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रविवार, 26 दिसंबर 2010

आहें सिलवटों की……………

ज़िन्दा हूं मैं...........


अब कहीं नही हो तुम
ना ख्वाब मे , ना सांसों मे
ना दिल मे , ना धडकन मे
मगर फिर भी देखो तो
ज़िन्दा हूं मैं 



ज़िन्दगी...........

ओढ कर ज़िन्दगी का कफ़न
दर्द मे भीगूँ  और नज़्म बनूँ
तेरी आहों मे भी सजूँ
मगर ज़िन्दगी सी ना मिलूँ



 

नींद .................

 
दर्द का बिस्तर है
आहों का तकिया है
नश्तरों के ख्वाब हैं
अब बच के कहाँ जायेगी
नींद अच्छी आयेगी ना





अंदाज़ ..............


प्रेम के बहुत अन्दाज़ होते हैं
सब कहाँ उनसे गुजरे होते हैं
कभी तल्ख कभी भीने होते हैं
सब मोहब्बत के सिले होते हैं









या मोहब्बत थी ही नहीं ...........  

बेशक तुम वापस आ गये
मगर वीराने मे तो
बहार आई ही नही
कोई नया गुल
खिला ही नही
प्रेम का दीप
जला ही नही
शायद मोहब्बत
का  तेल
खत्म हो चुका था
या मोहब्बत
थी ही नही
 


सोच मे हूं.........

क्या कहूं
सोच मे हूं
रिश्ता था
या रिश्ता है
या अहसास हैं
जिन्हे रिश्ते मे
बदल रहे थे
रिश्ते टूट सकते है
मगर अहसास
हमेशा ज़िन्दा
रहते हैं
फिर चाहे वो
प्यार बनकर रहें
या …………
बनकर

27 टिप्‍पणियां:

  1. खूब आहें हैं सिलवटों की ...नींद बेहतरीन है ..

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  2. अलग अंदाज़ में बेहतरीन प्रस्तुती.

    सादर

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  3. दर्द का बिस्तर है, आहों का तकिया
    नश्तर के ख़्वाब हैं, अब बच के कहां जायेगी,
    नींद अच्छी आयेगी ना।

    विरह के ग़म की, दर्द से लबरेज़ ,मन की गहराइयों को छूती अभिव्यक्ति।

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  4. बंदना जी , हर नज़्म बहुत ही गहरे भावों से भारी हुई.......सुंदर प्रस्तुति.
    फर्स्ट टेक ऑफ ओवर सुनामी : एक सच्चे हीरो की कहानी

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  5. सुन्दर अंदाज में बेहतरीन प्रस्तुति| धन्यवाद|

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  6. Karvatein badalte hue bistar me unki yaad aksar chali aati h tab aisi hi kuchh kavitayein janm leti hain... silvato ki aah se.. behad khubsoorat rachnayein :)

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  7. दर्द में भी जिंदगी ढूंढती हैं आप... सभी कवितायें अच्छी बन पड़ी हैं..

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  8. जिन्दगी और नींद का कोई जबाब नहीं ...शुक्रिया

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  9. एक शे’र अर्ज़ है,

    आंखे बरस रही हैं बरसात कैसे कहूँ
    तेरी वजह से दिन को रात कैसे कहूँ
    जो कुछ भी हो रहा है शामिल उसमें तू भी
    मैं सिर्फ इन को हालात कैसे कहूँ ।

    बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
    विलायत क़ानून की पढाई के लिए

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  10. रिश्ता बनना और टूटना, दोनों ही व्यग्रता की घड़ियाँ हैं। प्रवाह बना रहे, सम्बन्धों का।

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  11. आपकी कविताएं आशावादी रही हैं आज क्योंकर निराशा का कुछ-कुछ पुट (!).. जीवन सुबह का नाम है, रात का अंधकार नहीं

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  12. एहसासों में नहीं होते तुम तो कविता में नजर कैसे आते ....
    ओढ़ कर जिंदगी का कफ़न दर्द में भीगूँ ...दर्द के बिस्तर और आहों के तकिये पर नींद कहाँ आयी होगी ...
    आखिर मान ही लिया ना की एहसास जिन्दा रहते हैं हमेशा ...
    सभी क्षणिकाएं दर्द में डूबीं , दिल को छूती हुई

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  13. दर्द का बिस्तर है
    आहों का तकिया है
    नश्तरों के ख्वाब हैं
    अब बच के कहाँ जायेगी
    नींद अच्छी आयेगी ना... mast aayegi , achha tazurbaa hai ...
    bhai maan gaye is aaklan ko

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  14. यह शीर्षक शब्द-चित्र तो बहुत बढ़िया रहे!
    --
    परिभाषाएँ अच्छी लगीं!

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  15. सभी एक से बढ कर एक है वंदना जी!...किसे सुंदरतम कहा जाए!...

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  16. बेहतरीन

    आपसे भी ईर्ष्या होने लगी जी :)

    प्रणाम

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  17. वंदना जी,
    अहसासों का दर्द, दर्द की गहराई, गहराई की अभिव्यक्ति, अभिव्यक्ति का विशाल फ़लक जिस पर तारों की तरह बिखरे हैं आपकी भावनाओं के जुगनू !
    आपकी सारी कवितायें भाव पूर्ण और सम्प्रेषणता से भरी हैं !
    -ज्ञानचंद मर्मज्ञ

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  18. सभी कवितायें एक से बढ़कर एक हैं.

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  19. ओह सारी की सारी क्षणिकाएं कमाल की हैं...मूड के सारे रंग हैं...बहुत खूब

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  20. अलग अंदाज़ में बेहतरीन प्रस्तुती.
    आपको और आपके परिवार को मेरी और से नव वर्ष की बहुत शुभकामनाये ......

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  21. बहुत सुंदर।

    बहुत ही भावपूर्ण अभिव्यक्ति।

    सभी क्षणिकाएं ज़िंदगी के अलग-अलग रंगों का सुंदर चित्रण कर रही हैं।

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अपने विचारो से हमे अवगत कराये……………… …आपके विचार हमारे प्रेरणा स्त्रोत हैं ………………………शुक्रिया