पेज

शनिवार, 8 अक्टूबर 2011

बताओ कभी किया है तुमने ऐसा विषमयी अमृतपान ..............

मैं पी नहीं पाती
सच कहती हूँ
अब जी नहीं पाती
अमृत पीने की आदत जो नहीं
उम्र गुजर गयी
गरल पीते- पीते
बताओ जिसने सिर्फ
विष ही पीया हो
जिसके रोम रोम में
सिर्फ विष का
ज्वर ही चढ़ा हो
जिसने ना कभी
अमृत का स्वाद चखा हो
जिसे छूने वाला भी
खुद विषबेल बन गया हो
बताओ तो ज़रा
उसे कैसे अमृत भायेगा
क्या वो भी विष ना बन जायेगा
एक ऐसा अमृतमय विष
जिसे जितना पियो
उतना ही विषमय होता जायेगा
बताओ कोई अब कैसे मरे?
अमर होने के लिए
जरूरी नहीं अमृत का होना
विष भी अमृत बन जाता है
जब कोई मीरा बन जाता है
जिसे कृष्ण विष में भी दिख जाता है
बताओ कभी किया है तुमने ऐसा विषमयी अमृतपान ..............
जीने के लिए साँसों का होना ही काफी होता है

34 टिप्‍पणियां:

  1. मीरा जैसा प्रेम हो तो विष भी अमृत हो जाता है।

    जवाब देंहटाएं
  2. फुर्सत के कुछ लम्हे--
    रविवार चर्चा-मंच पर |
    अपनी उत्कृष्ट प्रस्तुति के साथ,
    आइये करिए यह सफ़र ||
    चर्चा मंच - 662
    http://charchamanch.blogspot.com/

    जवाब देंहटाएं
  3. अमर होने के लिए
    जरूरी नहीं अमृत का होना
    विष भी अमृत बन जाता है
    बहुत खूब .. सुन्दर रचना

    जवाब देंहटाएं
  4. जरूरी नहीं अमृत का होना
    विष भी अमृत बन जाता है
    जब कोई मीरा बन जाता है
    जिसे कृष्ण विष में भी दिख जाता है
    बताओ कभी किया है तुमने ऐसा विषमयी अमृतपान ..............

    वाह! अब आप ऐसा विषपान करा ही रहीं हैं तो कर लेते हैं जी.आपकी अभिव्यक्ति में भी कृष्ण ही दिखलाई दे रहा है,वंदना जी.

    जवाब देंहटाएं
  5. आपकी रचना एक नई दृष्टि दे रही है पुरातन प्रतीकों को देखने के लिए. सुन्दर कविता

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत बढ़िया..सुन्दर अभिव्यक्ति...

    जवाब देंहटाएं
  7. जब कोई मीरा बन जाता है
    जिसे कृष्ण विष में भी दिख जाता है
    बताओ कभी किया है तुमने ऐसा विषमयी अमृतपान

    वाह...बहुत बढ़िया लिखा है...मीरा बन के तो देखे कोई पहले...फिर विष और अमृत की बात करे...

    जवाब देंहटाएं
  8. उम्र गुजर गयी
    गरल पीते- पीते
    बताओ जिसने सिर्फ
    विष ही पीया हो
    जिसके रोम रोम में
    सिर्फ विष का
    ज्वर ही चढ़ा हो
    जिसने ना कभी
    अमृत का स्वाद चखा हो
    जिसे छूने वाला भी
    खुद विषबेल बन गया हो
    बताओ तो ज़रा
    उसे कैसे अमृत भायेगा... kya kahun , bas soch rahi hun

    जवाब देंहटाएं
  9. "विष भी अमृत बन जाता है। जब कोई मीरा बन जाता है।" वसुदेवं सुतं देवम कंस चारूण मर्दनम। देवकी परमानंदम कृष्णम वंदे जगत्गुरुं।" मीरा जैसी भक्ति की शक्ति……!!!! सुंदर प्रस्तुति॥

    जवाब देंहटाएं
  10. विष भी अमृत बन जाता है।बहुत खुब।
    सही और सटीक बात।धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  11. प्रेम में विष को अमृत करना प्रेम को नए आयाम पर ले जाता है.

