ये कैसा गणतंत्र है प्यारे
ये कैसा गणतंत्र ?
जो करते घोटाले
देश को देते बेच
उसी को हार पहनाते हैं
देश की खातिर
जान गंवाने वाले तो
रूखी सूखी खाते हैं
ये कैसा गणतंत्र है प्यारे
ये कैसा गणतंत्र ?
चोर- बाजारी, सीना -जोरी
कपट, छल छिद्र जो बढ़ाते हैं
ऐसे धोखेबाजों को ही
सत्ता सिर पर बैठाती है
ईमानदार और मेहनतकश तो
रोज़ ही मुँह की खाते हैं
ये कैसा गणतंत्र है प्यारे
ये कैसा गणतंत्र?
स्वतंत्रता की अभिव्यक्ति भी
खरीदी बेची जाती है
त्राहि- त्राहि करती जनता
महंगाई से पिसती जाती है
हाहाकार मचा हो जहाँ
वहाँ राष्ट्रमंडल खेल कराते हैं
बची -खुची खुशियाँ भी
खेलों की भेंट चढाते हैं
सत्ता के लालच में जो
भ्रष्टाचारियों से हाथ मिलाते हैं
झूठे सच्चे वादों से
जनता को लूटे जाते हैं
भ्रष्टाचारी को ताज पहनाकर
अपनी शान बढ़ाते हैं
मगर गणतंत्र देने वालों
को ही ह्रदय से भूल जाते हैं
फिर कैसा गणतंत्र प्यारे
फिर कैसा गणतंत्र ?
सरहद पर जवान शहीद हुए जाते हैं
मगर पडोसी को न मुंहतोड़ जवाब दे पाते हैं
बस उसी को मुख्य अतिथि बनाते हैं
जो पडोसी को शह देता है
आतंकवाद के दंश से सुलगते
देश को न बचा पाते हैं
ईंट का जवाब पहाड़ से न दे पाते हैं
फिर कैसा गणतंत्र प्यारे
फिर कैसा गणतंत्र ?
ये कैसा गणतंत्र ?
जो करते घोटाले
देश को देते बेच
उसी को हार पहनाते हैं
देश की खातिर
जान गंवाने वाले तो
रूखी सूखी खाते हैं
ये कैसा गणतंत्र है प्यारे
ये कैसा गणतंत्र ?
चोर- बाजारी, सीना -जोरी
कपट, छल छिद्र जो बढ़ाते हैं
ऐसे धोखेबाजों को ही
सत्ता सिर पर बैठाती है
ईमानदार और मेहनतकश तो
रोज़ ही मुँह की खाते हैं
ये कैसा गणतंत्र है प्यारे
ये कैसा गणतंत्र?
स्वतंत्रता की अभिव्यक्ति भी
खरीदी बेची जाती है
त्राहि- त्राहि करती जनता
महंगाई से पिसती जाती है
हाहाकार मचा हो जहाँ
वहाँ राष्ट्रमंडल खेल कराते हैं
बची -खुची खुशियाँ भी
खेलों की भेंट चढाते हैं
सत्ता के लालच में जो
भ्रष्टाचारियों से हाथ मिलाते हैं
झूठे सच्चे वादों से
जनता को लूटे जाते हैं
भ्रष्टाचारी को ताज पहनाकर
अपनी शान बढ़ाते हैं
मगर गणतंत्र देने वालों
को ही ह्रदय से भूल जाते हैं
फिर कैसा गणतंत्र प्यारे
फिर कैसा गणतंत्र ?
सरहद पर जवान शहीद हुए जाते हैं
मगर पडोसी को न मुंहतोड़ जवाब दे पाते हैं
बस उसी को मुख्य अतिथि बनाते हैं
जो पडोसी को शह देता है
आतंकवाद के दंश से सुलगते
देश को न बचा पाते हैं
ईंट का जवाब पहाड़ से न दे पाते हैं
फिर कैसा गणतंत्र प्यारे
फिर कैसा गणतंत्र ?
सियासती फकीर जो न करादें वही कम है!
जवाब देंहटाएंदेश के प्ति वेदना को प्रकट करती सुन्दर रचना!
हरे देशवासी की यही पीड़ा है!
जवाब देंहटाएंआपने इस पर बहुत ही सशक्त लेखनी चलाई है!
आम जनता की वेदना को व्यक्त करती अच्छी रचना ...
जवाब देंहटाएंसरल शब्दों में एक आम आदमी की बात को बखूबी रख दिया आपने । सच ही तो है कि यए क्या कैसा गणतंत्र है प्यारे , ये कैसा गणतंत्र ...
जवाब देंहटाएंन जाने कौन दिशा बहका,
जवाब देंहटाएंभगा जाता है मेरा देश।
आम जनता की कहानी आपकी कलम से, अच्छी लगी बधाई
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 25-01-2011
जवाब देंहटाएंको ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
http://charchamanch.uchcharan.com/
पीड़ा दर्शाती सुन्दर कविता.
जवाब देंहटाएंयह हमारे और आम जनता के मन की व्यथा है। बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
जवाब देंहटाएंबालिका दिवस
हाउस वाइफ़
ये हमारी विडम्बना ही है कि हम सबकुछ जानते हुए भी खामोश रहते है। सही मायने में अब हम ओछी मानसिकता के गुलाम हो चुके है। करारा व्यंग्य। आभार।
जवाब देंहटाएंकाहे का गणतंत्र....
