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सोमवार, 20 जून 2011

आस्माँ रोज़ नही बदलता लिबास

तुम चाहते थे ना जीयूँ तुम्हारी तरह
लो आज तोड दीं सारी श्लाघायें
ढाल लो जिस सांचे मे चाहे
दे दो मनचाहा आकार
मगर फिर बाद मे ना कहना
नही चाहिये अपनी ही लिखी तहरीर
बदल दो फिर से कम्बल पुराना
जमीन रोज़ नही बदलती रूप
और तुम कहो कहीं फिर से
दे दो अपना पुराना सा
 रूप फिर से मुझे वापस
बताओ तो …………
एक बार टूटे साँचे कब जुडते हैं
कहाँ से लाउँगी मिट्टी को वापस
जानते हो ना……………
आस्माँ रोज़ नही बदलता लिबास

34 टिप्‍पणियां:

  1. एक बार टूटे साँचे कब जुडते हैं
    कहाँ से लाउँगी मिट्टी को वापस
    जानते हो ना……………
    आस्माँ रोज़ नही बदलता लिबास

    गहरे एहसास ....!!
    संवेदनशील रचना ...!!

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  2. एक बार टूटे सांचे कब जुडते हैं
    कहां से लाऊंगी मिट्टी को वापस
    जानते हो ना ..
    आस्‍मॉ रोज नहीं बदलता लिबास

    क्‍या खूब लिखा है !!

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  3. लेकिन इन्सान तो पल पल लिबास बदल लेता है। पुराना याद ही नही रखता। अच्छे भाव। शुभकामनायें।

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  4. धरती रूप बदलती है तो
    तहलका-बदहवासी |
    उबासासी ||
    आसमान लिबास बदलता है तो
    लू , शीत लहर, बरसात |
    बिजली, तूफ़ान
    कहर बरपाते दिन और रात |
    तो सोच लो --
    क्या जियूं तुम्हारी तरह ||
    या ---

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  5. बहुत सुन्दर रचना!
    रचना में समर्पण की भावना को
    प्रबलता से निभाया गया है!

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  6. बहुत बढ़िया लिखा है.वाह,क्या बात है,वंदना जी.

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  7. zameen roz nahi badalti roop,
    aur na hi oadhti hai dhoop...

    purane rukh ki chaah...aah...
    vandana ji bahut achha

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  8. मगर फिर बाद मे ना कहना
    नही चाहिये अपनी ही लिखी तहरीर
    बदल दो फिर से कम्बल पुराना
    जमीन रोज़ नही बदलती रूप

    गहन अनुभूति

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  9. एक बार टूटे साँचे कब जुडते हैं
    कहाँ से लाउँगी मिट्टी को वापस
    जानते हो ना……………
    आस्माँ रोज़ नही बदलता लिबास
    bahut hi badhiyaa

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  10. एक बार टूटे साँचे कब जुडते हैं
    टूटा तो नहीं जु
    ड़ता इसीलिये सहेजना होगा न टूटने के लिये
    बहुत सुन्दर भाव

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  11. भाव पूर्ण कविता ! लेकिन बदलाव मजबूरी से नहीं प्रेम से होता है....

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  12. बहुत खूब .. बदलाव की चाह वो भी अपने अनुसार अच्छी नहीं होती ...

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  13. गहन भाव .अच्छी लगी आपकी रचना.

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  14. सच अहि आदमी किसी से भी संतुष्ट नहीं है.....सुन्दर |

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  15. आस्माँ रोज़ नही बदलता लिबास
    इन शब्‍दों के लिये बधाई ..बहुत ही खूबसूरत पंक्ति ।

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  16. आसमा की तरह ही कोई नहीं बदल सकता लिबास , मिटटी जब आकार लेकर पक जाती है तो टूटती है
    संवेदनशील प्रतिवेदन शुभकामनाये

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  17. संवेदनशील रचना बहुत सुन्दर भाव...!!

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  18. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 21 - 06 - 2011
    को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..

    साप्ताहिक काव्य मंच-- 51 ..चर्चा मंच

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  19. एक बार टूटे सांचे कब जुडते हैं
    कहां से लाऊंगी मिट्टी को वापस
    जानते हो ना ..
    आस्‍मॉ रोज नहीं बदलता लिबास
    समर्पण के साथ अपने अस्तित्व को भी जिन्दा रखने की कोशिश अच्छी लगी

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  20. कहाँ से लाउँगी मिट्टी को वापस
    जानते हो ना……………
    आस्माँ रोज़ नही बदलता लिबास
    bahut sunder shabdon main likhi bemisaal rachanaa.badhaai sweekaren.

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  21. bahut sunder lines key saath app ney apney vichoor ko viyakyat kiya bahut sunder.

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  22. gehen vicharneey post.....un sabhi ko ise padh kar samjhna chahiye ki badlaav baar baar nahi ho sakta.

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  23. 'बताओ तो ..............

    एक बार टूटे सांचे कब जुड़ते हैं '

    ...........................गहन अंतर्भावों की सुन्दर प्रस्तुति

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  24. बहुत सुन्दर रचना| धन्यवाद|

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  25. यह हम सब को समझना चाहिए कि आसमान रोज लिबास नहीं बदला करता ..संवेदना से परिपूर्ण

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  26. बहुत सुंदर.
    घुघूती बासूती

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अपने विचारो से हमे अवगत कराये……………… …आपके विचार हमारे प्रेरणा स्त्रोत हैं ………………………शुक्रिया