हर शख्स
एक प्रश्नचिन्ह सा
नज़र आता है
ना जाने
कितने सवालों
से जूझता
हल की तलाश
में निकला
प्रश्नों के
व्यूह्जाल में
उलझता जाता है
और प्रश्नों के
जवाब में
प्रश्नों से ही
टकराता है
और फिर
प्रश्नों के
मकडजाल में
फँसा खुद
एक दिन
प्रश्नचिन्ह
बन जाता है
bhut khub vandna ji behtreen kavita yahi to jivan hai jab jindgi bhar uttar dhundte dhundte khud prshn ban jaye
जवाब देंहटाएंsaadar
praveen pathik
9971969084
मतलब अब हमें प्रश्नचिन्ह बनना बाकी है!
जवाब देंहटाएंबहुत ही गहरे भाव!
कुंवर जी,
वाह..वाह..!
जवाब देंहटाएंमानव!
एक प्रश्न-चिह्न?
बहुत ही बढ़िया कलम चलाई है आपने!
बहुत-बहुत आशीष!
बहुत सुन्दर रचना है ... चलिए कभी हम भी प्रश्नचिंह बन ही जायेंगे ...!
जवाब देंहटाएंwaqt apne aap me ek ansuljha prashn ban baitha hai, aur kahin koi hal nahi , prashnon kee shakl me sab bhaag rahe hain .... bahut hi badhiyaa
जवाब देंहटाएंसही बात है मनुष्य हर पल प्रश्नों से जोझता रहता है..."
जवाब देंहटाएंसच में बड़ा ही ढीठ है ये ' प्रश्न " , एक सुन्दर भाव !
जवाब देंहटाएंhum sabhi ek prasn chinh hi hain
जवाब देंहटाएंविचारणीय कविता ,आपके विचारों का मैं हार्दिक आदर करता हूँ /
बहुत गज़ब ये बात आज के समय में एकदम सटीक बैठती है.उच्च कथन
जवाब देंहटाएंविकास पाण्डेय
www.vicharokadarpan.blogspot.com
Hi..
जवाब देंहटाएंApne hi prashnon main uljhe,
duniya ke sab log..
Uttar unke milte utne..
Jitna ho sanjog..
Prashn kai bas prashn hain rahte..
Uljhe, sulajh na paate hain..
Sab prashno ke beech mai khud bhi..
Prashn sa wo ban jaate hain..
Prarshn ki sundar vyakhya..
DEEPAK..
www.deepakjyoti.blogsot.com
bahut sundar abhivyakti...
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा रचना..सोचने को मजबूर करती!!
जवाब देंहटाएंएक अपील:
विवादकर्ता की कुछ मजबूरियाँ रही होंगी, उन्हें क्षमा करते हुए विवादों को नजर अंदाज कर निस्वार्थ हिन्दी की सेवा करते रहें, यही समय की मांग है.
हिन्दी के प्रचार एवं प्रसार में आपका योगदान अनुकरणीय है, साधुवाद एवं अनेक शुभकामनाएँ.
-समीर लाल ’समीर’
Bahut khoob likha hai ... is prashnjaal se nikalna hi asli insaan ki pahchaan hai ... kai prashn khadi kaerti hai yeh rachna ..
जवाब देंहटाएंbahut hi achhi rachna....
जवाब देंहटाएंकितने सवालों
से जूझता
हल की तलाश
में निकला
प्रश्नों के
व्यूह्जाल में
उलझता जाता है
waah...
kya baat hai.......
बहुत बढ़िया प्रस्तुती ..........सच में हर इंसान एक प्रश्न-चिन्ह है .
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक और सार्थक लेखन.....
जवाब देंहटाएंजिंदगी की जद्दोजहद में इंसान प्रश्चिन्ह सा ही बन कर रह जाता है....बढ़िया रचना..
वाह! बहुत ही सुन्दर रचना है!
जवाब देंहटाएंyeh sara sansar prashno ka ek dera hai,
जवाब देंहटाएंjisne hume charo taraf se ghera hain.jab tak chalti hain saanse har sawaal ka uttar lena hain.
yeh sara sansaar sawaalo ka ek dera hain.
जवाब देंहटाएंjisne hume charo taraf se ghera hain.
jab talak rehengi saanso pe saans,
har sawaal ka uttar lena hain.
yeh sansaar sawaalo ka ek dera hain
जवाब देंहटाएंjisne hume charo taraf se ghera hain.
jab talak saanso me saans har sawaal ka uttar lena hain
जीवन भी तो एक प्रश्नचिन्ह ही है?
जवाब देंहटाएंकैसे लिखेगें प्रेमपत्र 72 साल के भूखे प्रहलाद जानी।
.... बेहतरीन !!!
जवाब देंहटाएंdunia ek paheli hai...achha hua insaan bhi prashnchinh hai ...badhiya rachna vandna ji
जवाब देंहटाएंउत्तम रचना ।
जवाब देंहटाएं