सीता मुझमें ढूँढने वाले
पहले राम तो बनना सीख ले
राम भी बनने से पहले
तू मानव बनना सीख ले
हर सीता को राम मिले
ऐसा यहाँ कब होता है
राम के वेश में ना जाने
कितने रावण हैं विचर रहे
इस दुनिया रुपी वन में
आजाद ना कोई सीता है
कदम कदम पर यहाँ
भयभीत हर इक सीता है
रात के बढ़ते सायों में
महफूज नही कोई सीता है
सीता को ढूँढने वाले मानव
तू नर तो बनना सीख ले
सीता के भक्षक रावणों से
पहले सीता को बचाना सीख ले
पग-पग पर अग्निपरीक्षा लेने वाले
पहले तू मानव तो बनना सीख ले
तू मानव बनना सीख ले ................
मानव-मानव बन,
जवाब देंहटाएंरावण बन करके पछतायेगा।
जल जायेगी लंका सारी,
मिट्टी में मिल जायेगा।
सीता की है यही वन्दना,
कान खोल कर सुन लेना।
थोड़े से शब्दों को ही,
अपनी बुद्धि में गुण लेना।
पहले तू मानव तो बनना सीख ले
जवाब देंहटाएंतू मानव बनना सीख ले ................
vandanajii gupta,
very Nice poem...............................................
thaking u...
MUMBAI TIGER
HEY PRABHU YEH TERAPANTH
बहुत ही प्रेरणा देने वाली कविता है ये..!आज यदि सभी मानव बनना भी सीख ले तो शायद राम बन्ने की जरूरत ही न पड़े...!अछि रचना के लिए धन्यवाद..
जवाब देंहटाएंek sachchi baat kahi aapne ...chaahe kadvi bhale hi lage...shukriya
जवाब देंहटाएंसुन्दर भाव एवं प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंशक्ल हो बस आदमी का क्या यही पहचान है।
ढ़ूँढ़ता हूँ दर - ब - दर मिलता नहीं इन्सान है।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
पहली लाईन पढते ही आनंद आ गया था और यह अंदाजा भी हो गया था कि रचना वाकई सुन्दर और बेहतरीन लिखी गई होगी। और हुआ भी वही। सच वंदना जी कमाल का लिखा है। अद्भुत।
जवाब देंहटाएंकविता में व्यक्त भावः सुन्दर है ,हालाँकि मानवीय मूल्यों की बात
जवाब देंहटाएंकहने के लिए राम कितने उपयुक्त प्रतिमान हैं ...? ये सोचने वाली
बात है , राम अगर ईश्वर ही हैं तब तो ठीक है ...वो कुछ भी कर
सकते हैं ... लेकिन मानवीय पहलू उनका भी निर्विवाद/आदर्श नहीं है.....
राम भी बनने से पहले
जवाब देंहटाएंतू मानव बनना सीख ले
बहुत बढ़िया बात कही है आपने...वाह...पूरी रचना शानदार है...बधाई...
नीरज
वन्दना जी,
जवाब देंहटाएंआज आपकी अभी अभी दो रचनाये, "तू मानव तो बनना सीख ले" और "पैसा ये सिर्फ पैसा है" पढी, बहुत अच्छी एवम सामयिक कविता थी.
वाकई आदमी राम नही होता परन्तु स्त्री से सीता की उमीद जरूर करता है, समस्त मर्यादये स्त्रियो के लिये तो रखता है परन्तु स्वयम मर्यादाओ से स्वयम को ऊपर समझता है. ये बडी हैरानी की बात है. पर समय बदल रहा है, आदमी को इन्सान बनना होगा नही तो उसकी बनाई हदे उसे ही एक दिन समाप्त कर देन्गी.
बहुत सुन्दर बधाई