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शनिवार, 26 दिसंबर 2009

गिले -शिकवे

इक प्यासी रूह को
सुकून कब मिला है

घुटन की दलदल में फंसी
ज़िन्दगी का यही सिला है

चेहरे पर उभरती लकीरों में
दर्द का ही सिलसिला है

कुछ पल ठहर जाऊं कहीं
ज़िन्दगी का बस यही गिला है

29 टिप्‍पणियां:

  1. इक प्यासी रूह को
    सुकून कब मिला ह
    बहुत मार्मिक रचना है सही बात जै प्यासी रूह को सकून नहीं मिलता। शुभकामनायें

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  2. चेहरे पर उभरती लकीरों में
    दर्द का ही सिलसिला है

    Bahut sundar gajal...
    Badhai

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  3. चेहरे पर उभरती लकीरों में
    दर्द का ही सिलसिला है

    Bahut sundar gajal...
    Badhai

    जवाब देंहटाएं
  4. चेहरे पर उभरती लकीरों में
    दर्द का ही सिलसिला है
    Dard ki sundar abhivakti.....
    Badhia

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  5. उम्र की गाड़ी कभी रुकती नहीं है, फिर गिला क्‍यों
    चेहरे की लकीरों में छिपे तजुर्बे का खजाना तो है। यही क्‍या कम है।

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  6. दर्द के सिलसिलो के बीच ही तो सकून है. ठहरने पर सकून कहाँ!!
    सुन्दर अभिव्यक्ति

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  7. बहुत सुन्दर क्षणिका है।
    गूढ़ बात को बहुत ही सहजता कह दिया है आपने।

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  8. कुछ पल ठहर जाऊं कहीं
    ज़िन्दगी का बस यही गिला है...

    बहुत सुंदर,..... खूबसूरत शब्दों के साथ .....सुंदर कविता......

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  9. gilay shiqwe kar ke bhi dil ko tasalli naseeb nahi....
    kismat mein jo likha hai "mulhid" bas wohi mila hai...

    nice composition Vandana Ji....

    cheers!
    surender

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  10. बहुत सुन्दर भाव।
    एक गहरा एह्सास।
    बहुत सुन्दर रचना है।बधाई।

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  11. कविता कई सवाल खड़े करती है। छोटी लेकिन प्रभावशाली कविता।
    मैने भी अपने ब्लाग पर एक कविता लिखी है। समय हो तो पढ़ें और कमेंट भी दें-
    http://drashokpriyaranjan.blogspot.com

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  12. बहुत बढ़िया...कुछ पल ठहर जाऊँ कहीं...!!काश!! ऐसी राहत हो पाती कभी किसी जिन्दगी में.

    बढ़िया भाव!

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  13. कुछ पल ठहर जाऊं कहीं
    ज़िन्दगी का बस यही गिला है ...

    इन गीले शिकवों में कब जिंदगी बीत जाती है .... पता नही चलता ......... अच्छे शेर हैं ......

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  14. पर उभरती लकीरों में
    दर्द का ही सिला है .....

    यही दर्द हद से बढ़ जाये तो दवा बन जाता है .....है न ....?

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  15. चेहरे पर उभरती लकीरों में
    दर्द का ही सिलसिला है

    bahut khoob...badhai

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  16. vandana ji ,
    bahut khoob likha hai
    meri post par sirf aapaki prtikriya aisi hai jo mujhe laga ki baat ko samajh paai , varana baaki log to use tulasi baba ki abhelana tak le gaye .
    aaj ke sandarbh main kahi baat ko kisi ne nahi samajha .
    aurat ko usi darre par dekhne wale log baba ki hi baat karte hain .
    aapase vistrit pratikriya chahati hoon .

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  17. चेहरे पर उभरती लकीरों में
    दर्द का ही सिलसिला है
    बहुत बेहतरीन रचना गंभीर भाव लिए हुए

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  18. vanadana ji ,
    nav varsh ki hardik shubhkamnayen. shukriya .
    comments ke liye dhanaywad.

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  19. बहुत सुन्दर व भाव पूर्ण रचना,पन्क्तियों में वर्ण कम ज्यादा हैं।

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  20. बहुत सुन्दर भाव हैं:
    चेहरे पर उभरती लकीरों में
    दर्द का ही सिलसिला है
    महवीर शर्मा

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  21. वंदना जी आपने बहुत बढि़या लिखा है। आपके लेखों में जिंदगी की झलक दिखती है। आपके शब्द सोचने पर मजबूर करते हैं। जख्म फूल दें या कांटे दर्द तो होता ही है और जहां दर्द नहीं वहां जीवन नहीं। यही सार है। आशा करता हूं कि जिंदगी की परतों को आप अपने लेखों के माध्यम से खोलती रहेंगी।

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