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सोमवार, 5 दिसंबर 2011

मगर ओ पुरुष ! तू नहीं अब बच पायेगा



दोस्तों इस रचना का जन्म मायामृग जी की फेसबुक  पर लिखी चंद पंक्तियों के कारण हुआ जो इस प्रकार थीं ...........
........
उसने कहा, स्‍त्री ! तुम्‍हारी आंखों में मदिरा है...तुम मुस्‍कुरा दीं। 

उसने कहा, स्‍त्री ! तुम्‍हारे चलने में नागिन का बोध होता है...तुम्‍हें नाज़ 

हुआ खुद पर....। 

अब वह कहता है तुम एक नशीली आदत और ज़हरीली नागिन के सिवा 

कुछ नहीं....। 

(ओह..इसका यह भी तो अर्थ होता है)

.....तुम्‍हें पहले सोचना था स्‍त्री...उसकी तारीफ पर सहमति देने से 

पहले....


ये थे उनके शब्द और अब ये हैं मेरे उदगार ............







क्या हुआ जो गर दे दी सहमति
क्या हुआ जो गर दे दिया उसके पौरुष को सम्बल
जानती हूँ …………उसके जुल्म की इंतेहा 
और अपने दीर्घ फ़ैले व्यास
कहाँ जायेगा और कब तक भोग पायेगा
कब तक मोहपाश से बच पायेगा
जहाज का पंछी है 
लौट्कर वापिस जरूर आयेगा
तब ना उसका दंभ ठहर पायेगा
ना उसका पौरुष कहीं आयाम पायेगा
तब ना नागिन कह पायेगा 
ना मदिरापान कर पायेगा
उस दिन उसे नारीशक्ति की अहमियत का
स्वयं पता चल जायेगा
तब वो ना हँस पायेगा
ना रो पायेगा
गर है आदत नशीली तो क्या हुआ
गर है नागिन ज़हरीली तो क्या हुआ
बचकर ओ पुरुष ! तू किधर जाएगा
जो भी तूने बनाया ........बन गयी
अब बता खुद से नज़र कैसे चुराएगा
क्या नारी जैसा धैर्य और साहस 
फिर कहीं पायेगा
जो खुद से खुद को छलवाती है 
तेरे हर छल को जानते हुए 
तेरी झूठी तारीफों के पुलों की
तेरे हर सब्जबाग की 
नस - नस पहचानती है 
ये सब जानते हुए भी 
जो खुद बन जाये तेरी चाहतों की तस्वीर
और फिर इतना करने पर भी 
 ना तू कहीं चैन पाए
उसका मुस्कुराता खिलखिलाता चेहरा देख
तेरा पौरुष आहत हो जाए
आखिर कब तक बेड़ियाँ पहनायेगा
देखना एक दिन इस मकडजाल में
तू खुद ही फँस जाएगा
अपने चक्रव्यूह में तू खुद को ही घिरा पायेगा 
मगर ओ पुरुष ! तू नहीं अब बच पायेगा 

41 टिप्‍पणियां:

  1. बेहद सशक्‍त भावों के साथ, सार्थक व सटीक अभिव्‍यक्ति ... आभार ।

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  2. vandnaajee
    purush to pahle se hee bahut fansaa huaa hai
    bhram jaal mein jee rahaa hai

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  3. ज़हाज का पंछी है ,वापस लौट कर जरूर आएगा
    तब सब समझ आ जायेगा ......
    सटीक....!
    शुभकामनायें!

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  4. गहरी अभिव्‍यक्ति।
    सुंदर प्रस्‍तुतिकरण।

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  5. सहमति को तू शब्द समझता,
    भावों की अनदेखी क्यों ??
    दुष्टा और कलंकिन बोला,
    दिखा रहा नित शेखी क्यों ??

    नागिन और नशे का संगम,
    माँ में भी क्या देखा था --
    लगता पावन रूप अगर तो,
    ऐसी लेखा-लेखी क्यों ??

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  6. कमल ही है यह ...बहुत सशक्त ...बहुत सशक्त ...तारीफ़ नहीं ...फूलों की वर्षा कर रही हूँ बस .....

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  7. सटीक और सशक्त अभिव्यक्ति ....आभार

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  8. वाह ... सुन्दर अभिव्यक्ति ... पहले पुरुष ही नारी को अपने शब्द जाल में फंसाता है फिर जब खुद फंसता है तो चिल्लाता है :):)

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  9. अच्छा जवान दिया.. सार्थक व सटीक अभिव्‍यक्ति ... आभार ।

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  10. आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल मंगलवार के चर्चा मंच पर भी की गई है! अधिक से अधिक पाठक आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो
    चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।

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  11. पर वंदना जी !
    वो दिन कब आएगा ??:(
    क्या इंतज़ार में स्त्री के सब्र का घड़ा भी न छलक जायेगा??
    बेहद सशक्त रचना ..एक एक शब्द तीर सा...मजा आ गया

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  12. अगर पुरुष की नजर में नारी का यही स्थान है तो ये उसका सबसे सटीक उत्तर है. कितना अभिमानी है ये, जन्म उसी से पाता है, राखी भी बंधवाता है और उसके आँचल में छिपकर अपने गम भी भुलाता है लेकिन उसका अहंकार उसी को नागिन और जहरीली बताता है.

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  13. बहुत ही खुबसूरत....सशक्त और प्रभावशाली रचना.....

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  14. mail dwara prapt

    shikha varshney ने आपकी पोस्ट " मगर ओ पुरुष ! तू नहीं अब बच पायेगा " पर एक टिप्पणी छोड़ी है:

    पर वंदना जी !
    वो दिन कब आएगा ??:(
    क्या इंतज़ार में स्त्री के सब्र का घड़ा भी न छलक जायेगा??
    बेहद सशक्त रचना ..एक एक शब्द तीर सा...मजा आ गया

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  15. वाह जवाबी मुकाबला.......सुन्दर शब्दों में आपने व्याख्या की है|

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  16. isiliye naari shakti ko bhagwat shakti maanta hai..bhagwan apne dwar par aaye hazaron char sau beeson ke pooja ka matlab jaanta hai..magar jab tak bhakti sab kuch..jis din hoshiyaari ..usi din aaukat dikha dega..aapka jawab bada hee jabardast laga..sadar badhayee aaur amantran ke sath

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  17. सटीक लिखा है ... सच में मुंह-तोड़ जवाब है ...

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  18. वाह वंदना जी , क्या खूब लिखा है ...बढ़िया ..बढ़िया बहुत ही बढ़िया है.

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  19. वाह.....कमाल है वंदना जी। ये पंक्‍ति‍यां मैंने भी पढ़ी थी मगर......बहुत उम्‍दा लि‍खा हे आपने। बधाई।

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  20. bahut sateek aur bebaak rachna...sarthak lekhan ke liye badhaai..

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  21. @मगर ओ पुरुष ! तू नहीं अब बच पायेगा.

    फ़िर तो सारा टंटा ही खत्म हो जाएगा। :))

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  22. समय पलटी मार रहा है। दुबक के रहना होगा!

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  23. wah wah...kya palat waar kiya hai... maza aa gaya....

    fursat ke kuch pal mere blog ke saath bhi bitaiye...achha lagega..

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  24. एक एक शब्द पूरा एक सवाल है ...
    जवाब देने का साहस तो करे कोई ...
    शानदार प्रस्तुति !

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  25. सार्थक व सटीक अभिव्यक्ति....

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  26. कुछ ठोकर सी मारती कविता.... सवाल उठाती... बहुत सुन्दर!

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