दोस्तों
आइये ले चलती हूँ अपनी नज़र से एक सफ़र पर । यूँ तो आप सब वाकिफ़ हैं उस शख्सियत से और मुझसे ज्यादा ही जानते होंगे मगर कुछ मेरी नज़र से भी देखिये । हवा जब मन्द मन्द बहती है ,सुकून देती है , साँसों मे महसूस होती है और जीवन सुरभित सा हो जाता है बस ऐसी ही तो बयार यहाँ बह रही है । ब्लोगजगत मे बहती मन्थर गति से चलती अपनी प्रभाओं से सबको आलोकित करती रश्मि ………अक्षय गौरव के मासिक अंक मे ब्लोग चर्चा के अन्तर्गत एकल चर्चा मे रसास्वादन कीजिये रश्मि प्रभा जी के ब्लोग का ………कुछ मेरी नज़र से
अगर आप चित्र मे न पढ पायें तो यहाँ साथ मे लगा रही हूँ।
आज ब्लोग्स ने अपनी एक विशिष्ट पहचान बना ली है और अपना एक नया आसमाँ ...........नहीं है जरूरत अब खुद को साबित करने की ये दिखा दिया है और साहित्य के फलक पर अपना परचम लहरा दिया है .हर तरह की सामग्री यहाँ उपलब्ध है बस गोताखोर बनने की देर है की इस अथाह सागर में से एक से बढ़कर एक उम्दा मोती आपको मिलते रहेंगे .
आज इस सफ़र पर हम ब्लॉगजगत की जानी मानी और पहचानी शख्सियत के लेखन और ख्यालों से आपको परिचित करवाएंगे जो ब्लोगिंग को एक नयी दिशा दे रही हैं और अपने होने को सिद्ध कर रही हैं .
ये हैं रश्मि प्रभा जो कर रही हैं आलोकित अपनी प्रभाओं से सारे जगत को और उसके लिए उन्होंने माध्यम चुना है अपनी भावनाओं को ..........तभी तो अपने ब्लॉग को नाम दिया है
परिचय ही तो पहचान होती है और उन्ही के शब्दों में सिमटा उनका व्यक्तित्व उन्हें औरों से अलग करता है और एक नया मुकाम तय करता है
स्व.रामचंद्र प्रसाद श्रीमती सरस्वती प्रसाद की बेटी मैं रश्मि .... पन्त की रश्मि , क्योंकि नाम उन्होंने दिया , तराशा माँ, पापा ने और जीवन के खट्टे मीठे अनुभवों ने , ईश्वरीय महत्ता दी मेरे बच्चों ने - मृगांक , खुशबू , अपराजिता ने - कहते हैं मातृत्व अपने आप में ईश्वर है ! शब्दों ने पहचान दी , आपसबों की प्रशंसा ने स्थान दिया ...... इससे बड़ा पुरस्कार और क्या !
रश्मि जी कलम की धनी , भावों की सरिता में उतराती एक बहती धारा सी हैं जो अपने साथ ना जाने कौन कौन से वक्त के चेनाब बहा ले जाती हैं और हर बार एक नयी , अल्हड नदिया सी बहती जाती हैं . भावों को पकड़ने को कोई छोर तो होना चाहिए मगर यहाँ तो भाव खुद-ब-खुद बहते हैं जिनमे एक ज़िन्दगी की तमाम ख्वाहिशें , तमाम चाहतें और स्वयं से लड़ने की कूवत सभी ऐसे समाहित हो जाते हैं जैसे कभी जुदा ना थे .........कहीं प्रेम की प्यास में व्याकुल अल्हड , कमसिन , नाजुक सी लड़की बन जाती हैं तो कभी ज़िन्दगी के अनुभवों को समेटे अथाह सागर जिसकी गहराइयों में उतरना हर किसी के लिए संभव नहीं होता तो उसके राज़ जानना कैसे मुमकिन हो सकता है .
देखिये ज़िन्दगी के अनुभवों की एक बानगी उनकी इस कविता में ..........जो आज का यथार्थ है
सत्य क्या है ?
