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बुधवार, 25 जनवरी 2012

अनायास ही उमड़ आतीं हैं क्यूँ - कुछ स्मृतियाँ



दोस्तों 



कल प्रतुल मिश्र जी ने दो पंक्ति दीं और उस पर कुछ लिखने को 


कहा तो उस वक्त जो भाव उमडे आपके समक्ष रख रही हूँ 




ये थे उनके शब्द : 




"Pratul Misra Vandana Gupta ji ...............अनायास ही उमड़ 


आतीं हैं क्यूँ - कुछ स्मृतियाँ..

इस पर आपकी अभिव्यक्तियाँ का हम इन्तजार करेंगे यदि संभव हो सके



 तो....................."


और ये रहे मेरे भाव :…………







अनायास ही उमड़ 


आतीं हैं क्यूँ - कुछ स्मृतियाँ

बिना कारण तो 

कुछ नहीं होता

जरूर किसी ने दखल दिया होगा

तभी स्मृति की लौ जगमगाई होगी

वरना राखों के ढेर में सीप नहीं पला करते



अनायास ही उमड़ 

आती हैं क्यूँ -कुछ स्मृतियाँ

शायद आहटों ने दस्तक दी होगी

या सन्नाटा खुद से घबरा गया होगा

वरना बिखरे अस्तित्व यूँ ही नहीं जुदा करते




अनायास ही  उमड़

आती हैं क्यूँ -कुछ स्मृतियाँ 

ओह! शायद उसी युग की 

कोई भूली बिसरी याद बाकी है

जिसमे तुमने वादा लिया था 

इंतज़ार की चौखट पर खड़े- खड़े 

और आज वादा पूरा करने का 

मुझे मुझसे चुराने का 

सिर्फ तुम्हारी हो जाने का 

वक्त आ गया है ........है ना 

मुसाफिर ! जो वक्त चला जाता है

वो कब लौट कर आया है

कल का सच तुम थे

आज का सच मैं हूँ

हाँ .........मैं किसी की विवाहिता 

बताओ कैसे तुम्हारे इंतज़ार पर

पूर्णता की मोहर लगा दूं 

स्मृतियों पर मैंने ताले लगाये थे

लगता है जमींदोज़ करनी होंगी 

स्वप्न और हकीकत में बस 

यही फर्क होता है 

कल आज नहीं हो सकता

और आज कल नहीं बन सकता

ये अब तुम्हें भी समझना होगा

और यूँ  मेरी स्मृतियों में आकर ना दस्तक  देना होगा 



ज़िन्दगी ना भूतकाल में होती है ना भविष्य में

वर्तमान में जीना अब तुम्हें  भी सीख लेना चाहिए 


एक इम्तिहान ये भी देकर देख लेना .........मुसाफिर !

28 टिप्‍पणियां:

  1. अचानक नहीं ... उसके बीज अपने समय से अंकुरित होते हैं

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  2. बिखरे अस्तित्व यूँ ही नहीं जुदा करते.... वाह !

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  3. अनायास उमडती स्मृतियाँ और आपकी रचना ..बहुत सुन्दर ..

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  4. ये स्मृतियाँ अनायास ही नहीं आती ... दूर गहरे मेकन कहीं जी रही होती हैं ये बस आते जाते हम ही उनके सामने आ जाते हैं ...
    आपने बहुत ही लाजवाब लिखा है वंदना जी ...

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  5. एक इम्तिहान ये भी देकर देख लेना ...बेहतरीन अभिव्‍यक्ति ।

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  6. क्या बात है जी.
    बढ़िया भावाभिव्यक्ति.
    आभार.

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  7. इसे कहते हैं तिल का ताड़ बनाना :-))

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  8. ठीक कहा आपने...कोई न कोई कारण तो होता ही है कि स्मृतियां उमड़ आती है!...बहुत खूब!

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  9. स्मृतियों का क्या है जब देखो उमड़ आती हैं..पर आपने कमाल लिखा है ..गज़ब..

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  10. सच है स्मृतियाँ यूँ ही नहीं आतीं...बहुत सुन्दर भावमयी प्रस्तुति..आभार

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  11. बेहतरीन भाव ... बहुत सुंदर रचना.......

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  12. वरना राखों के ढेर में सीप नहीं पला करते


    अद्भुत रचना..बधाई वंदना जी

    नीरज

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  13. कहाँ से शुरु ,कहाँ पे खतम, वाह !!! बेहतरीन रचना....

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  14. बहुत बेहतरीन और प्रशंसनीय.......
    मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।

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  15. बढिया प्रस्‍तुति।

    गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं....

    जय हिंद...वंदे मातरम्।

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  16. बेहतरीन प्रस्तुती....
    गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएँ.

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  17. बहुत सुंदर भावपूर्ण प्रस्तुति|
    गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें|

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  18. सुन्दर भावपूर्ण रचना...गणतन्त्र दिवस की हार्दिक. शुभ कामनाएं

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  19. स्मृतियाँ का संसार निराला है, कब न जाने कौन सी प्रकट हो जाये..

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  20. वन्दना जी, इतनी सुंदर कविता आपने यूँ ही नहीं बना डाली...इसके भी बीज कहीं पड़े होंगे भीतर और आज जब अवसर मिला तो फूट आये...बधाई!

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  21. he devi

    is kavita ko main tumhare sabse acchi 5 kavitao me rakhna chahunga . its an amazing nazm . the words moves down to heart .

    kudos to your vandna

    thanks musafir !!!

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  22. हकीकत यही है ज़िन्दगी आगे की तरफ है पीछे रुका हुआ पानी है ,सबकी यही कहानी है .सुन्दर भाव पूर्ण पोस्ट दो टूक बेबाक .

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