सुना है जब देश आज़ाद हुआ
रुपया डॉलर पौंड का भाव समान था
फिर कौन सी गाज गिरी
क्यों रुपये की ये हालत हुयी
किस किस की जेब भरी
किसने क्या घोटाला किया
क्यों दाल भात को भी
सट्टे की भेंट चढा दिया
जब से कोमोडिटी मे डाला है
तभी से निकला दिवाला है
तभी मंहगाई आसमान छूती है
जब से कोमोडिटी मे डाला है
तभी से निकला दिवाला है
तभी मंहगाई आसमान छूती है
अब क्यों हाय हाय करते हो
क्यों रुपये की हालत पर हँसते हो
जो बोया था वो ही तो काटना होगा
बबूल के पेड पर आम नही उगा करते
यूँ ही देश आत्मनिर्भर नही बना करते
जब तक ना सच्चाई का बोलबाला हो
भ्रष्टाचार का ना अंत होगा
मल्टी नैशनल कम्पनियां हों या सरकारी दफ्तर
जब तक ना बेहिसाब तनख्वाह का हिसाब होगा
रुपया तो यूँ ही कमजोर होगा
जब तक ना टैक्स का सही सदुपयोग होगा
जब तक ना जनता को बराबर अधिकार मिलेगा
रुपया तो यूँ ही कमजोर होगा
जब तक ना भ्रष्ट शासन से छुटकारा होगा
जब तक ना हर नागरिक वोट के महत्त्व को समझेगा
रुपया तो यूँ ही कमजोर होगा
जब तक ना हर नागरिक अपने कर्तव्यों पर खरा उतरेगा
सिर्फ अधिकारों की ही बात नहीं करेगा
रुपया तो यूँ ही कमजोर होगा
परिवर्तन सृष्टि का नियम है
बाज़ार की दशा भी उसी का आधार है
मगर लालच घोटालों का ही ये परिणाम है
रुपया रोज गिरता रहा
सेठ का पेट भरता रहा
तिजोरियों स्विस बैंकों में
रुपया दबता रहा
फिर अब क्यों हल्ला मचाया है
मंहगाई का डमरू बजाया है
मंहगाई खुद नहीं आई है
हमारे लालच की भेंट ने
मंहगाई को दावत दी और
रूपये की शामत आयी है
फिर कहो कैसे बाहर निकल सकते हो
जब तक खुद को नहीं सच के तराजू पर तोल सकते हो
सरकारें पलटने से ना कुछ होगा
तख्तो ताज बदलने से ना कुछ होगा
जब तक ना खुद को बदलेंगे
लालच को ना बेड़ियों में जकडेंगे
देश और जनता का भला ना सोचेंगे
तब तक रुपया तो यूँ ही गिरता रहेगा
डॉलर के नीचे दबता रहेगा और
डॉलर अट्टहास करता रहेगा .............
डालर अट्टाहस करता रहेगा ...
जवाब देंहटाएंअक्षरश: सही कहा है ... सार्थकता लिए सटीक लेखन ... आभार ।
गूढ़ आर्थिक विषय पर सरल और सहज रचना... बहुत सुन्दर...
जवाब देंहटाएंडॉलर की हँसी कितनी भयानक है ...
जवाब देंहटाएंडॉलर अट्टहास करता रहेगा ............. aakhir kab tak:(
जवाब देंहटाएंदेश की गंभीर समस्या पर सामयिक रचना.
जवाब देंहटाएंसब भ्रष्टाचार की महरबानी है।..... सार्थक पोस्ट।
जवाब देंहटाएंसमसामयिक रचना ... एक योग्य अर्थशास्त्री प्रधान मंत्री की कुर्सी पर बैठे हैं ..... और फिर भी अर्थव्यवस्था की ये हालत है ...
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया रचना ....
जवाब देंहटाएंसमसामायिक भी और सार्थक बात कहती हुई ...!!
बधाई वंदना जी ....!!
भयानक सच.
जवाब देंहटाएंhttp://auratkihaqiqat.blogspot.in/2012/05/part-4-dr-anwer-jamal.html
सटीक
जवाब देंहटाएंbahut sateek likha hai
जवाब देंहटाएंकामना है ये अट्टाहस जल्दी ही रुके.. सार्थक रचना वंदनाजी !!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएं( अरुन =arunsblog.in)
कितनी सहजता से आपने आईना दिखा दिया है...बहुत बहुत बधाई इस सटीक कृति के लिये..
जवाब देंहटाएंडॉलर ५५ गुना आगे निकल गया है।
जवाब देंहटाएंdollar ki is haalat ke liye kaun jimmedaar hai?...bahut sundar prastuti!...aabhaar!
जवाब देंहटाएं्यह एक कटु सत्य है। समझ नहीं आता अट्टहास करें या रोएं।
जवाब देंहटाएंउम्दा, बेहतरीन अभिव्यक्ति..गंभीर समस्या पर सामयिक रचना..बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर समसामयिक और सार्थक रचना....
जवाब देंहटाएंसोचने वाली बात है ............
जवाब देंहटाएंबहुत ही सही लिखा है ..
It is REAL and really touching and thought provoking.
जवाब देंहटाएंabhi to aage aage dekhiye hota hai kyaa?
जवाब देंहटाएंआज के वक्त के मुताबिक सटीक रचना ....ये महंगाई और ऊपर से भारत बंद का असर ...देखे तो ये देश और कितना गर्त में जाता हैं
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