वह - जो हम सोचते हैं
वह - जो हम चाहते हैं
या वह - जो हम करते हैं ?
बिना लिबास का सत्य
क्या बर्दाश्त हो सकता है ?
सत्य झूठ के कपड़ों से न ढंका हो
तो उससे बढ़कर कुरूप कुछ नहीं !
ये थी शुरूआती रचना जो खुद में बेजोड़ है और हर तरफ अपनी निगाह रखे खुद को ही साबित कर रही है ......बुनियादें कैसे हिल जाती हैं और प्रमाण ना बन पाती हैं उसका सटीक खाका खींचा है
कम कपड़े फैशन का पर्याय हो चले हैं,
भिखारी से कपड़े - ज्यादा महंगे हो चले हैं,
पूरे ढंके शरीर को
"दुनिया " हिकारत से देखती है
अब तो भाई को भी बहन " सेक्सी " ही लगती है!!!
बेटा नशा करता है,
इस बात से "बड़े" अनजान होते थे
अब तो पिता मुस्कुरा कर जाम बना देते हैं
बेटे को कौन कहे,
बेटी को थमा देते हैं !!!
नशे मे झूमना
आज पतिव्रता होने की निशानी है.....
रिश्तों की बुनियाद !!!
"ये बात बहुत पुरानी है....."
भिखारी से कपड़े - ज्यादा महंगे हो चले हैं,
पूरे ढंके शरीर को
"दुनिया " हिकारत से देखती है
अब तो भाई को भी बहन " सेक्सी " ही लगती है!!!
बेटा नशा करता है,
इस बात से "बड़े" अनजान होते थे
अब तो पिता मुस्कुरा कर जाम बना देते हैं
बेटे को कौन कहे,
बेटी को थमा देते हैं !!!
नशे मे झूमना
आज पतिव्रता होने की निशानी है.....
रिश्तों की बुनियाद !!!
"ये बात बहुत पुरानी है....."
प्यार और नफरत के बीच की कड़ी कितनी नाज़ुक होती है और उस पर समझौतों की दस्तक एक जीवन को क्या से क्या बना देती है
रश्मि जी का व्याकुल मन प्रभु से सवाल करता है क्यों मोह का बँधन साथ साथ चलता है जब तुम ही कहते हो ना तेरा कुछ है ना था ना होगा फिर क्यूँ इस मोह को साथ में भेज दिया प्रभु .........शायद प्रभु को भी जवाब ना सूझा होगा
खट खट खट खट.........
मोह दरवाज़े पर
दस्तक देता रहता है !
कान बंद कर लूँ
फिर भी ये दस्तकें
सुनाई देती हैं -
और आंखों में
कागज़ की नाव बनकर तैरती हैं !
आँधी,तूफ़ान,घनघोर बारिश में लगा,
अब ये नाव डूब चली,
पर आँधी थमते
दस्तकें सुनाई देती हैं........
मैं आखिरी कमरे में चली जाती हूँ
पर मोह की दस्तकों से
मुक्त नहीं हो पाती.......
मोह दरवाज़े पर
दस्तक देता रहता है !
कान बंद कर लूँ
फिर भी ये दस्तकें
सुनाई देती हैं -
और आंखों में
कागज़ की नाव बनकर तैरती हैं !
आँधी,तूफ़ान,घनघोर बारिश में लगा,
अब ये नाव डूब चली,
पर आँधी थमते
दस्तकें सुनाई देती हैं........
मैं आखिरी कमरे में चली जाती हूँ
पर मोह की दस्तकों से
मुक्त नहीं हो पाती.......
बैठ जाती हूँ हार के
....... प्रभु तुम ही कहते हो,
तुम्हारा क्या गया ?
तुम क्या लाये थे ?
तो - यह मोह,
क्यूँ मेरे साथ चलता है !
....... प्रभु तुम ही कहते हो,
तुम्हारा क्या गया ?
तुम क्या लाये थे ?
तो - यह मोह,
क्यूँ मेरे साथ चलता है !
