ज़िन्दगी व्यर्थ
वक्त की बर्बादी
नतीजा---शून्य
अगर किसी एक
को भी अपना ना बना पाया
या किसी का बन ना पाया
मानव!
व्यर्थ भूभार ही बना
अगर कोई एक
कर्म ना किया ऐसा
जिसे याद रखा जा सके
पूजा का ढोंग
तेरा व्यर्थ गया
ढकोसलों में
ढकी शख्सियत
तेरी व्यर्थ गयी
अगर किसी
एक आँख का
आँसू ना पोंछ सका
मानव !
तू तो
खुद से ही हार गया
अगर
"मैं " को ही ना जीत पाया
जीवन तेरा व्यर्थ ही गया
खाली हाथ आया
और खाली ही चल दिया
वक्त की बर्बादी
नतीजा---शून्य
अगर किसी एक
को भी अपना ना बना पाया
या किसी का बन ना पाया
मानव!
व्यर्थ भूभार ही बना
अगर कोई एक
कर्म ना किया ऐसा
जिसे याद रखा जा सके
पूजा का ढोंग
तेरा व्यर्थ गया
ढकोसलों में
ढकी शख्सियत
तेरी व्यर्थ गयी
अगर किसी
एक आँख का
आँसू ना पोंछ सका
मानव !
तू तो
खुद से ही हार गया
अगर
"मैं " को ही ना जीत पाया
जीवन तेरा व्यर्थ ही गया
खाली हाथ आया
और खाली ही चल दिया
वंदना जी आजकल तो आप सीधे सीधे मारक सवाल करती हैं
जवाब देंहटाएं।पाठक को लगता है बस ये उससे ही पूछा जा रहा है। आपकी इस मारक कविता से मेरे अंदर यह कविता उभरी-
सच है
आएं हैं खाली हाथ
जाएंगे भी खाली हाथ ही
हो सकता है किसी के न बन सकें हों,
पर इतना यकीं है कईयों को अपना बनाया है
न पोंछ सकें हो आंसू शायद
पर अपनी वजह से किसी की आंख में न आसूं आया है
भार तो फिर भी रहा है अपना
हां भू को हर वक्त आभार जताया है।
अगर किसी
जवाब देंहटाएंएक आँख का
आँसू ना
पोंछ सका
मानव !
तू तो
खुद से ही
हार गया
बिलकुल सच कहा है....व्यर्थ है फिर जीवन..
सारगर्भित रचना बधाई
जवाब देंहटाएंbhaut hee achhee rachna vandana ji...intersting
जवाब देंहटाएंbahut hi saarthak rachna! kai prashn uthati hai ye rachna jiske uttar hume dhoondhne honge.. eak aur achhi rachna ke liye badhai !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ....शिक्षा देती रचना....मैं ही जीतना मुश्किल है..
जवाब देंहटाएंवन्दना जी, बहुत सुन्दर उद्गार!
जवाब देंहटाएंजीवन व्यर्थ चला जाता है,
समय बर्बाद हो जाता है,
यदि अपना उसको ही न सके
जो जीवन में ही क्या?
मरने के बाद भी
अपना ही रहता है!
जय श्री कृष्णा!!!
बहुत सुन्दर ....
जवाब देंहटाएं*************
'पाखी की दुनिया' में आपका स्वागत है.
सचमुच, मानव के कुकृत्यों पर गम्भीर व्यंग्य किया है आपने।
जवाब देंहटाएं………….
अथातो सर्प जिज्ञासा।
संसार की सबसे सुंदर आँखें।
क्या कहूँ आपकी सभी रचनाएँ सुन्दर होती हैं
जवाब देंहटाएं----
तख़लीक़-ए-नज़र
तकनीक-दृष्टा
चाँद, बादल और शाम
गुलाबी कोंपलें
The Vinay Prajapati
यही तो जीवन का सार है!
जवाब देंहटाएं--
बहुत सुन्दर रचना है!
खाली हाथ आया और खाली ही चल दिया!
जवाब देंहटाएंखाली हाथ आया और खाली ही चल दिया!
जवाब देंहटाएंअतः सयत्न अस्तित्व को हल्का बनाये रखना चाहिये।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंsahi hai ji , ek dum sahi hai .. kya khoob likha hai aur aaj ke insaan ke man ko jhakjhorte hue likha hai .. badhayi
जवाब देंहटाएंअगर किसी
जवाब देंहटाएंएक आँख का
आँसू ना
पोंछ सका
मानव !
तू तो
खुद से ही
हार गया
अगर
"मैं " को ही
ना जीत पाया
जीवन तेरा
व्यर्थ ही गया
jeewan ko sarthkta aur uddeshy park sandesh deti jhkjhor dene wali ek atyant bhawprn rachna. Badhai.
दूसरों के कष्ट के प्रति संवेदनशील लोग ही सम्मान के अधिकारी होते हैं ! शुभकामनायें वंदना जी !
जवाब देंहटाएंumda rachna,..!!
जवाब देंहटाएंwaise sahi hi kaha aapne !
जवाब देंहटाएंसच कहा ... अगर इंसान इस नैन को जीत ले तो पूरी दुनिया जीती जा सकती है ... बहुत अनुपम अभिव्यक्ति है ...
जवाब देंहटाएंबहुत ही खरी खरी बातें सुना दी वंदना जी .....!!
जवाब देंहटाएंकविता जीवन की सच्चाई पेश करती है ....सही कहा आपने.....
रात गंवाई सोये के दिवस गवायो खाय
हिरा जन्म अमोल का कौड़ी बदले जाय