दोस्तों
कल प्रतुल मिश्र जी ने दो पंक्ति दीं और उस पर कुछ लिखने को
कहा तो उस वक्त जो भाव उमडे आपके समक्ष रख रही हूँ
ये थे उनके शब्द :
"Pratul Misra Vandana Gupta ji ...............अनायास ही उमड़
आतीं हैं क्यूँ - कुछ स्मृतियाँ..
इस पर आपकी अभिव्यक्तियाँ का हम इन्तजार करेंगे यदि संभव हो सके
तो....................."
और ये रहे मेरे भाव :…………
आतीं हैं क्यूँ - कुछ स्मृतियाँ
बिना कारण तो
कुछ नहीं होता
जरूर किसी ने दखल दिया होगा
तभी स्मृति की लौ जगमगाई होगी
वरना राखों के ढेर में सीप नहीं पला करते
अनायास ही उमड़
आती हैं क्यूँ -कुछ स्मृतियाँ
शायद आहटों ने दस्तक दी होगी
या सन्नाटा खुद से घबरा गया होगा
वरना बिखरे अस्तित्व यूँ ही नहीं जुदा करते
अनायास ही उमड़
आती हैं क्यूँ -कुछ स्मृतियाँ
ओह! शायद उसी युग की
कोई भूली बिसरी याद बाकी है
जिसमे तुमने वादा लिया था
इंतज़ार की चौखट पर खड़े- खड़े
और आज वादा पूरा करने का
मुझे मुझसे चुराने का
सिर्फ तुम्हारी हो जाने का
वक्त आ गया है ........है ना
मुसाफिर ! जो वक्त चला जाता है
वो कब लौट कर आया है
कल का सच तुम थे
आज का सच मैं हूँ
हाँ .........मैं किसी की विवाहिता
बताओ कैसे तुम्हारे इंतज़ार पर
पूर्णता की मोहर लगा दूं
स्मृतियों पर मैंने ताले लगाये थे
लगता है जमींदोज़ करनी होंगी
स्वप्न और हकीकत में बस
यही फर्क होता है
कल आज नहीं हो सकता
और आज कल नहीं बन सकता
ये अब तुम्हें भी समझना होगा
और यूँ मेरी स्मृतियों में आकर ना दस्तक देना होगा
ज़िन्दगी ना भूतकाल में होती है ना भविष्य में
वर्तमान में जीना अब तुम्हें भी सीख लेना चाहिए
एक इम्तिहान ये भी देकर देख लेना .........मुसाफिर !
अचानक नहीं ... उसके बीज अपने समय से अंकुरित होते हैं
जवाब देंहटाएंkaun see uaad kab sataayegee
जवाब देंहटाएंkisi ko pataa nahee
बढिया प्रस्तुति ...
जवाब देंहटाएंबिखरे अस्तित्व यूँ ही नहीं जुदा करते.... वाह !
जवाब देंहटाएंअनायास उमडती स्मृतियाँ और आपकी रचना ..बहुत सुन्दर ..
जवाब देंहटाएंये स्मृतियाँ अनायास ही नहीं आती ... दूर गहरे मेकन कहीं जी रही होती हैं ये बस आते जाते हम ही उनके सामने आ जाते हैं ...
जवाब देंहटाएंआपने बहुत ही लाजवाब लिखा है वंदना जी ...
एक इम्तिहान ये भी देकर देख लेना ...बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंक्या बात है जी.
जवाब देंहटाएंबढ़िया भावाभिव्यक्ति.
आभार.
इसे कहते हैं तिल का ताड़ बनाना :-))
जवाब देंहटाएंठीक कहा आपने...कोई न कोई कारण तो होता ही है कि स्मृतियां उमड़ आती है!...बहुत खूब!
जवाब देंहटाएंस्मृतियों का क्या है जब देखो उमड़ आती हैं..पर आपने कमाल लिखा है ..गज़ब..
जवाब देंहटाएंबढिया प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंसच्चे मनसे लिखा है ...बहुत खूबसूरत है
हटाएंसच है स्मृतियाँ यूँ ही नहीं आतीं...बहुत सुन्दर भावमयी प्रस्तुति..आभार
जवाब देंहटाएंबेहतरीन भाव ... बहुत सुंदर रचना.......
जवाब देंहटाएंsmartiyan bin karan nahi umadti...bahut sundar rachna ban padi hai..
जवाब देंहटाएंवरना राखों के ढेर में सीप नहीं पला करते
जवाब देंहटाएंअद्भुत रचना..बधाई वंदना जी
नीरज
कहाँ से शुरु ,कहाँ पे खतम, वाह !!! बेहतरीन रचना....
जवाब देंहटाएंअच्छी कविता रच डाली आपने।
जवाब देंहटाएंबहुत बेहतरीन और प्रशंसनीय.......
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
बढिया प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंगणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं....
जय हिंद...वंदे मातरम्।
बेहतरीन प्रस्तुती....
जवाब देंहटाएंगणतंत्र दिवस की शुभकामनाएँ.
बहुत सुंदर भावपूर्ण प्रस्तुति|
जवाब देंहटाएंगणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें|
सुन्दर भावपूर्ण रचना...गणतन्त्र दिवस की हार्दिक. शुभ कामनाएं
जवाब देंहटाएंस्मृतियाँ का संसार निराला है, कब न जाने कौन सी प्रकट हो जाये..
जवाब देंहटाएंवन्दना जी, इतनी सुंदर कविता आपने यूँ ही नहीं बना डाली...इसके भी बीज कहीं पड़े होंगे भीतर और आज जब अवसर मिला तो फूट आये...बधाई!
जवाब देंहटाएंhe devi
जवाब देंहटाएंis kavita ko main tumhare sabse acchi 5 kavitao me rakhna chahunga . its an amazing nazm . the words moves down to heart .
kudos to your vandna
thanks musafir !!!
हकीकत यही है ज़िन्दगी आगे की तरफ है पीछे रुका हुआ पानी है ,सबकी यही कहानी है .सुन्दर भाव पूर्ण पोस्ट दो टूक बेबाक .
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