ज़िन्दगी में मिलते दो रास्तों की कशमकश को रश्मि जी ने खूब संजोया है , एक नारी मन किन- किन राहों से , किन -किन पगडंडियों से गुजरता है और फिर एक तीसरा रास्ता कब बना लेता है पता भी नहीं चलता ........नारी के भावों को खूबसूरती से समेटती उनकी कलम
तराजू के पलड़े की तरह
दो पगडंडियाँ हैं मेरे साथ
एक पगडंडी
मेरे जन्मजात संस्कारों की
एक परिस्थितिजन्य !
मैंने तो दुआओं के दीपक जलाये थे
प्यार के बीज डाले थे
पर कुटिल , विषैली हवाओं ने
निर्विकार,संवेदनाहीन
पगडंडी के निर्माण के लिए विवश किया
मोहब्बत से मोहब्बत की बातें और अफसानों की महकती रातें यूँ ही नहीं बना करती हैं तभी तो एक मोहब्बत इस दिल में भी रहा करती है जो नज़्म की रूह बने या रूह को नज़्म बना दे मगर मोहब्बत को मोहब्बत से मिला दे '
कभी फुर्सत हो तो आना
करनी हैं कुछ बातें
जानना है
कैसी होती है नज्मों की रातें.....
कैसे कोई नज़्म
रूह बन जाती है
और पूरे दिन,रात की सलवटों में
कैद हो जाती है !
मोहब्बत का प्रस्फुटन रोम रोम से होना , प्रेम से लबरेज़ दिल की हर बूँद को उंडेल देना और प्रेम के अथाह सागर में खुद को डुबा देना ...........शायद यही तो मोहब्बत की पूर्णता है और रश्मि जी का तो हर कार्य पूर्णता पर ही संपूर्ण होता है जिसे आप देखिये तो इधर
'कहाँ हैं सात रंग '
'हमारे प्यार में'
'किधर?'
... उसने मेरे माथे को चूम लिया
और मेरे चेहरे पर देखते-ही-देखते
इन्द्रधनुषी रंग बिखर गए
भावों का संग्रह ओस के ख्यालों के सुपुर्द कर एक इबारत लिखती एक षोडशी का दिल लिए कैसी बच्ची सी बन जाती हैं और भावों को ओस से भी नाजुक कर जाती हैं
ओस की बूंदों को ऊँगली पे उठा
पत्तों पर लिखे हैं मैंने ख्याल
सिर्फ तेरे नाम ...
इन बूंदों की लकीरों को
तुम्हीं पढ़ सकते हो
तो सुकून है -
कोई अफसाना नहीं बनेगा .
कौन सा ऐसा रूप है जो ना समाया हो , कौन सी ऐसी खलिश है जिस पर ना कलम चली हो फिर चाहे पौराणिक चरित्र हों या आधुनिक या अध्यात्मिक या साहित्यिक . यूँ तो ना जाने कितनी ही रचनायें ऐसी हैं जिन्हें आप सबसे बाँटा जाये मगर समय और जगह की कमी हाथ बांध देती है . उनके चरित्र की , उनके लेखन की रुबाइयाँ पढने के लिए तो एक बार खुद को रश्मिप्रभा बनाना होगा और उस ज्योतिर्पुंज में डूबना होगा तभी तो अक्स का दर्शन होगा .
तो चलिए दोस्तों अगली बार फिर मिलते हैं एक नए चेहरे के साथ , एक नयी शख्सियत के साथ .
हार्दिक आभार
वन्दना गुप्ता
आश्चर्यमिश्रित ख़ुशी से फैली आँखें छोटी हो ही नहीं रही .... चलिए एक कप मीठी चाय हो जाए तब तक मन की उमंगें थोड़ी पकड़ में आएँगी और मैं कह सकूंगी - आपने मुझे जो सम्मान दिया है , उसे कभी भूल नहीं पाउंगी , एक :) ... शुक्रिया क्या कहूँ !
