कुछ कहने और न कहने के बीच झूलते हम
कभी हकीकत बयां नही कर पाते
कुछ लम्हों को जी नही पाते
कुछ लम्हों को जीना नही चाहते
कभी खामोश रहकर सब कह जाते हैं
कभी बोलकर भी कुछ कह नही पाते
न जाने कैसी विडम्बना में जीते हैं
न ख़ुद को जान पाते हैं
न दूसरों को जानने देते हैं
कभी किसी अनचाही दौड़ में
शामिल हो जाते हैं तो
कभी चाहकर भी कहीं
पहुँच नही पाते
न जाने किस चाह में जीते हैं
न जाने किस मय को पीते हैं
मगर फिर भी खाली ही रहते हैं
कभी कुछ पा नही पाते
किसी को कुछ दे नही पाते
न जाने किस भूख ने सताया है
न जाने किसकी तलाश में निकले हैं
न खो पाते हैं
न खोज पाते हैं
बस सिर्फ़
रो पाते हैं
और
उलझनों में ज़िन्दगी
गुजार जाते हैं
ना हंस पाते हैं
ना हंसा पाते हैं
सिर्फ़ भावनाओं में
बह जाते हैं या
कभी किसी को
बहा ले जाते हैं
मगर कभी
पार नही पाते हैं
सिर्फ़ कशमकश में
जीते हैं और मरते हैं
सिर्फ़ कशमकश में...........................
apne kashmakash ko bayan karte rahe isi tarah, shayad thoda mite.
जवाब देंहटाएंapne kashmakash ko isi tarah bayan karte rahen, shayad thoda kam ho.
जवाब देंहटाएंन जाने कैसी विडम्बना में जीते हैं
जवाब देंहटाएंन ख़ुद को जान पाते हैं
न दूसरों को जानने देते हैं
कभी किसी अनचाही दौड़ में
शामिल हो जाते हैं तो
कभी चाहकर भी कहीं
ajeeb kashmashkash hai zindagi,bahut briki se bayan kiya hai aapnebahut khub
इस कशमकश को पढ़कर वाकई दिल खुश हो गया।
जवाब देंहटाएंकुछ लम्हों को जी नहीं पाते
कुछ लम्हों को जीना नही चाहते
बहुत ही सुन्दर। कई बार पढ गया आपकी इस रचना को।
गम के दरिया से बाहर निकालो कदम,
जवाब देंहटाएंराह खुशियों की आसान हो जायेगी,
रोने-धोने से होंगे, आँसू न होंगे खतम,
उलझनें भारी पाषाण हो जायेगी।
फूल काँटों मे रहकर भी रोता नही,
शूल सहता है, मुस्कान खोता नही,
जीवन खतम हुआ तो,
जवाब देंहटाएंजीने का फायदा क्या?
जब शम्मा बुझ गयी तो,
महफिल का कायदा क्या?
हाँ...कशमकश तो होती है....और कशमकश तब होती है...जब कुछ भी तय करने में हम स्पष्ट नहीं होते....दो के बीच में कुछ भी सोचना एकबारगी कशमकश को जन्म देता है....मगर साथ ही इक दिशा भी....दिशा का चुनाव भी.....हर चुनाव में इक राह छिपी होती है....!!
जवाब देंहटाएंहाँ...कशमकश तो होती है....और कशमकश तब होती है...जब कुछ भी तय करने में हम स्पष्ट नहीं होते....दो के बीच में कुछ भी सोचना एकबारगी कशमकश को जन्म देता है....मगर साथ ही इक दिशा भी....दिशा का चुनाव भी.....हर चुनाव में इक राह छिपी होती है....!!
जवाब देंहटाएंहाँ...कशमकश तो होती है....और कशमकश तब होती है...जब कुछ भी तय करने में हम स्पष्ट नहीं होते....दो के बीच में कुछ भी सोचना एकबारगी कशमकश को जन्म देता है....मगर साथ ही इक दिशा भी....दिशा का चुनाव भी.....हर चुनाव में इक राह छिपी होती है....!!
जवाब देंहटाएंहाँ...कशमकश तो होती है....और कशमकश तब होती है...जब कुछ भी तय करने में हम स्पष्ट नहीं होते....दो के बीच में कुछ भी सोचना एकबारगी कशमकश को जन्म देता है....मगर साथ ही इक दिशा भी....दिशा का चुनाव भी.....हर चुनाव में इक राह छिपी होती है....!!
जवाब देंहटाएंहाँ...कशमकश तो होती है....और कशमकश तब होती है...जब कुछ भी तय करने में हम स्पष्ट नहीं होते....दो के बीच में कुछ भी सोचना एकबारगी कशमकश को जन्म देता है....मगर साथ ही इक दिशा भी....दिशा का चुनाव भी.....हर चुनाव में इक राह छिपी होती है....!!
जवाब देंहटाएंबिलकुल सही फरमाया आपने....
जवाब देंहटाएंबढिया रचना
न ख़ुद को जान पाते हैं
जवाब देंहटाएंन दूसरों को जानने देते हैं
yahi to hamaare har dukh ka karan hai. badhaai ho.sundar rachna ke liye.
vandana ji
जवाब देंहटाएंbahut hi sundar aur shashakt rachana , meri badhai sweekar karen..
main to muk ho gai hun aapko padhkar......kuch samay yahin thahar jaaun ,yahi ikshaa hai....
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