जवाब देंहटाएंतंत्र में गण है कहाँ आजकल?
यह कविता हर उस आदमी की जुबान हे जो इन नेताओ के हाथो लुटा हे, यानि इस देश के हर नागरिक की आवाज, बहुत सुंदर रचना धन्यवाद
जवाब देंहटाएंगणतंत्र दिवस ही हार्दिक शुभकामना के साथ कहता हूँ कि आपकी यह बेहतरीन कविता है.. आपकी चिंता में हम आपके साथ हैं..
जवाब देंहटाएंये कैसा गणतंत्र , वजा फरमाया आपने ।
जवाब देंहटाएंआपकी ये आवाज, सबकी आवाज है ।
जवाब देंहटाएंआम आदमी की पीड़ा
जवाब देंहटाएंsatya se saakshaatkaar karaati aapki ye khubsurat rachna!
जवाब देंहटाएंव्याप्त दुखों का सुन्दर चित्रण
जवाब देंहटाएंkaisa gantantra ... aaj tak nahi jaan sake
जवाब देंहटाएंवंदना जी,
जवाब देंहटाएंवाह....बेहतरीन व्यंग्य.....गीत रुपी ये पोस्ट वाकई शानदार बन पड़ी है....ये हर आम भारतीय से जुडी है .....बहुत सुन्दर|
एक कटु सत्य है यह ....।
जवाब देंहटाएंभ्रष्टाचारी को ताज पहनकर
जवाब देंहटाएंअपनी शान बढ़ाते हैं
मगर गणतंत्र देने वालों
को ही ह्रदय से भूल जाते हैं...
बहुत सार्थक प्रस्तुति...वर्त्तमान व्यवस्था पर सटीक टिप्पणी..
अब गणतंत्र कहां "अर्थतंत्र" और "स्वार्थतंत्र" हावी है। मन की पी्ड़ा का सुंदर चित्रण्।
जवाब देंहटाएंकितनो की सोच शब्द दे देती हैं आप...
जवाब देंहटाएंवाकई क्या हम गणतंत्र है???
सच... कितना कटु सत्य है ये...
बहुत-बहुत धन्यवाद...
गणतंत्र के लाभों से जब जनता वंचित रहती।
जवाब देंहटाएंतब तब उन्ही त्योहारों पर व्यथा जग जाती है।
desh ke haalaat ka sateek chitran aur varnan. bahut achhi rachna, badhai aur shubhkaamnaayen.
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक रचना ... आभार
जवाब देंहटाएंस्वतंत्रता की अभिव्यक्ति भी
जवाब देंहटाएंखरीदी बेची जाती है ...
bahot sateek baat kahi hai!
yah kaisa gantantr ?
जवाब देंहटाएं? to lagega hi.
बहुत सार्थक प्रस्तुति...वर्त्तमान व्यवस्था पर सटीक टिप्पणी
जवाब देंहटाएंबहुत प्रेरणा देती हुई सुन्दर रचना ...
गणतंत्र दिवस की हार्दिक बधाइयाँ !!
Happy Republic Day.........Jai HIND
कमाल की लेखनी है आपकी लेखनी को नमन बधाई
जवाब देंहटाएंआज के दौर की पीड़ा को दर्शाती एक शसक्त कविता
जवाब देंहटाएंसुंदर लेखन के लिए बहुत बहुत बधाई !!
वाकई ये कैसा गणतंत्र हैं ....जहां गरीबी से लड़ाई का जोखिम कोई नहीं उठाता उस पर राष्ट्रमंडल खेल कराए जातें है....
जवाब देंहटाएंयही हम भारतीयों की पीड़ा है...
सटीक रचना
आम जनता के मन की व्यथा का सुन्दर चित्रण
जवाब देंहटाएंसच कहा आपने , इतना भ्रष्टाचार देखकर तो सबसे पहले यही प्रश्न आता है दिमाग में - " ये कैसा गणतंत्र ? "
जवाब देंहटाएंगणतंत्र दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई ...
जवाब देंहटाएंगणतंत्र दिवस पर आपको भी शुभकामना
जवाब देंहटाएंसुंदर कविता. हमारे देश कि यही बदकिस्मती है
जवाब देंहटाएंaapke hirdey ki tees,ek tees deti hai jo hirdey ko tatolne ko majboor karti hai. shaayad hirdey ko tatolna aur anterman me khoj karna hi ek matra upay hai.Bhakti yug me bhi aisa hi hua hoga,jisse Nanak, kabir, sur,meerabai aadi ka udai hua hoga.jinka darsan aaj bhi hamara marg darsan karne me saksham hai
जवाब देंहटाएंस्वतंत्रता की अभिव्यक्ति भी
जवाब देंहटाएंखरीदी बेची जाती है
त्राहि- त्राहि करती जनता
महंगाई से पीसी जाती है
आईना दिखती रचना .....!!
छल,कपट,धोखेबाजों से नित मुंह की खाए जाते हैं
न जाने क्यों फिर भी हम गणतंत्र मनाये जाते हैं .....
vandna, aaj , hamare desh ki yahi ek sacchi tasweer hai .. bahut accha likha hai ... badhayi ..
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