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शुक्रवार, 12 सितंबर 2008

एक परछाईं हूँ ,न जाने कब गुम हो जाऊँ,
न करो इससे प्यार,एक छलावा हूँ,सिर्फ़ छलना जानती हूँ,
मुझे पकड़ने की दौड़ में कहीं तुम बहुत आगे न निकल आना
ज़माना साथ न दे सकेगा,तुम्हें ही पीछे जाना पड़ेगा,
एक साया सा हूँ मुझे छूने की कोशिश न कर,
कहीं ऐसा न हो ,तुम्हारा अपना साया ही
तुम्हारा साथ न छोड़ दे ।

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