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मंगलवार, 26 अप्रैल 2011

जो बचता है शून्यता के बाद भी

शून्य शून्य और सिर्फ़ शून्य
पता नही फिर भी लगता है
कुछ बचता है कहीं शून्य से परे
स्वंय का बोध
या कोई कडी
अगली सृष्टि की
अलग रचना की
अलग सरंचना की
कुछ तो ऐसा है जो
बचता है शून्य के बाद भी
शून्य से शून्य मे समाना
बदलना होगा इस विचार को
खोजना होगा उस एक तारे को
उस नव ब्रह्मांड को
उस नव निर्माण को

जो बचता है शून्यता के बाद भी

जो मिट्कर भी नही मिटता

37 टिप्‍पणियां:

  1. यह शून्‍यता कई सवाल ले आती है ... बहुत खूब कहा है आपने ।

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  2. खोजना होगा उस एक तारे को
    उस नव ब्रह्मांड को
    उस नव निर्माण को
    जो बचता है शून्यता के बाद भी
    जो मिट्कर भी नही मिटता

    बहुत ही सार्थक रचना....

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  3. शून्यता के बाद भी किसी चीज़ का बचना... गहरा अर्थ समेटे है अपने भीतर यह विम्ब... अच्छी मनोवैज्ञानिक कविता...

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  4. यह शून्‍यता कई सवाल ले आती है.....
    वह भी उत्तर विहीन प्रश्न , लाचार इन्सान फिर भी तलाश जारी है | सुन्दर अभिव्यक्ति, आभार

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  5. शून्य से शून्यता की ओर,
    शून्यता से परे...
    --
    शायद कुछ भी नहीं!
    --
    सुन्दर विवेचनायुक्त बढ़िया भावप्रणव रचना!

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  6. आपकी कविता को पढने के बाद सांख्य दर्शन की यह मान्यता याद आ गयी कि सृष्टि की उत्पत्ति शून्य से होती है और अंततः यह शून्य में विलीन हो जाती है. बहुत अच्छी कविता है..बधाई!
    -----देवेंद्र गौतम

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  7. खोजना होगा उस एक तारे को
    उस नव ब्रह्मांड को
    उस नव निर्माण को
    जो बचता है शून्यता के बाद भी
    जो मिट्कर भी नही मिटता....
    ..kya bhav hai....shunya ke bad ki khoj aapke hi bute ki baat hai Vandana ji...aap me hi hai wo kshamta !

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  8. शून्यता के बाद का शेष
    शायद यही स्वयं का बोध है

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  9. कुछ ना होने से ही
    कुछ होने को खोज लेना
    सार्थकता का प्रमाण है ....
    काव्य का शब्द-शब्द
    मननीय है .

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  10. दार्शनिक भावों से परिपूर्ण कविता।

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  11. शुन्य का महत्त्व तो विवेकानंद जी ने भी बताया है..
    शुन्यता के बाद सृजन होता है..अतः नवसृजन का प्रथम सोपान है शुन्यता..
    सुन्दर रचना आभार..

    आशुतोष की कलम से....: मैकाले की प्रासंगिकता और भारत की वर्तमान शिक्षा एवं समाज व्यवस्था में मैकाले प्रभाव :

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  12. Shunya ke bad ka vistaar nihshesh ho jata...shoonya ke pare man ashesh ho jaata...

    Badhayee

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  13. आध्यात्मिकता और रहस्य की बातें। सुंदर, अति सुंदर।

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  14. शून्य और अनन्त के बीच ही सारी सृष्टि आश्रय पा रही है.केवल वह ही पूर्ण है.
    पूर्ण इदं पूर्णमिद पूर्णात पूर्णम उदच्येत

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  15. शून्य के बाद भी कुछ शेष है ...
    इसकी की तलाश दर्शन और अध्यात्म है !

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  16. तलाश एक नए आयाम की ... बहुत सुंदर रचना

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  17. बचता है शून्य के बाद भी
    शून्य से शून्य मे समाना
    is gahanta ko samajhna aam logo ke vash me nahi

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  18. शून्यता के बाद भी कुछ और की तलाश ..बहुत सुन्दर ..

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  19. जो शून्य है वही पूर्ण है इस तरह तो शून्य में सब कुछ ही समाया हुआ है ! सुंदर कविता !

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  20. फिर यहाँ गहरा रहस्यवाद, मानवीयकरण के साथ विषय की जीवन्तता, कितनी आसानी से ये सब कर लेती हैं आप. वैचारिक दंद्वों को कविता का रूप दे देना वास्तव में अद्भुत! अद्भुत! है, मानवीय व्यंजनाओं को भाव देना और फिर लिपि ये एक बड़ा काम है. ये रचना आपकी दूसरी सबसे उत्कृष्ट रचना है. कहीं समीक्षक सिर्फ मंत्रमुग्ध हो जाते हैं, शायद तकनीकी रूप को छोड़ दिया जाय तो ये पिछले कई सालों में पढी दूसरी सर्वश्रेष्ठ रचना है, पहली भी आपकी ही थी.

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  21. जीवन के यथार्थ का बोध कराती सुन्दर कविता..बधाई.

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  22. सुंदर आध्यात्मिक रचना । शून्य के बाद भी शून्य ही तो बचता है शून्य यानि पूर्णत्व कोई द्विधा नही ।

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  23. शून्य के बाद ही संभावनाओं का समुद्र मिलता है।

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  24. बिलकुल, कुछ तो है, शून्य के बाद भी...

    दुनाली पर देखें
    चलने की ख्वाहिश...

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  25. उसी शून्य कि तो खोज सभी को है दोस्त काश वो शून्य मिल जाये |

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  26. खोजना होगा उस एक तारे को
    उस नव ब्रह्मांड को
    उस नव निर्माण को
    जो बचता है शून्यता के बाद भी

    खूबसूरत भाव...!!

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अपने विचारो से हमे अवगत कराये……………… …आपके विचार हमारे प्रेरणा स्त्रोत हैं ………………………शुक्रिया