मैंने दर्द को भी आहें भरते देखा है
हर गम को भी मुस्कुराते देखा है
हर सुबह में एक उदासी देखी है
हर शाम में एक खुशी भी देखी है
हर चुभते कांटे में एक दर्द को पलते देखा है
हर खामोश nigaah में एक आंसू को जलते देखा है
हर खामोश दीवार में kisi राज़ को दफ़न देखा है
हर मासूम चेहरे में एक खामोश मुहब्बत देखी है
पर हर मुहब्बत को परवान पे न चढ़ते देखा है
इस बेदर्द duniya को हर आह पर हँसते देखा है
हर ज़ख्म को यहाँ sirf नासूर बनते देखा है
मैंने दर्द को भी आहें भरते देखा है
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जवाब देंहटाएंहमने भी बहुत कुछ देखा है पर आपकी तरह कविता में व्यक्त करना नहीं आता.. आपने बहुत सुंदर तरीके से अपने भावों को प्रकट किया।
जवाब देंहटाएंवंदना जी
हिन्दी चिट्ठा जगत में आपका हार्दिक स्वागत है, आप हिन्दी में बढ़िया लिखें और खूब लिखें यही उम्मीद है।
एक अनुरोध है कृपया यह वर्ड वेरिफिकेशन हटा दें,तो बढ़िया होगा यह टिप्पणी करते समय बड़ा परेशान करता है।
॥दस्तक॥
तकनीकी दस्तक
गीतों की महफिल
हर सुबह में एक उदासी देखी है
जवाब देंहटाएंहर शाम में एक खुशी भी देखी है
Sunder kavita ke liye shubhkamnayein.Yuun hi likhtay rahein...
तुम जो ज़ख्मो को सीने से लगाए रखने का हुनर जाने हो
जवाब देंहटाएंदिल ने ज़ख्मे-शाद में तुम नाशाद खुदा माने हो!!!
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बहुत अच्छी रचना. लिखते रहिये.
शुभकामनायें.
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उल्टा तीर
दर्द जब हद से गुजर जाता है तो गम भी मुस्कराने लगते हैं।
जवाब देंहटाएंदर्द भी दर्द महसूस करता है ..गज़ब ..
जवाब देंहटाएंहर ज़ख्म को यहाँ sirf नासूर बनते देखा है
जवाब देंहटाएंमैंने दर्द को भी आहें भरते देखा है
वंदना जी नमस्कार .
आपकी कविता बहुत सुंदर है |गहन वेदना से भरी सुंदर अनुभूति है |मैंने नयी-पुरानी हलचल पर उसे लिया है|कृपया आयें और अपने शुभ विचार दें |
http://nayi-purani-halchal.blogspot.com/
anupama tripathi.
बहुत बढ़िया लिखा है आपने.
जवाब देंहटाएंसादर