महिला दिवस और स्त्री सशक्तिकरण
कितना सुन्दर लगता है ना जब हम सुनते हैं आज महिला दिवस है , स्त्री सशक्तिकरण का ज़माना है , एक शीतल हवा के झोंके सा अहसास करा जाते हैं ये चाँद लफ्ज़ . यूँ लगता है जैसे
सारी कायनात को अपनी मुट्ठी में कर लिया हो और स्त्री को उसका सम्मान और स्वाभिमान वापस मिल गया हो और सबने उसके वर्चस्व को स्वीकार कर लिया हो एक नए जहान का निर्माण हो गया हो ...............कितना सुखद और प्यारा सा अहसास !
पर क्या वास्तव में दृश्य ऐसा ही है ? कहीं परदे के पीछे की सच्चाई इससे इतर तो नहीं ?
ये प्रश्न उठना स्वाभाविक है क्योंकि हम सभी जानते हैं वास्तविकता के धरातल पर कटु सत्य ही अग्निपरीक्षा देता है और आज भी दे रहा है . स्त्री मुक्ति, स्त्री दिवस , महिला सशक्तिकरण सिर्फ नारे बनकर रह गए हैं . वास्तव में देखा जाये तो सिर्फ चंद गिनी चुनी महिलाओं को छोड़कर आम महिला की दशा और दिशा में कोई खास परिवर्तन नहीं आया है फिर चाहे वो देशी हो या विदेशी . विश्व पटल पर महिला कल भी भोग्या थी आज भी भोग्या ही है सिर्फ उसकी सजावट का , उसे पेश करने का तरीका बदला है . पहले उसे सिर्फ और सिर्फ बिस्तर की और घर की शोभा ही माना जाता था और आज उसकी सोच में थोडा बदलाव देकर उसका उपभोग किया जा रहा है , आज भी उसका बलात्कार हो रहा है मगर शारीरिक से ज्यादा मानसिक . शारीरिक तौर पर तो उसे विज्ञापनों की गुडिया बना दिया गया है तो कहीं देह उघाडू प्रदर्शन की वस्तु और मानसिक तौर पर उसे इसके लिए ख़ुशी से सहमत किया गया है तो हुआ ना मानसिक बलात्कार जिसे आज भी नारी नहीं जान पायी है और चंद बौद्धिक दोहन करने वालों की तश्तरी में परोसा स्वादिष्ट पकवान बन गयी है जिसका आज भी मानसिक तौर पर शोषण हो रहा है और उसे पता भी नहीं चल रहा .
सोच से तो आज भी स्त्री मुक्त नही है ………आज भी वो प्रोडक्ट के रूप मे इस्तेमाल हो रही है अपने स्वाभिमान को ताक पर रखकर ………उसने सिर्फ़ स्वतंत्रता को ही स्त्री मुक्ति के संदर्भ मे लिया है और उसका गलत उपयोग ज्यादा हो रहा है सार्थक नही.जिस दिन स्त्री इस बात को समझेगी कि उसके निर्णय पर दूसरे की विचारधारा हावी ना हो और वो खुद अपने निर्णय इतनी दृढता से ले सके कि कोई उसे बदलने को मजबूर ना कर सके…तभी सही मायनो मे स्त्री मुक्ति होगी और आज भी स्त्री कही की भी हो कहीं ना कहीं पुरुष के साये के नीचे ही दबी है ……एक मानसिक अवलंबन की तरह वो पुरुष पर ही निर्भर है जिससे उसे खुद को मुक्त करना पडेगा तभी वास्तविक स्त्री मुक्ति होगी ………अपने लिये नये पायदान बनाये ना कि पुरुष के ही दिखाये मार्ग पर चलती जाये और सोचे कि मै मुक्त हो गयी स्वतंत्र हो गयी फिर चाहे वो इस रूप मे भी उसका इस्तेमाल ही क्यों ना कर रहा हो…………उसे पहल तो करनी ही होगी अपनी तरह क्योंकि इसका बीडा जब तक एक नारी नही उठायेगी तब तक उसके हालात सुधरने वाले नही………अब सोच को तो बदलना ही होगा और ये काम स्वंय नारी को ही करना होगा ………जब तक संपूर्ण नारी जाति की सोच मे बदलाव नही आ जाता तब तक कैसे कह दें स्त्री मुक्त हुई………अपनी मुक्ति अपने आप ही करनी पडती है……… उसे सिर्फ़ विज्ञापन नही बनना है , अपना दोहन नही होने देना है आज ये बात स्त्री को समझनी होगी , अपनी सोच विकसित करनी होगी और एक उचित और विवेकपूर्ण निर्णय लेने मे खुद को सक्षम बनाना होगा ना कि कोई भी स्त्री मुक्ति के नाम पर कुछ कहे उसके पीछे चलना होगा…………जहाँ तक स्त्री का एक दूसरे के प्रति व्यवहार है उसके लिये यही कहा जा सकता है जब सोच मे इस हद तक बदलाव आ जायेगा तो व्यवहार मे अपने आप बदलाव आयेगा………जब तक सोच ही रूढिवादी रहेगी तब तक स्त्री स्त्री की दुश्मन रहेगी
जब तक सोच में बदलाव नहीं आएगा फिर चाहे स्त्री हो या पुरुष या समाज या देश तब तक किसी भी महिला दिवस का कोई औचित्य नहीं . आज जरूरत है एक स्वस्थ समाज के निर्माण की , एक सही दिशा देने की और स्त्री को उसका स्वरुप वापस प्रदान करने की और इसके लिए उसे खुद एक पहल करनी होगी अपनी सोच को सही आकार और दिशा देना होगा . किसी के कहने पर ही नहीं चलना बल्कि अपने दिमाग के सभी तंतुओं को खोलकर खुद दिमाग से विचार करके अपने आप निर्णय लेने की अपनी क्षमता को सक्षम करना होगा .
