वो कहते हैं अब के बच्चों में
संवेदना नहीं पनपती
प्रेम प्यार के बीज ना
पल्लवित होते हैं
बेहद प्रैक्टिकल
होते जा रहे हैं
ना मान आदर सम्मान करते हैं
अब तो आँख की शर्म भी
भूलते जा रहे हैं
आपस में यूँ लड़ते झगड़ते हैं
मानो खून के प्यासे हों
ना देश से प्यार
ना समाज से
और ना अपनों से
सिर्फ अपने लिए
जिए जा रहे हैं
मान मर्यादाओं को
भूले जा रहे हैं
मगर इसके कारण
ना खोजे जा रहे हैं
क्यों आज की पीढ़ी में
अभाव पाया जाता है
क्यों नहीं उनके चेहरों पर
मुस्कान का भाव पाया जाता है
क्यों नहीं मुख से
आत्मीयता टपकती है
कारण खोजने होंगे
क्योंकि
ये सब पूर्व पीढ़ियों की ही तो देन है
गहन अध्ययन करना होगा
आत्मशोधन करना होगा
प्रेम का न कहीं कोई भाव होता है
सिर्फ स्त्री और पुरुष
दो प्राणियों से निर्मित
जग संचालित होता है
गर गौर करोगे तो पाओगे
प्रकृति के रहस्य भी जान जाओगे
प्रकृति का फूल खिला होता है
एक रूप रंग गुण से भरा होता है
क्योंकि वहां मोहब्बत का संचार होता है
जो दिया मोहब्बत से दिया
जो लिया मोहब्बत से लिया
तो क्यों न वहां मोहब्बत का संचार हुआ
उस रूप पर ज्ञानी , अज्ञानी, कुटिल, खल , कामी
सभी मोहित होते हैं
पर फिर भी न हम कोई सीख लेते हैं
सिर्फ आत्म संतुष्टि के लिए ही जीवन जीते हैं
स्त्री पुरुष दो भिन्न प्रकृति
तत्वतः जब एक होती हैं
तो सिर्फ रतिक्रीड़ा का ही
आनंद लेती हैं
वहां ना ये भाव होता है
न इक दूजे की सहमति होती है
फिर मोहब्बत तो
उन क्षणों में
बेमानी लफ्ज़ बन रह जाती है
क्योंकि सिर्फ शरीरों का खिलवाड़ होता है
वहां तो आत्म संतुष्टि
का ही भाव उच्च आकार लेता है
जब स्वार्थ सिद्धि ही कारक बनेगी
तो कैसे न गाज गिरेगी
सिर्फ आत्म संतुष्टि के लिए
जब सम्भोग होता
तो ऐसे ही बच्चों का जन्म होगा
वहां बच्चे तो बस हो जाते हैं
स्त्री से कब पूछा जाता है
वहां तो बीज बस रोंपा जाता है
उसकी चाहत पर अंकुश रख
अपनी चाहतों को थोपा जाता है
ऐसे में जैसा बीज पड़ेगा
फसल तो वैसी ही उगेगी
प्यार मोहब्बत संवेदन विहीन
पीढ़ी ही जन्म लेगी
क्षणिक आवेगों में
क्षणिक सुखों के वेगों में
बच्चे तो बस हो जाते हैं
और अपने किये की तोहमत भी
हम उन्हीं पर लगाते हैं
क्योंकि
उपयुक्त वातावरण के बिना तो
ना कहीं कोई फूल खिलता है
उसे भी हवा , पानी और ताप
के साथ प्रकृति का
निस्वार्थ स्नेह मिलता है
तभी वो अपनी आभा से
नयनाभिराम दृश्य उपलब्ध कराता है
फिर कैसे वैसा ही
आत्मीय सम्बन्ध बनाये बिना
मानवीय संवेदनाओं
का जन्म हो सकता है
जब सुनियोजित तरीके से विचार जायेगा
और गर्भधारण से पहले
इक दूजे की सहमति , प्यार और समर्पण
को आकार मिलेगा
उस दिन मोहब्बत
प्रकृति और पुरुष सी
जीवन में उतरेगी
इक दूजे को मान देगी
नयी पीढ़ी के जन्म में
मोहब्बत के अंकुरण भरेगी
तभी संवेदनाएं जन्म लेगीं
तभी मोहब्बत का पौधा लहलहाएगा
और हर चेहरे पर
खिला कँवल मुस्कराएगा
फिर न कभी ये कहा जायेगा
बच्चे तो बस हो जाते हैं
बच्चे तो बस हो जाते हैं ...............
