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शनिवार, 20 फ़रवरी 2010

आईने कैसे- कैसे

आईना ना देखो यारों
अक्स से बू आती है
आईने में क़ैद अक्स से
खुद को मिलाओ तो ज़रा
गर खुद को पहचान लो तो
आईना खामोश हो जाये


हर आईना अपना सा
नज़र आता है
क्या करूँ महबूब मेरे
हर आईने में
तेरा ही चेहरा
नज़र आता है



मुझे आईना दिखाने वाले
कभी उस आईने में
झाँका होता
तो तेरा अक्स भी
धुंधला गया होता



नकाब चाहे जितना
ड़ाल लो रुखसार पर
आईना सब सच
दिखा देता है

21 टिप्‍पणियां:

  1. आईने पर खूब पोस्ट आरही हैं आजकल.. :) लेकिन महबूब के लिए सबसे साफ़ आइना तो अपने साथी कि आँखों का होता है..
    बेहतरीन कविता ये भी वंदना जी..

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  2. मुझे आईना दिखाने वाले
    कभी उस आईने में
    झाँका होता
    तो तेरा अक्स भी
    धुंधला गया होता

    बहुत खूब कहा आपने ,सच है यह शुक्रिया

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  3. आईना झूठ नहीं कहता....बहुत अच्छी रचना...आईना दिखाती सी...

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  4. नकाब चाहे जितना
    ड़ाल लो रुखसार पर
    आईना सब सच
    दिखा देता है .....

    बहुत सुंदर पंक्तियों के साथ ...बहुत ही सुंदर रचना.... आपके लेखनी की यही ख़ास बात है.... कि आप बाँध कर रखतीं हैं.... आभार.....

    जवाब देंहटाएं
  5. नकाब चाहे जितना
    ड़ाल लो रुखसार पर
    आईना सब सच
    दिखा देता है .....

    बहुत सुंदर पंक्तियों के साथ ...बहुत ही सुंदर रचना.... आपके लेखनी की यही ख़ास बात है.... कि आप बाँध कर रखतीं हैं.... आभार.....

    जवाब देंहटाएं
  6. हर आईना अपना सा
    नज़र आता है
    क्या करूँ महबूब मेरे
    हर आईने में
    तेरा ही चेहरा
    नज़र आता है


    इस पंक्ति में ......प्यार नजर आता है ,,,,,बहेतरीन रचना

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  7. आईने का व्याखान खूब किया है।

    एक पंजाबी के पंक्ति का हिन्दीकरन कर रहा हूँ


    तुम्हे देखता हूँ तो गुण हजार नजर आते हैं,
    जब आईने के सामने जाता हूँ तो अवगुण नजर आते हैं

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  8. aaina le kr hmasha sath me chlta rha
    us me soort dekh kr hi sda chlta rha
    kyon ki mujh sa aur bdsurt koi tha hi nhi
    is liye hi haisiyt ko dekh kr chlta rha

    dr.vedvyathit@gmail.com

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  9. खुद को पहचान लो तो आईना खामोश हो जाये और हर आईने में तेरा ही चेहरा नजर आता है -- वन्दना जी - बहुत खूबसूरत भाव की पंक्तियाँ। वाह। कभी लिखा था कि-

    निहारता हूँ मैं खुद को जब भी तेरा ही चेहरा उभर के आता
    ये आईने की खुली बगावत क्या तुमने देखा जो मैंने देखा

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com

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  10. नकाब चाहे जितना
    ड़ाल लो रुखसार पर
    आईना सब सच
    दिखा देता है


    बिल्कुल सही!
    दर्पण झूठ न बोले!

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  11. वाह जी आज तो आईने को ही आईना दिखा दिया आपने , सुंदर और बिल्कुल अलग रचना ...शुभकामनाएं
    अजय कुमार झा

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  12. आइना कुछ नहीं छुपाता है .. बहुत सुंदर अभिव्‍यक्ति !!

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  13. बिलकुल सही कहा वन्दना जी आईना हमेशा सच बोलता है। सुन्दर कविता शुभकामनायें

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  14. आई ना
    मैं नहीं
    होते हुए भी
    सिर्फ मैं ही है
    इसलिए सच
    दिखाता है।

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  15. मुझे आईना दिखाने वाले
    कभी उस आईने में
    झाँका होता
    तो तेरा अक्स भी
    धुंधला गया होता

    आईने के बहुत से नये आयाम खोल दिए हैं आपने .... बहुत खूब ... लाजवाब लिखा है ....

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  16. वाह जी वाह क्या जबरद्स्त लिखा है आईने पर। एक से एक बेहतरीन आईना। पर मुझे तो ऐ वाला कुछ ज्यादा ही पसंद आया।
    मुझे आईना दिखाने वाले
    कभी उस आईने में
    झाँका होता
    तो तेरा अक्स भी
    धुंधला गया होता

    क्योंकि आईने देखाने वालों ये आईना भी देखना चाहिए। खैर ब्लोग नया साफ सुधरा सुन्दर लग रहा है।

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  17. मुझे आईना दिखाने वाले
    कभी उस आईने में
    झाँका होता
    तो तेरा अक्स भी
    धुंधला गया होता

    बहुत ही सुन्‍दर प्रस्‍तुति ।

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  18. हर आइना अपना सा नज़र आता है...बहुत खूब...आपने सही लिखा कि झूठ से आपको नफरत है...आपकी कविताओं में आपका स्वभाव झलकता है ..लिखते रहिये...सच्चे दिल वालों को सच्चे दोस्त जल्दी मिलते हैं...

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