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शनिवार, 29 मई 2010

धागा हूँ मैं

धागा हूँ मैं
मुझे माला बना
प्रीत के मनके पिरो
नेह की गाँठें लगा
खुद को सुमरनी
का मोती बना
मेरे किनारों को
स्वयं से मिला
कुछ इस तरह
धागे को माला बना
अस्तित्व धागे का
माला बने
माला की सम्पूर्णता
में सजे
जहाँ धागा माला में
विलीन हो जाये
अस्तित्व दोनों के
एकाकार हो जायें

27 टिप्‍पणियां:

  1. dhaage aur mala ke riste ko kya khoob joda hai aapne...
    achhi rachna....
    shubhkaamnaon ke saath...

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  2. कायल हूँ आपकी रचना का !!!

    आपका फैन

    सलीम ख़ान
    संयोजक
    Lucknow Bloggers' Association
    लख़नऊ ब्‍लॉगर्स असोसिएशन

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  3. वाकई लाजवाब अभिव्यक्ति लगी ।

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  4. बहुत खूब वंदना जी बेहतरीन कविता ह्रदय की भावनाओं को दिखाती हुई ,,,,, आत्मा की व्याकुलता और उसकी एकीकार होने की छट पटाहटको बखूबी आपने शब्द दिए है ,,, उस असीम नियन्ता और और असीम प्रवाहक में विलय होना ही अंतिम लक्ष है ,,,
    सादर
    प्रवीण पथिक
    9971969084

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  5. वंदना जी, आपकी कविताएँ नियमित रूप से पढ़ता रहा हूँ और उनमें अभिव्यक्त होने वाली अनुभव-वस्तु या जीवन-यथार्थ के सूक्ष्म रूपों की बिडम्बनामूलक पहचान के प्रति अभिभूत रहा हूँ | दरअसल आपकी कविताओं की यही पहचान बार-बार पढ़े जाने के लिए मुझे प्रेरित और 'मजबूर' करती रहीं हैं |

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  6. वंदना जी, आपकी कविताएँ नियमित रूप से पढ़ता रहा हूँ और उनमें अभिव्यक्त होने वाली अनुभव-वस्तु या जीवन-यथार्थ के सूक्ष्म रूपों की बिडम्बनामूलक पहचान के प्रति अभिभूत रहा हूँ | दरअसल आपकी कविताओं की यही पहचान बार-बार पढ़े जाने के लिए मुझे प्रेरित और 'मजबूर' करती रहीं हैं |

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  7. वंदना जी, आपकी कविताएँ नियमित रूप से पढ़ता रहा हूँ और उनमें अभिव्यक्त होने वाली अनुभव-वस्तु या जीवन-यथार्थ के सूक्ष्म रूपों की बिडम्बनामूलक पहचान के प्रति अभिभूत रहा हूँ | दरअसल आपकी कविताओं की यही पहचान बार-बार पढ़े जाने के लिए मुझे प्रेरित और 'मजबूर' करती रहीं हैं |

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  8. वंदना जी, आपकी कविताएँ नियमित रूप से पढ़ता रहा हूँ और उनमें अभिव्यक्त होने वाली अनुभव-वस्तु या जीवन-यथार्थ के सूक्ष्म रूपों की बिडम्बनामूलक पहचान के प्रति अभिभूत रहा हूँ | दरअसल आपकी कविताओं की यही पहचान बार-बार पढ़े जाने के लिए मुझे प्रेरित और 'मजबूर' करती रहीं हैं |

    जवाब देंहटाएं
  9. अधिक कहना मुश्किल है ...इस तरह की अभिव्यक्ति युक्त रचनाएं रचने में आपको कोई मात नहीं दे सकता ...एक छोटे से शब्द 'धागे' के इर्द-गिर्द घुमती आकी रचना अपनी तारीफ़ खुद कर रही है ...ऐसा लिखना आपने आप में अचरज की बात है ..../// हां आपके लिए यहाँ कुछ है ..सुझाव दे http://athaah.blogspot.com/2010/05/blog-post_28.html

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  10. जहाँ धागा माला में
    विलीन हो जाये
    अस्तित्व दोनों के
    एकाकार हो जायें


    बहुत सुन्दर शब्द दिए हैं.... सम्पूर्णता के लिए अस्तित्व की विलीनता आवशयक है

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  11. बहुत ही सुन्दर भाव लिए सुन्दर रचना!

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  12. ऐसा धागा होना उस नींव के पत्थर की तरह है जिसे देख तो कोई नहीं पाता पर सारी इमारत उसी पर खड़ी होती है.. बेहतरीन कविता मैम..

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  13. अगर मिला ही नहीं तो फिर वह माला ही कहाँ हुआ ? सटीक अभिव्यक्ति !

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  14. बहुत सुंदर लफ़्ज़ों के साथ.... लाजवाब अभिव्यक्ति....

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  15. अरे वाह जी बहुत सुंदर

    धन्यवाद

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  16. Hi..

    Dhaga man ka prem main..
    Aisa dikhe samaye..
    Dhaga, manka, ek ho..
    Ekroop ho jaaye..

    Sundar kavita..

    DEEPAK..



    Samay ho to mere blog par aakar "EK BHOLI SI LADKI" se awashya milen..

    www.deepakjyoti.blogspot.com

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  17. Vandana ji bahut sundar kavita...dhaage ki maansikta ko ujaaga r kiya...

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  18. धागा, माला और सुमेरु का प्रयोग करके आपने रचना बहुत ही सशक्त लिखी है!
    बहुत-बहुत बधाई!

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  19. कवि मन को बाखूबी उतारा है आपने रचना में .. धागे और मोती से जुड़ी माला संपूर्णता का एहसास करती है ... उतम रचना है ...

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  20. vandana ji
    kya sundar likha , kuchh aisa laga
    " tu hai vahi dil ne jise apna kaha
    mil jaye is tarah do lahre jis tarah
    ab ho na juda ye vada raha hai "

    is kaljayi rachna aur hindi sahity me yogdaan ke liye aapka hardik dhanywad

    jai shri krishan

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  21. बहुत उम्दा भाव! पसंद आई रचना!

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  22. bahut hi premmayee rachna....bilkul bhaav- vibhor kar dene waali..

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  23. धागा बनना - उत्तम चाह है, सारी तारीफ़ लूट ले जाने वाले भिन्न-भिन्न फूलों को थामे रह कर उन्हें सार्थक करना ही तो धागे को माला में बदलता है। फिर जब मनकों की सुमिरनी बनना हो तो धागा और भी महत्वपूर्ण - बहुत बढ़िया।

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