आज जो भी शोषण हो रहा है काफी हद तक तो महिलाएं खुद भी जिम्मेदार हैं क्योंकि वो दिल से ज्यादा और दिमाग से कम सोचती हैं मगर आज उन्हें भी प्रैक्टिकल बनना होगा . सिर्फ एक दिन उनके नाम कर दिया गया इसी सोच पर खुश नहीं होना बल्कि हर दिन महिला दिवस के रूप में मने, उन्हें अपने सम्मान और स्वाभिमान से कभी समझौता ना करना पड़े और समाज और देश के उत्थान में बराबर का सहयोग दे सकें तब होगा वास्तव में सही अर्थों में महिला सशक्तिकरण , स्त्री की परम्परावादी सोच से मुक्ति और तब मनेगा वास्तविक महिला दिवस.
very nice.....HAPPY HOLI !!!!
जवाब देंहटाएंस्थिति को पूर्णता से रखा है-
जवाब देंहटाएंbadhiya prastuti....
जवाब देंहटाएंhttp://jadibutishop.blogspot.in
शक्ति अन्दर से आती है, वह आती रहे..
जवाब देंहटाएंवाह!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
होली का पर्व आपको मंगलमय हो!
बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!
VANDNA JI -SATEEK KAHA HAI AAPNE .AABHAR ..HAPPY HOLI...KAR DE GOAL
जवाब देंहटाएंसशक्त और सार्थक लेख ...
जवाब देंहटाएंबहुत सारगर्भित और विचारणीय पोस्ट....होली की हार्दिक शुभकामनायें!
जवाब देंहटाएंविचार पूर्ण आलेख ...!!
जवाब देंहटाएंआपके विचारों से पूर्णत: सहमत हूँ ! जिस दिन नारी मानसिक दोहन से स्वयं को बचाना सीख जायेगी और दृढतापूर्वक अपने निर्णय स्वयं लेने में सक्षम हो जायेगी महिला दिवस मनाने की सार्थकता उसी दिन सिद्ध हो सकेगी ! होली की हार्दिक शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंहोळी पर्व की शुभकामनाएँ
Gyan Darpan
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saarthak & jeevant post!
जवाब देंहटाएंइन ज़ंजीरो को तोड़ने का वक़्त अब आ गया है....
जवाब देंहटाएंहोली की हार्दिक शुभकामनाएँ!
स्वयं सशक्त बनो, तभी सबकुछ सम्भव है। जितना ज्यादा कमजोरी का बखान करोगे उतना ही कमजोर होते जाओगे।
जवाब देंहटाएंसबसे बड़ी बात तो यह है कि इस समाज में पुरुष को बदलने की दरकार ज्यादा है , जब तक पुरुषों के नजरिये में बदलाव नहीं आ पाता , स्त्री सशक्तिकरण का नारा अधूरा है !
जवाब देंहटाएंतर्कसंगत पोस्ट !
सार्थक एवं सारगर्भित आलेख मैंने भी कुछ ऐसा ही लिखा है समय मिले तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है।
जवाब देंहटाएंस्थिति गंभीर है। हमें खुद में सुधार लाने की आवश्यकता है।
जवाब देंहटाएंbahut sundar vandana ji ....apne sudharne se hi kuchh bhala hona hai
जवाब देंहटाएंaaj bhi kitani mahilayein janti hain ki unke naam ka ek din bhi hai ....gaon ki aurtein to shayad ye bhi n janti hon ki mahila diwas bhi hota hai ....waise bhi mahila diwas ...fathers day sirf nam ke hi diwas hain ...ek aam stri ke liye to sabhi din ek se hi hote hain ...
जवाब देंहटाएंhaan vandna ji aapse milkar bahut achha lga us din ....