    अद्भुत प्रस्तुति.

    जवाब देंहटाएं
  12. सुन्दर भाव और समर्पण की रचना .

    जवाब देंहटाएं
  13. सुन्दर भाव और समर्पण की रचना .

    जवाब देंहटाएं
  14. प्रेम में सब कुछ अमृत हो जाता है ....

    जवाब देंहटाएं
  15. जरूरी नहीं अमृत का होना
    विष भी अमृत बन जाता है
    जब कोई मीरा बन जाता है
    जिसे कृष्ण विष में भी दिख जाता है
    बताओ कभी किया है तुमने ऐसा विषमयी अमृतपान


    वाह! बहुत ही गहन-गूढ़ अभिव्यकि जहा अभिधा से काम नहीं चलने वाला. लक्षणा और व्यंजना का उपयग किये बिना इस दार्शनिक रचना को समझ पाना कठिन है. लेकिन सारा सुनारी इसकी सहज अभिव्यकि को है. इतनी गूढ़ बात और इतनी सहजता? यह गुर. यह कला तो अनुकरणीय है. बधाई..ढेर सारी बढ़िया इस रचना हेतु. और उन रचनाओं हेतु भी जिसे आपने प्रतियोगिता में सम्मिलित किया है. अग्रिम शुभ कामनाये भावी विजय श्री के लिए.

    जवाब देंहटाएं
  16. विष भी अमृत बन जाता है
    जब कोई मीरा बन जाता है

    अनूठी और सुंदर रचना ,बधाई ।

    जवाब देंहटाएं
  17. सिष का प्याला राणा ने भेजा
    पीवत मीरा हांसी रे...

    सुन्दर रचना...
    सादर आभार....

    जवाब देंहटाएं
  18. बिल्कुल सही लिखा है आपने! सटीक पंक्तियाँ! बेहतरीन रचना

    जवाब देंहटाएं
  19. बहुत कुछ सोचने पर विवश करती रचना.. क्यों किसी को विष पीने पर बाध्य होना पड़ता है.....

    जवाब देंहटाएं
  20. जरूरी नहीं अमृत का होना
    विष भी अमृत बन जाता है
    जब कोई मीरा बन जाता है
    जिसे कृष्ण विष में भी दिख जाता है

    ....बहुत उत्कृष्ट भावमयी अभिव्यक्ति...

    जवाब देंहटाएं
  21. मीरा के प्रेम ने विष को भी अमृत बना दिया।
    गहन अर्थयुक्त बेहद प्रभावशाली कविता।

    जवाब देंहटाएं
  22. अमर होने के लिए
    जरूरी नहीं अमृत का होना
    विष भी अमृत बन जाता है
    क्या बात है वन्दना जी. बहुत सुन्दर रचना.

    जवाब देंहटाएं
  23. अमर होने के लिये जरुरी नहीं अमृत का होना....वाह !!! बहुत सुंदर भाव, बहुत सुंदर रचना.
    अमृत को देखा नहीं , बस माना है
    लेकिन विष को देखा और पहचाना है.

    जवाब देंहटाएं
  24. मीरा सी भक्ति हो तो तो विष भी अमृत हो जाए!
    सुन्दर अभिव्यक्ति!

    जवाब देंहटाएं
  25. बहुत बढ़िया लगा! बेहद ख़ूबसूरत ! शानदार प्रस्तुती!
    मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
    http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
    http://seawave-babli.blogspot.com

    जवाब देंहटाएं
  26. vandana ji spast likhkar logo tak sachchayee phuchane ka sukriya

    madhu tripathi MM
    http://kavyachitra.blogspot.com

    जवाब देंहटाएं

अपने विचारो से हमे अवगत कराये……………… …आपके विचार हमारे प्रेरणा स्त्रोत हैं ………………………शुक्रिया