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शनिवार, 31 मार्च 2018

एक लड़की की डायरी के अंतिम पन्ने-1

आशा की देह से उतार दी है चमड़ी और निराशा को दी हो ऐसा भी नहीं...साजन के प्यार का तबस्सुम घूँघट की ओट में ज्यादा खिलता है...जाना जब से, खुमारी है कि उतरती ही नहीं, सोच लड़की खिल उठी. किताबी ज्ञान ही उसकी प्रथम गुरु...

दिन सोने की सान चढ़ाए उगता और रातें चाँदी के केश फैला करती पदार्पण ...लड़की उमंग के घोड़े पर सवार कर रही थी यात्रा...दिल किसी परीलोक की यात्रा में मिलता अपने प्रियतम से...आह! बस सुखद स्वप्न कभी टूटे न!!!

वो स्वप्न ही क्या जो टूटे न? फिर तो स्वप्न देखा ही नहीं...स्वप्न का भी अपना विज्ञान होता है लेकिन समझे कौन? स्वप्न जो साकार हो बस वहीँ तक चाहना, विपरीत स्वर मान्य नहीं...मगर चाहत का बाज़ार कब स्वर्ण की सीढ़ी चढ़ा है...तुम करते रहो अजान या जपते रहो राम राम रावण तो आएगा ही यदि राम ने जन्म लिया है तो...फिर वो स्वप्न क्या जो टूटे ही नहीं फिर स्वप्न सुखद हो या दुखद!!!

और टूट गया स्वप्न जब हकीकत की आँच पर सुलगी लड़की की चाहतें, हसरतें, इच्छाएं...ब्याह किया था उसने अपनी चाहतों से, नहीं पता था कल के हाथ में है उसकी जीवन की डोर, जिसमे जब चाहे रोक लगा दी जाए और लगा दी गयी...लड़की मौन के गह्वर में सूख गयी...चुप की डोर जो पकड़ी तो उम्र भर निभाई...लड़की खुद को भूल गयी...अपना नाम भी...विस्मृति के घने जंगल में छूट गया उसका लड़कपन, वो ख्वाबों का घरौंदा, वो तितली के पंखों पर सवार अरमानों की डोली में विहार करती थी...स्मृति की स्लेट से मिट गया...अब मत पूछना उससे-वो कौन? 

एक लड़की की डायरी का अंतिम पन्ना पढना कभी...वो कहीं मिलेगी ही नहीं...टूट गया डाल से पत्ता, झडा, उड़ा और कहाँ गया किसने जाना...लड़की जान चुकी थी अपना भविष्य...ढल चुकी थी उस साँचे में जिसमें ढाली गयी...अब न अवशेष हैं न शेष, चाहे कितना चूलों में तेल डालो अब, जंग लगी चूलें फिर रवां नहीं हुआ करतीं...शून्य कितना बड़ा होता है उनका नहीं जान सकते, समा सकता है उसमे पूरा ब्रह्माण्ड, बस देखना कभी उस लड़की की आँख में उलझे उस शून्य को...खुद को न भुला दो तो कहना, फिर कभी आँख नहीं उठा सकोगे.

बस इतनी सी कहानी है उसकी जिसके रोम रोम में एक हाहाकार है, एक ज्वाला है, एक दर्द का चीत्कार है, एक लावा है, एक ज्वालामुखी है मगर भीतर से, बाहर का ठंडापन मात कर देगा उत्तरी ध्रुव को भी...फिर कहाँ खोजते हो अब पहचान चिन्ह? लड़की एक खोज का विषय भर रह गयी अब..पुरातत्ववेत्ता खोज में लगे हैं सदियों से!!!

युग बीते मगर
एक लड़की की डायरी का अंतिम पन्ना किसी ने कभी पढ़ा ही नहीं...अट्टहास कर रही है लड़की, सुनना कभी उसका अट्टहास, फट जायेंगे कान के परदे या फिर नष्ट हो जाएगी तुम्हारी सारी सभ्यता!!!


लड़की ख्वाब की दहलीज पर बैठी है आज भी...
©vandana gupta

शुक्रवार, 23 मार्च 2018

भगत सिंह , राजगुरु और सुखदेव
हम नमन के सिवा तुम्हें कुछ नहीं दे सकते
बदल चुकी है हवा
बदल चुकी हैं प्रतिबद्धताएं

वो दौर और था
ये दौर और है
बस इतने से समझ लेना सार
आज नहीं पैदा होती वो मिटटी
जिससे पैदा होते थे तुमसे लाल

और सुनो
ये नमन भी बस कुछ सालों तक चलेगा
आने वाला दौर शायद ऐसा भी हो जाए
पूछ ले नयी पौध
कौन भगतसिंह, राजगुरु और सुखदेव ?
क्यों लकीर पीट रहे हो
आगे क्यों नहीं देख रहे हो

आजकल कर्ज लेने और देने की परिभाषाएं बदल चुकी हैं
फिर तुम्हारे कर्ज का क्या मोल समझेंगे
जिस दौर में कर्ज ले भाग जाने का रिवाज़ है

उम्मीद के दीये में तेल ख़त्म होने की कगार पर है
बस कर सको तो कर लेना
नमन पर ही सब्र ...
 
दर्द का चेहरा बदल चुका है !!!