दोस्तों
डायलाग मे कविता पाठ करना है जब अंजू जी ने बताया तो समझ नही आया कि कैसे करूँगी क्योंकि इससे पहले कभी ऐसा मौका आया ही नही था । ये भी नही पता था कि कैसे किया जाता है और इसी उधेडबुन का नतीजा निकला कि ये कविता बन गयी तो सोचने लगी इसे प्रस्तुत करूँ या नही तभी अरुण जी से बात हुई और उन्हें बताया और कविता दिखाई तो बोले कि सबसे पहले यही कविता सुनाना तो थोडा हौसला बढा और आखिरकार डरते डरते पहले कविता पाठ की पहली कविता प्रस्तुत कर ही दी जो अब आपके सम्मुख है …
मुझे नहीं आता
काव्य पाठ करना
ज़िन्दगी भर लिखती ही तो रही
कहाँ रुकना है
कहाँ चलना है
कहाँ वेदना का स्वर देना है
कहाँ आश्चर्य व्यक्त करना है
कहाँ शब्दों को बार बार
दोहराना है
कुछ भी तो नहीं जानती
कभी सोचा जो नहीं इस बारे में
शायद तभी कोई फर्क नहीं है
नारी के जीवन और कर्म में
ऐसे ही तो जी जाती है
वो जीवन को
दे देती है गति अपने कर्म को
कर देती है निर्माण
नवीन स्तंभों का
मगर नहीं जानती
कहाँ रुकना था
और कहाँ चलना था
क्या छुपाना था
और क्या व्यक्त करना था
क्या दोहराना था
और कहाँ चुप रहना था
नहीं जानती वो ये सब
सिर्फ अपने जीवन की भट्टी में
संघर्ष , सहनशक्ति, आत्मीयता के
तवे पर सिर्फ कर्म की रोटियां सेंकती है
और परोस देती है बिना जलाये
भर देती है पेट सबका
स्व का अर्पण करके
होम कर देती है जीवन अपना
सिर्फ एक निश्छल मुस्कान के लिए
कर्म की ऐसी निश्छल पावनता की प्रतिमूर्ति
सिर्फ नारी में ही तो हो सकता है
शायद तभी
काव्य पाठ हो या नारी जीवन
निश्छल बहे जाने की अनुभूति तो सिर्फ वो स्वयं ही महसूस कर सकते हैं
डायलाग मे कविता पाठ करना है जब अंजू जी ने बताया तो समझ नही आया कि कैसे करूँगी क्योंकि इससे पहले कभी ऐसा मौका आया ही नही था । ये भी नही पता था कि कैसे किया जाता है और इसी उधेडबुन का नतीजा निकला कि ये कविता बन गयी तो सोचने लगी इसे प्रस्तुत करूँ या नही तभी अरुण जी से बात हुई और उन्हें बताया और कविता दिखाई तो बोले कि सबसे पहले यही कविता सुनाना तो थोडा हौसला बढा और आखिरकार डरते डरते पहले कविता पाठ की पहली कविता प्रस्तुत कर ही दी जो अब आपके सम्मुख है …
मुझे नहीं आता
काव्य पाठ करना
ज़िन्दगी भर लिखती ही तो रही
कहाँ रुकना है
कहाँ चलना है
कहाँ वेदना का स्वर देना है
कहाँ आश्चर्य व्यक्त करना है
कहाँ शब्दों को बार बार
दोहराना है
कुछ भी तो नहीं जानती
कभी सोचा जो नहीं इस बारे में
शायद तभी कोई फर्क नहीं है
नारी के जीवन और कर्म में
ऐसे ही तो जी जाती है
वो जीवन को
दे देती है गति अपने कर्म को
कर देती है निर्माण
नवीन स्तंभों का
मगर नहीं जानती
कहाँ रुकना था
और कहाँ चलना था
क्या छुपाना था
और क्या व्यक्त करना था
क्या दोहराना था
और कहाँ चुप रहना था
नहीं जानती वो ये सब
सिर्फ अपने जीवन की भट्टी में
संघर्ष , सहनशक्ति, आत्मीयता के
तवे पर सिर्फ कर्म की रोटियां सेंकती है
और परोस देती है बिना जलाये
भर देती है पेट सबका
स्व का अर्पण करके
होम कर देती है जीवन अपना
सिर्फ एक निश्छल मुस्कान के लिए
कर्म की ऐसी निश्छल पावनता की प्रतिमूर्ति
सिर्फ नारी में ही तो हो सकता है
शायद तभी
काव्य पाठ हो या नारी जीवन
निश्छल बहे जाने की अनुभूति तो सिर्फ वो स्वयं ही महसूस कर सकते हैं
असमंजस से उपजी एक गहन भावधारा,एक उत्तम कविता!
