना है आपने उन्हें और देखिये माई बाप तो एक होते हैं , वो बदले थोड़े जाते हैं तो उनकी ज्यादती हो या मेहरबानी सहनी ही होगी .......अब ये क्या कम मेहरबानी है कि इस बार उन्होंने आपको पहले सूचित कर दिया . खुदा न खास्ता पहले की तरह २०००/५०० के नोट बंद करने की सूचना की तरह सूचित करते जब आप आधी होली खेल चुके होते तो भला क्या कर सकते थे आप ........है न मेहरबान .......अब देखो , तुम्हारे घर कोई बीमार पड़े या तुम्हारी ऐसी तैसी ही क्यों न हो रही हो , कुछ दिनों के लिए मरना जीना सब छोड़ देना कम से कम होली तक ........अरे क्या चार छः दिन ऐसा नहीं कर सकते .....बहुत जरूरी कहीं जाना है तो क्या अपनी ग्यारह नंबर की गाडी से नहीं जा सकते क्या हुआ जो १०-२० किलोमीटर पैदल चलना पड़ जाए , क्या हुआ जो कोई बुजुर्ग इसी चलने में दुनिया से ही निकल जाए ,ये तो होता रहा है पहले भी अब भी हो जायेगा तो क्या फर्क पड़ेगा......अब देखो बहुत ही जरूरत हो तो नोट की जगह वो कहते हैं कार्ड का प्रयोग करो तो क्या हुआ जो तुम्हारे पास कार्ड ही न हो , वो तो कब से अलाप लगाए हैं और एक आप हैं कान बंद करे बैठे हैं ........उन्होंने तो सब अगला पिछला सोचकर ही फरमान दिया है ......देखो तुम्हें उनसे पूछने का हक़ नहीं कि विमुद्रीकरण के वक्त आपने कैसे वो नोट भी जनता को दिए जो इतने खस्ताहाल थे कि लंगड़ी टांग भी नहीं खेल सकते थे तो क्या हुआ माई बाप जो ठहरे ........उनके निर्णय पर आप ऊंगली उठाने वाले भला हैं कौन ? तो होली है , रंग हैं , तुम हो , पैसे हैं .......खेलो होली झूम झूम के
रंग डालो घूम घूम के... दुश्मन पर तो ख़ास रंग उड़ाना... इसी बहाने दुश्मनी निभाना ........देखा कितना अच्छा मौका दिया उन्होंने आपको ......तो सरकार को हर बात का दोष न देकर खुद को कटघरे में खडा करो.......ऐसी होली न कभी खेली होगी जब सरकार ने ही जेब ढीली की होगी .........यादों के बखिये खूब उघाड़ो .....कितना चीखो चिंघाडो ..........अब के न पापे तुम बच पाओगे ........सरकार के रंग में ही रंग जाओगे .........तो आपको अपना पैसा प्यारा है कि नहीं , आपको अपना पैसा बचाना चाइये कि नहीं चाइये .........चाइये , चाइये , चाइये ........बस इसीलिए तो फरमान दिया है देखा तुम्हारे भले में ही हमारा भला है ........ये होता है सबका साथ सबका विकास ...........और होली पर होता है ख़ास  .......तो बच्चा लोग ये है सरकारी होली ......बिन रंग पिचकारी सरकार ने खेली :) 


डिसक्लेमर :
ये पोस्ट पूर्णतया कॉपीराइट प्रोटेक्टेड है, ये किसी भी अन्य लेख या बौद्धिक संम्पति की नकल नहीं है।
इस पोस्ट या इसका कोई भी भाग बिना लेखक की लिखित अनुमति के शेयर, नकल, चित्र रूप या इलेक्ट्रॉनिक रूप में प्रयोग करने का अधिकार किसी को नहीं है, अगर ऐसा किया जाता है निर्धारित क़ानूनों के तहत कार्रवाई की जाएगी।
©वन्दना गुप्ता vandana gupta

बुधवार, 1 मार्च 2017

मेरे फुफकारने भर से

मेरे फुफकारने भर से 
उतर गए तुम्हारी 
तहजीबों के अंतर्वस्त्र 
सोचो 
यदि डंक मार दिया होता तो ?

स्त्री 
सिर्फ प्रतिमानों की कठपुतली नहीं 
एक बित्ते या अंगुल भर नाप नहीं 
कोई खामोश चीत्कार नहीं 


जिसे सुनने के तुम 
सदियों से आदि रहे 
अब ये समझने का मौसम आ गया है 
इसलिए 
पहन लो सारे कवच सुरक्षा के 
क्योंकि 
आ गया है उसे भी भेदना तुम्हारे अहम् की मर्म परतों को…… ओ पुरुष !

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©वन्दना गुप्ता vandana gupta