जवाब देंहटाएंक्या बात है वंदना जी ... आपकी कलम और आदरणीय रश्मि जी जो हर ब्लॉगर का आदर्श हैं ... इनका स्नेहिल व्यक्तित्व वंदनीय है ... आपकी इस उत्कृष्ट प्रस्तुति पर ... अभी कुछ भी कहना मुश्किल है ... फिर आती हूँ .. आपका बहुत-बहुत आभार ।
जवाब देंहटाएंक्या कहूँ वंदना जी शब्द ही नहीं मिल रहे ख़ुशी आभार और बधाई व्यक्त करने को इतनी सुन्दर समीक्षा की है रश्मि जी के ब्लॉग की उनकी शख्सियत की क्या कहने but that is true she deserve it god bless you and Rashmi ji .
जवाब देंहटाएंवन्दना जी .
जवाब देंहटाएंसही कहा आपने !रश्मि जी किसी परिचय की
मोहताज़ नही ...ये तो आपका स्नेह है |
आप को मुबारक और रश्मि जी को ..
शुभकामनाएँ!
Very nice post.....
जवाब देंहटाएंAabhar!
Mere blog pr padhare.
हर शब्द से सहमत !
जवाब देंहटाएंरश्मि जी का संसार अलग ही है ... और हमेशा प्रभावित करता है उसका लिखा ... मेरी शुभकामनायें हैं उन्हें ...
जवाब देंहटाएंवाह... उम्दा, बेहतरीन अभिव्यक्ति.....उम्दा प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएंइस सुन्दर प्रस्तुति के लिए आप दोनों को सादर बधाई:)
जवाब देंहटाएंरश्मि प्रभा जी के लेखन के तो सब कायल हैं..
जवाब देंहटाएंबहुत ही उत्कृष्ट प्रस्तुति
रश्मिजी का लिखा पढ़ना बहुत अच्छा लगता है, बिना छोड़े सब पढ़ लेता हूँ।
जवाब देंहटाएंaaderneeya rashmijee kee sahityik pratibha ke sabhi kayal hain..mujhe to unki rachnayein behad prabhvit kartee hain..aapne jis tareeke se unki samagra rachnaon ko pirokar ek bahut hee sunder maal banayee hai..jisme rashmi jee kee kavya ke samgrata ke sath darshan ho rahe hain..aapko sadar badhayee aaur sadar amantran ke sath
जवाब देंहटाएंसही कहा आपने वन्दना जी....रश्मि जी किसी परिचय की
जवाब देंहटाएंमोहताज़ नही ..!!!
बहुत उम्दा प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंमैं हमेशा रश्मि प्रभा जी की आभारी रहूगीं ,क्यों की आज आप लोगो के बीच उनकी वजह से ही हूँ .... !!
जवाब देंहटाएंआपकी भी आभारी हूँ ,कि आप उनकी रचना से अवगत होने का मौक़ा दीं .... !!
रश्मि दी का परिचय आपकी कलम से...उत्कृष्ट प्रस्तुति...आप दोनों को सादर बधाई !!!
जवाब देंहटाएंवैसे तो मैं रश्मि दीदी के ब्लाग का नियमित पाठक हूं, पर आपके नजरिये से देखा तो लगा कि मैने पहले कभी उन्हें पढा ही नहीं
जवाब देंहटाएंइसे कहते हैं "रश्मि की वंदना"
यर्थाथ
जवाब देंहटाएंवाह , बहुत बढ़िया चर्चा ..... शानदार परिचय
जवाब देंहटाएंआदरणीय रश्मि जी की वंदना
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी लगी वंदना जी.
अच्छा लगा।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
रश्मि जी का तो जवाब ही नहीं.....और आपने बहुत सुन्दर आलेख लिखा है उन पर ....शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर वंदना जी...आपका आभार.....
जवाब देंहटाएंमुझे लगता है कि मैंने ब्लॉग जगत में चलना शायद रश्मि दी कि उँगलियाँ पकड़ कर ही सीखा...
सादर
अनु
रश्मि आंटी जी को पढ़ना बहुत सुखद है..
जवाब देंहटाएंअच्छा लगता है....उनके लेखनी की तो क्या कहने...
आपका आलेख बहुत अच्छा लगा..
आप दोनों को ढेर सारी शुभकामनाये..
:-)