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बुधवार, 25 अगस्त 2010

"मैं" का व्यूहजाल

एक सिमटी 
दुनिया में 
जीने वाले हम
मैं, मेरा घर ,
मेरी बीवी,
मेरे बच्चे 
मैं और मेरा
के खेल में 
"मैं" की 
कठपुतली 
बन नाचते 
रहते हैं 
और तुझे 
दुनिया का 
हर उपदेश
समझा जाते हैं
देश के लिए
कुछ कर 
गुजरने की
ताकीद कर 
जाते हैं
मगर कभी 
खुद ना उस
पर चल पाते हैं
क्योंकि "मैं" के
व्यूहजाल से 
ना निकल 
पाते हैं
समाज का सशक्त 
अंग ना बन पाते हैं

22 टिप्‍पणियां:

  1. "मैं" की
    कठपुतली
    बन नाचते
    रहते हैं
    लीला अपार इस 'मैं' की

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  2. yah mai aur mera ka wyuhjal aisa hee hai. Jab tak isase bahar nikalte hain kuch karane kee kshamata hee jati rahatee hai.

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  3. बहुत सटीक रचना...टू द पाईंट,

    बधाई.

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  4. मै के इस जाल से जो निकल गया वह आम आदमी से एक स्तर ऊपर हो जाता है सुंदर रचना बधाई

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  5. बहुत अच्छी लगी आपकी रचना ।वाकई ’मैं’ से ऊपर उठ कर ’हम’ के बारे में सोचने की जरूरत है ।

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  6. बहुत अच्छी कविता।

    *** भारतीय एकता के लक्ष्य का साधन हिंदी भाषा का प्रचार है!

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  7. बहुत खूब वंदना जी ...किस विद्वान के शब्दों में ...यह "मैं" ही दोष है |

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  8. क्योंकि "मैं" के
    व्यूहजाल से
    ना निकल
    पाते हैं
    समाज का सशक्त
    अंग ना बन पाते हैं
    --
    जी हाँ!
    मैं का व्यूह जाल ऐसा ही होता है!
    --
    जो इससे निकल गया वो सँवर गया
    और जो इसमें फँस गया वो बिगड़ गया!

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  9. सच बयाँ कर दी आपने इस रचना के माध्यम से ,काश कि हम "मैं" से खुद को बाहर निकाल पाते ।

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  10. सही कहा है ..पर उपदेश कुशल बहुतेरे ....लोगों को कहते हैं लेकिन खुद अपने सीमित दायरे में बंधे होते हैं ..सटीक अभिव्यक्ति

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  11. मैं के व्युहुजाल इस बाजारवाद की दें है जो मनुष्य को समाज से काट कर रख दिया है.. इस बहुत ही संजीदा विषय पर ए़क संजीदा कविता..

    मैं" की
    कठपुतली
    बन नाचते
    रहते हैं
    और तुझे
    दुनिया का
    हर उपदेश
    समझा जाते हैं

    ये पंक्तिया वास्तव में सुंदर हैं..
    बहुत सुंदर !

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  12. मैं का चक्रव्यूह बड़ा अभेद्य होता है।

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  13. दीदी! ये अहृमभाव ही तो मानव की कमजोरी हैँ। अगर ये कमजोरी ना होती तो मानव मानव से प्रेम करता। और जहाँ प्रेम होता है वहाँ कुछ भी गलत हो ही नहीँ सकता हैँ। आपकी रचना अच्छे विचार प्रस्तुत करती हैँ। शुभकामनायेँ! -: VISIT MY BLOG :- जाने कैसे आती हैँ अच्छी नीँद। आप इस लेख को पढ़ने के लिए इस लिँक पर क्लिक कर सकती हैँ।

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  14. बहुत सुंदर रचना ... आज के हालात् को बयां करते हुए...

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  15. मै और मेरा परिवार ,
    इसी मे सिमट गया सारा संसार ;

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  16. छोटी और अच्छी रचना |बधाई
    आशा

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  17. आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति के प्रति मेरे भावों का समन्वय
    कल (30/8/2010) के चर्चा मंच पर देखियेगा
    और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा।

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  18. इस बार भी छोटे-छोटे बेल-बूटों से बुनी आपने यह कविता ...सच है वंदना जी "मैं" के व्यूह जाल से हम नहीं निकल पाते....लिखते रहें...

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  19. सच है ये मैं .. झूठा अहम ही इंसान को कुछ करने नही देता ... लाजवाब रचना है ...

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अपने विचारो से हमे अवगत कराये……………… …आपके विचार हमारे प्रेरणा स्त्रोत हैं ………………………शुक्रिया