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गुरुवार, 1 नवंबर 2012

मेहंदी लगे हाथ



पता नहीं क्यों
अब मेहंदी लगे हाथों
का आकर्षण
नहीं लुभाता मुझे
और तुम जानते हो
कभी वो वक्त था
जब मेहंदी
मेरी रूह में बसती थी
जब मेहँदी का रंग
मेरी सांसों संग
महकता था
जब मेहंदी के लिए
मैं रात रात भर जागा करती थी
तीलियों से मेहँदी लगाना
कहाँ सुगम था
आज कल जैसे थोड़े ही
कि कीप बनाओ और झट लगा दो
वो वक्त और था
जब मेहंदी एक परंपरा होती थी
जब मेहंदी सिर्फ मेहंदी नहीं होती थी
उसमे साजन का प्यार घुला होता था
मेहंदी लगे हाथ देख
अन्दर ही अन्दर
एक शोखी सी अंगडाई लेती थी
तभी तो सुबह उठकर
सबसे पहले उसके रंग पर
निगाह जाती थी
रंग .......हाँ , मेहंदी का रंग
बस उसी पर तो सारा
दारोमदार होता था
जो कहीं ना कहीं
मन के किसी चोर को
हकीकत बयां कर जाती थी
जितना गाढ़ा रंग होता था
उतनी ही हया की लाली
सुर्ख हो जाती थी कपोलों पर
और इतराने लगती थी खुद पर
मगर ना जाने
वक्त का कैसा उल्टा पहिया घूमा
मेहंदी ने मुझसे नाता सा ही तोड़ लिया
चाह तो आज भी परवान चढ़ती है
मगर फिर सब अवांछित सा लगता है
क्योंकि
प्रेम कब मेहंदी के रंग का मोहताज रहा है
ये बात शायद अब समझ आ गयी है
तभी जो मेहंदी तुमने अपने प्रेम के रंगों से घोली है
वो ही तो मेरी आत्मा पर लगी है
और उसका सुर्ख रंग
नहीं छूटेगा जन्म जन्मान्तरों तक
फिर बताओ तो ज़रा
इन दिखावे के रिवाजों की कर्ज़दार मैं क्यों बनूँ ........है ना साजन !!!!!!!!!!

17 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर भाव ..
    अच्‍छी लगी रचना

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  2. सचमुच अब पहले की सी मासूमियत खोती जा रही है त्योहारों में..

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  3. वाह ... खूबसूरत से अहसास मेंहदी के रंग रंगी यह अभिव्‍यक्ति

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  4. वक़्त पसंद को बढाता घटाता है .... क्यूँ ? - काश इसे समझा जा सकता

    जवाब देंहटाएं
  5. Kinda poem which brings smile on ya face.. :)
    M bhi hamesha use dhamkaati thi k aaj agar mehndi nahi lagi to tumhari khair nahi.. aur ab.. :)

    जवाब देंहटाएं
  6. BEHTAREEN "मैं रात रात भर जागा करती थी
    तीलियों से मेहँदी लगाना
    कहाँ सुगम था
    आज कल जैसे थोड़े ही
    कि कीप बनाओ और झट लगा दो
    वो वक्त और था
    जब मेहंदी एक परंपरा होती थी
    जब मेहंदी सिर्फ मेहंदी नहीं होती थी
    उसमे साजन का प्यार घुला होता था"

    जवाब देंहटाएं

  7. रचना एक विरोध को लेकर प्रेमके छीजने को लेकर आगे बढती है और आखिर में प्रेम में ही विलीन हो जाती है .यही हमारे वक्त का साज़ है -ना ना करते प्यार तुम्ही से कर गई ,कर गई ,कर गई

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  8. मेहंदी का रंग ...मन के किसी चोर को ..हकीकत बयाँ कर जाती थी ...

    वाह क्या बात है .... आपकी लेखनी का मैं तो कायल ही हो गया। ये कविता अंतिम में अचानक एक मोड़ लेती है इस पोस्ट के अंतिम चरण तक आपने जो suspense बनाये रखा है वो तो काबिले तारीफ है .. ऐसी लेखनी कभी कभी पढने को मिलती है इसे बनायें रखे।

    आपके ब्लॉग पर आकर काफी अच्छा लगा।मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत हैं।अगर आपको अच्छा लगे तो मेरे ब्लॉग से भी जुड़ें।धन्यवाद !!

    http://rohitasghorela.blogspot.com/2012/10/blog-post.html

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  9. मेहंदी का रंग ...मन के किसी चोर को ..हकीकत बयाँ कर जाती थी ...

    वाह क्या बात है .... आपकी लेखनी का मैं तो कायल ही हो गया। ये कविता अंतिम में अचानक एक मोड़ लेती है इस पोस्ट के अंतिम चरण तक आपने जो suspense बनाये रखा है वो तो काबिले तारीफ है .. ऐसी लेखनी कभी कभी पढने को मिलती है इसे बनायें रखे।

    आपके ब्लॉग पर आकर काफी अच्छा लगा।मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत हैं।अगर आपको अच्छा लगे तो मेरे ब्लॉग से भी जुड़ें।धन्यवाद !!

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  10. जब रूह रंग गयी मेंहंदी के रंग में फिर मेंहंदी की क्या चाहत .... बहुत भाव पूर्ण रचना

    जवाब देंहटाएं
  11. बेहद कोमल अहसास ...प्रेम दिखावे का मोहताज नहीं.....पर क्या प्रेम में अभिव्यक्ति का साधन भी आवश्यक अवयव है??...विचारणीय प्रश्न ....सादर अभिनन्दन

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