कविता कई सवाल खड़े करती है। छोटी लेकिन प्रभावशाली कविता। मैने भी अपने ब्लाग पर एक कविता लिखी है। समय हो तो पढ़ें और कमेंट भी दें- http://drashokpriyaranjan.blogspot.com
vandana ji , bahut khoob likha hai meri post par sirf aapaki prtikriya aisi hai jo mujhe laga ki baat ko samajh paai , varana baaki log to use tulasi baba ki abhelana tak le gaye . aaj ke sandarbh main kahi baat ko kisi ne nahi samajha . aurat ko usi darre par dekhne wale log baba ki hi baat karte hain . aapase vistrit pratikriya chahati hoon .
वंदना जी आपने बहुत बढि़या लिखा है। आपके लेखों में जिंदगी की झलक दिखती है। आपके शब्द सोचने पर मजबूर करते हैं। जख्म फूल दें या कांटे दर्द तो होता ही है और जहां दर्द नहीं वहां जीवन नहीं। यही सार है। आशा करता हूं कि जिंदगी की परतों को आप अपने लेखों के माध्यम से खोलती रहेंगी।
इक प्यासी रूह को
जवाब देंहटाएंसुकून कब मिला ह
बहुत मार्मिक रचना है सही बात जै प्यासी रूह को सकून नहीं मिलता। शुभकामनायें
nice lines !
जवाब देंहटाएं:)
जवाब देंहटाएंBahut sundar vichar.
जवाब देंहटाएं--------
क्या आपने लोहे को तैरते देखा है?
पुरुषों के श्रेष्ठता के 'जींस' से कैसे निपटे नारी?
वाह क्या खूब लिखा !!
जवाब देंहटाएंचेहरे पर उभरती लकीरों में
जवाब देंहटाएंदर्द का ही सिलसिला है
Bahut sundar gajal...
Badhai
चेहरे पर उभरती लकीरों में
जवाब देंहटाएंदर्द का ही सिलसिला है
Bahut sundar gajal...
Badhai
चेहरे पर उभरती लकीरों में
जवाब देंहटाएंदर्द का ही सिलसिला है
Dard ki sundar abhivakti.....
Badhia
उम्र की गाड़ी कभी रुकती नहीं है, फिर गिला क्यों
जवाब देंहटाएंचेहरे की लकीरों में छिपे तजुर्बे का खजाना तो है। यही क्या कम है।
दर्द के सिलसिलो के बीच ही तो सकून है. ठहरने पर सकून कहाँ!!
जवाब देंहटाएंसुन्दर अभिव्यक्ति
बहुत सुन्दर क्षणिका है।
जवाब देंहटाएंगूढ़ बात को बहुत ही सहजता कह दिया है आपने।
कुछ पल ठहर जाऊं कहीं
जवाब देंहटाएंज़िन्दगी का बस यही गिला है...
बहुत सुंदर,..... खूबसूरत शब्दों के साथ .....सुंदर कविता......
अच्छी रचना। बधाई।
जवाब देंहटाएंgilay shiqwe kar ke bhi dil ko tasalli naseeb nahi....
जवाब देंहटाएंkismat mein jo likha hai "mulhid" bas wohi mila hai...
nice composition Vandana Ji....
cheers!
surender
बहुत सुन्दर भाव।
जवाब देंहटाएंएक गहरा एह्सास।
बहुत सुन्दर रचना है।बधाई।
कविता कई सवाल खड़े करती है। छोटी लेकिन प्रभावशाली कविता।
जवाब देंहटाएंमैने भी अपने ब्लाग पर एक कविता लिखी है। समय हो तो पढ़ें और कमेंट भी दें-
http://drashokpriyaranjan.blogspot.com
बहुत बढ़िया...कुछ पल ठहर जाऊँ कहीं...!!काश!! ऐसी राहत हो पाती कभी किसी जिन्दगी में.
जवाब देंहटाएंबढ़िया भाव!
कुछ पल ठहर जाऊं कहीं
जवाब देंहटाएंज़िन्दगी का बस यही गिला है ...
इन गीले शिकवों में कब जिंदगी बीत जाती है .... पता नही चलता ......... अच्छे शेर हैं ......
sundar * * * * *
जवाब देंहटाएंNAMASKAAR Ji
nice
जवाब देंहटाएंभावुक उदगार
जवाब देंहटाएंपर उभरती लकीरों में
जवाब देंहटाएंदर्द का ही सिला है .....
यही दर्द हद से बढ़ जाये तो दवा बन जाता है .....है न ....?
चेहरे पर उभरती लकीरों में
जवाब देंहटाएंदर्द का ही सिलसिला है
bahut khoob...badhai
vandana ji ,
जवाब देंहटाएंbahut khoob likha hai
meri post par sirf aapaki prtikriya aisi hai jo mujhe laga ki baat ko samajh paai , varana baaki log to use tulasi baba ki abhelana tak le gaye .
aaj ke sandarbh main kahi baat ko kisi ne nahi samajha .
aurat ko usi darre par dekhne wale log baba ki hi baat karte hain .
aapase vistrit pratikriya chahati hoon .
चेहरे पर उभरती लकीरों में
जवाब देंहटाएंदर्द का ही सिलसिला है
बहुत बेहतरीन रचना गंभीर भाव लिए हुए
vanadana ji ,
जवाब देंहटाएंnav varsh ki hardik shubhkamnayen. shukriya .
comments ke liye dhanaywad.
बहुत सुन्दर व भाव पूर्ण रचना,पन्क्तियों में वर्ण कम ज्यादा हैं।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भाव हैं:
जवाब देंहटाएंचेहरे पर उभरती लकीरों में
दर्द का ही सिलसिला है
महवीर शर्मा
वंदना जी आपने बहुत बढि़या लिखा है। आपके लेखों में जिंदगी की झलक दिखती है। आपके शब्द सोचने पर मजबूर करते हैं। जख्म फूल दें या कांटे दर्द तो होता ही है और जहां दर्द नहीं वहां जीवन नहीं। यही सार है। आशा करता हूं कि जिंदगी की परतों को आप अपने लेखों के माध्यम से खोलती रहेंगी।
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