जवाब देंहटाएंकुँवर जी,
इस साम्यता को कितनी गूढता से आपने सोचा है
जवाब देंहटाएंशायद तभी
जवाब देंहटाएंकाव्य पाठ हो या नारी जीवन
निश्छल बहे जाने की अनुभूति तो सिर्फ वो स्वयं ही महसूस कर सकते हैं
बहुत खूब .... सटीक विचार
अपने मनोभावों को बहुत सुन्दर शब्द दिए हैं...बहुत सुन्दर रचना है...बधाई स्वीकारें।
जवाब देंहटाएंक्या बात है :) आपने तो इस काव्य पाठ के जरिये नारी जीवन को ही इतनी खूबसूरती से व्यक्त कर दिया .. आपकी लेखनी को नमन ... बहुत ही अच्छा लिखती हैं आप
जवाब देंहटाएंबहुत ही बेहतरीन रचना....
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग
जीवन विचार पर आपका हार्दिक स्वागत है।
जीवन की भट्टी में कर्म की रोटी पकती स्त्रियाँ ...
जवाब देंहटाएंउनकी यही निश्छलता इस सृष्टि का आधार है !
बहुत बढ़िया !
काव्य पाठ की कोशिश एक सुन्दर रचना को जन्म दे गई, बहुत सुन्दर, बधाई.
जवाब देंहटाएंजीवन या कविता, दोनों में प्रवाह आवश्यक है।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर और सारगर्भित ...
जवाब देंहटाएंप्रभावशाली
जवाब देंहटाएं--- शायद आपको पसंद आये ---
1. ब्लॉगर में LinkWithin का Advance Installation
2. मुहब्बत में तेरे ग़म की क़सम ऐसा भी होता है
3. तख़लीक़-ए-नज़र
नारी मन को उतार दिया पन्नों पर एक एक भाव बिखर गया शब्द बन कर ..इस अद्भुत प्रस्तुति के लिए बधाई
जवाब देंहटाएंनारी मन को उतार दिया पन्नों पर एक एक भाव बिखर गया शब्द बन कर ..इस अद्भुत प्रस्तुति के लिए बधाई
जवाब देंहटाएंबिना आये ही आपने इतना सुन्दर
जवाब देंहटाएंकाव्य पाठ कर दिया... कमाल है.
आप वाकई में प्रतिभावान कवियत्री हैं,वन्दना जी.
उत्कृष्ट...... प्रवाहमयी भाव ....
जवाब देंहटाएंआवाज स्पष्ट नहीं सुनाई दी! बधाई स्वीकार करें!
जवाब देंहटाएंसुन्दरं अंदाज़ में लिखी अनुपम रचना..बधाई..वंदना जी..
जवाब देंहटाएंशायद तभी
जवाब देंहटाएंकाव्य पाठ हो या नारी जीवन
निश्छल बहे जाने की अनुभूति तो सिर्फ वो स्वयं ही महसूस कर सकते हैं
....बहुत खूब..सटीक और सुन्दर प्रस्तुति..
वाह वन्दना जी, समस्या का समाधान इतने सुंदर ढंग से...बधाई!
जवाब देंहटाएंकविता स्वरूपा नारी...
जवाब देंहटाएंविचारोत्तेजक।
जवाब देंहटाएंअसमंजस की स्थिति की सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंअतिम पंक्तियों ने कमाल कर दिया यही सच है बहुत खूब सटीक बात कहती खूबसूरत रचना...
जवाब देंहटाएं