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शनिवार, 10 जनवरी 2009

मुलाकात

कुछ कहने सुनने से दूर
शांत स्वच्छ निर्मल
झील के किनारे
हाथों में हाथ डाले
चांदनी रात में हम तुम
पत्थरों के ढेर पर बैठे हों
सिर्फ़ आँखें बोलती हों
दिल सुनता हो
खामोशी ही खामोशी हो
कोई न आस पास हो
कुछ न कहते हुए भी
हाल-ऐ-दिल बयां हो जाए
बस एक शाम हमारी
खामोशी के नाम हो जाए
इस मौन में
हमारे शब्द
अव्यक्त रहे
मगर फिर भी
आँखों की आँखों से
बात हो जाए
हमारे अनकहे शब्द
हमारे दिल सुनें
दिल ही दिल में
बिना कुछ कहे
बात हो जाए
कुछ इस तरह हमारी
जन्मों की प्यासी
रूह को पनाह मिल जाए
सिर्फ़ एक रात
धडकनों के नाम हो जाए
धडकनों के संगीत पर
इक रात बसर हो जाए
कुछ इस तरह
अगले कुछ जन्मों के लिए
हमारी रूहों को सुकून मिल जाए

4 टिप्‍पणियां:

  1. "कुछ न कहते हुए भी
    हाल-ऐ-दिल बयां हो जाए
    बस एक शाम हमारी
    खामोशी के नाम हो जाए"

    खुबसूरत अहसास|

    "सिर्फ़ एक रात
    धडकनों के नाम हो जाए"

    "अगले कुछ जन्मों के लिए
    हमारी रूहों को सुकून मिल जाए"

    अगले जन्म में रूहों को सुकून देने की ख्वाहिश अच्छी लगी| :)

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  2. भावपूर्ण "मुलाक़ात" के लिए साधुवाद.

    जवाब देंहटाएं
  3. "bs ek shaam hmaari khamoshi ke naam ho jaye..."
    ek ek lafz khud kuchh na kuchh keh rahaa hai...wo jo khaamoshi ki ek chhipi.si zubaaN hai, ussi ki pakeeza daastaaN byaaN kr rahaa hai
    Kalaa-paksh se bhi kavita bahot hi
    asardaar hai, aur bhaav-paksh to umdaa hai hi...
    mubarakbaad qubool farmaaeiN .
    ---MUFLIS---

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