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सोमवार, 23 अप्रैल 2012

बस नववधू द्वार से ही वापस मुड जाती है




अभी रात गयी नहीं है
अभी सुबह हुई नहीं है
बस दोनों के 
आगमन और निर्गमन 
के मध्य का वो 
अद्भुत दृश्य 
शीतल पुरवाई 
शांत सुरम्य मनमोहक वातावरण
प्रकृति अपना घूंघट घोलने से पहले
ज्यों सकुचाई सी पल्लू की ओट से 
निरीक्षण कर रही हो दिवस का 
ठिठकी खडी हो ज्यों 
कोई परदेसी कुछ देर रुका हो 
किसी अनजानी राह पर 
प्रभात ध्वनियाँ गुंजारित हो रही हों
कहीं से अजान तो कहीं गुरुग्रंथ जी का पाठ 
तो कहीं मंदिर में बजती घंटियाँ
तो कहीं आरती के स्वर 
हर आते जाते के मुख से 
जय सिया राम की ध्वनि का निकलना
भक्तिमय सुरम्य वातावरण 
और भोर का तारा भी 
यूँ झिलमिलाता हो 
ज्यों आतिशबाजी कहीं चलती हो 
कहीं मुर्गे की बांग 
तो कही चिड़ियों का कलरव
तो कहीं झुण्ड में उड़ते पंछियों का 
आसमाँ के सीने पर पंख फ़डफ़डाना
ज्यों बच्चा कोई पिता के सीने पर 
किलकारियां भरता हो 
मंद मंद बहती शीतल स्वच्छ समीर
साँसों के साथ जैसे 
पूनम की चाँदनी मन में उतरती हो 
सारी कायनात यूँ न्योछावर होती है 
ज्यों नववधू का स्वागत करती हो 
आहा ! सुदूर में खिलती लालिमा 
ज्यों नववधू की मांग का सिन्दूर झिलमिलाता हो 
दिनकर भी नववधू के माथे की बिंदिया सा टिमटिमाता हो 
एक आल्हादित करने वाला रोमांचक 
भोर का वो सुरम्य मनमोहक संगीत 
ओ मनुज ! अब कहाँ से पाऊँ मैं ?
जो आत्मा में आज भी 
सात सुरों की सरगम बन 
दिव्य राग सुनाता हो 
मन मयूर जहाँ नाच जाता हो 
ऊंची अट्टालिकाओं, ह्रदयहीन मानव 
मशीनी ज़िन्दगी के बीच 
सिमटती ज़िन्दगी के चौराहे पर
मेरी रूह कुचली मसली पड़ी है 
उस दृश्य के लिए मचलती है ........
जो आज भी मेरे गाँव में बिखरा मिलता है
ये कैसा शहरीकरण का प्रकोप मुझे दिखता है 
जिसमे ना कहीं कोई स्पंदन दिखता है
जहाँ भोर भी आने से डरती है 
जहाँ ना कोई उसके स्वागत को उत्सुक दिखता है
बस नववधू द्वार से ही वापस मुड जाती है 
पर घूंघट उठाने की हिम्मत ना करती है 
बस प्रकृति यही सवाल करती है
आह ! कब मैं पुनः अपना स्वरुप वापस पाऊंगी 
हर आँगन में नृत्य करती देखी जाऊंगी 
बता सकते हो ......ओ मनुज !
इस अंधे गहरे कुएं में मेरी वापसी का भी कोई द्वार बनाया है क्या ??????

21 टिप्‍पणियां:

  1. प्रकृति के मन से निकले भावों का सुंदर चित्रण किया है ... विचारणीय रचना

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  2. शहर वालों का दर्द बयाँ कर दिया...ना तो सुबह का उजास देखने को मिलता है..ना .गोधुली वेला..ना चांदनी रात..
    बहुत ही सार्थक अभिव्यक्ति

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  3. बहुत ही भावमय करती शब्‍द रचना ।

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  4. प्रकृति का अनुपम सौन्दर्य अभिभूत करता है।

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  5. पहले प्रकृति का मनमोहक चित्रण और फिर शहरों की सूनी सुबह के जिक्र से कविता एक नया मोड़ ले लेती है, वन्दना जी, आपको बहुत बहुत बधाई इस अनुपम कृति के लिये.

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  6. पृकृति का दर्द बयान कर दिया.

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  7. प्रकृति का अनुपम सौंदर्य बिखेरती पोस्ट ....

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  8. कविता एक सांस में पढ़ गया... जीवन कि तरह कोई विराम नहीं... बढ़िया..

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  9. बहुत बढ़िया... एक शाश्वत प्रश्न उठाई गई है कविता के माध्यम से..

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  10. प्रकृति पर सुन्दर प्रस्तुति |सार्थक अभिव्यक्ति |
    आशा

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  11. प्राकृतिक उपालाम्भों ने बहुत कुछ कहा

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  12. कोमल भावो की और मर्मस्पर्शी.. अभिवयक्ति .......

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  13. कविता के शब्द जाल बांध लेते हैं।

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  14. आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर की गई है।
    चर्चा में शामिल होकर इसमें शामिल पोस्ट पर नजर डालें और इस मंच को समृद्ध बनाएं....
    आपकी एक टिप्‍पणी मंच में शामिल पोस्ट्स को आकर्षण प्रदान करेगी......

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  15. prakriti ke maadhyam se aapne bahut kuch kaha vandna ji -----achchi prastuti

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  16. प्रकृति की पीड़ा बयान करने के लिए बहुत गहरे शब्दों का प्रोयोग किया है आपने ... बेहतरीन रचना ...

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  17. यह नव वधू...हामारी प्रकृति के रूप में सामने है और इसे 'सुस्वागतम'कहने के लिए भी हमारे पास समय नहीं है...मनुष्य जीवन 'मशीन' बनता जा रहा है !....यथार्थ से भरपूर सुन्दर रचना!...आभार!

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