आपने बहुत संवेदन शील मुद्दे पर अपनी कलम चलाई है...आजकल बच्चे प्रेम का फल नहीं होते वासना का होते हैं...तभी उनमें वो खुशबू नहीं होती जो होनी चाहिए....ऐसे बच्चे कागज़ के फूल सामान होते हैं...जिन के पास खूबसूरत रंग तो हैं लेकिन खुशबू नहीं...
जवाब देंहटाएंनीरज
आपने बहुत संवेदन शील मुद्दे पर अपनी कलम चलाई है...आजकल बच्चे प्रेम का फल नहीं होते वासना का होते हैं...तभी उनमें वो खुशबू नहीं होती जो होनी चाहिए....ऐसे बच्चे कागज़ के फूल सामान होते हैं...जिन के पास खूबसूरत रंग तो हैं लेकिन खुशबू नहीं...
जवाब देंहटाएंनीरज
भावमय करते शब्द रचना ... सशक्त अभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंkitni aasani sae tumnae wo sach byaan kiyaa haen jo hotaa haen par koi maantaa hi nahin
जवाब देंहटाएंexcellent poem
असहमति होते हुए भी आपको बधाई कि एक ऐसे विषय को आपने अपनी कविता के केन्द्र में लिया है जिस पर लोग सोचना भी गंवारा नहीं करते।
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक विषय पर एक सार्थक पोस्ट ।
जवाब देंहटाएंसंवेदनशील मुद्दे पर बहुत ही सुंदर और सार्थक रचना |
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट:-
ओ कलम !!
बहुत ही सुन्दर कविता
जवाब देंहटाएंअच्छी गवेषणा है इस रचना में!
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति....! शुभसंध्या!
अपने विचारों को आपने उकेरा है..
जवाब देंहटाएंसच ही तो है !!
बहुत सार्थक अभिव्यक्ति...जीवन का सत्य दर्शाती एक उत्कृष्ट प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंकविता मे सुन्दर तरीके से आपने स्त्री व्यथा को उकेरी हैं ...
जवाब देंहटाएंएक अनकहे सत्य की साहसिक अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंजीवन का सत्य अब यही है ..........
जवाब देंहटाएंस्त्री से कब पूछा जाता है ,
जवाब देंहटाएंवहां तो बीज बस रोंपा जाता है
बेशक बच्चे का गर्भ में आना एक अति सूक्ष्म घटना है ,आवाहन करना पड़ता है सूक्ष्म शरीर का ,तब बच्चे कोष में आते हैं .जिस्मों की रगड़ से स्थूल काया ही आती है .पता नहीं किस मनोभूमि ने कवि श्रीकांत ने
कहा था -तुम क्या चाहती हो, पड़ा रहूँ तमाम रात मैं तुम्हारी जांघ की दराज़ में (क्षेपक जोड़ा जा सकता है ,........और तुम सिर्फ बच्चे जानती रहो .................).
अब तो लोग सुरक्षा कवच धारण कर कुरुक्षेत्र के मैदान में कूद जातें हैं ,बच्चों का झंझट ही नहीं है .
निरोध एक फायदे अनेक ......
,............रोपा जाता है ,रोपना शब्द है .
31sVirendra Sharma @Veerubhai1947
ram ram bhai मुखपृष्ठ http://veerubhai1947.blogspot.com/ शुक्रवार, 12 अक्तूबर 2012 आखिर इतना मज़बूत सिलिंडर लीक हुआ कैसे ?र 2012 आखिर इतना मज़बूत सिलिंडर लीक हुआ कैसे ?
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बच्चे तो बस हो जाते हैं ...............
वन्दना
ज़ख्म…जो फूलों ने दिये
बधाई एवं शुभकामनायें आपको !
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