जिसने भी लीक से हटकर लिखा
परम्पराओं मान्यताओं को तोडा
पहले तो उसका दोहन ही हुआ
हर पग पर वो तिरस्कृत ही हुआ
उसके दृष्टिकोण को ना कभी समझा गया
नहीं जानना चाहा क्यूँ वो ऐसा करता है
क्यूँ नहीं मानता वो किसी अनदेखे वजूद को
क्यूँ करता है वो विद्रोह
परम्पराओं का
धार्मिक ग्रंथों का
या सामाजिक मान्यताओं का
कौन सा कीड़ा कुलबुला रहा है
उसके ज़ेहन में
किस बिच्छू के दंश से
वो पीड़ित है
कौन सी सामाजिक कुरीति
से वो त्रस्त है
किस आडम्बर ने उसका
व्यक्तित्व बदला
किस ढोंग ने उसे
प्रतिकार को विवश किया
यूँ ही कोई नहीं उठाता
तलवार हाथ में
यूँ नहीं करता कोई वार
किसी पर
यूँ ही नहीं चलती कलम
किसी के विरोध में
यूँ ही प्रतिशोध नहीं
सुलगता किसी भी ह्रदय में
ये समाज में
रीतियों के नाम पर
होते ढकोसलों ने ही
उसे बनाया विद्रोही
आखिर कब तक
मूक दर्शक बन
भावनाओं का बलात्कार होने दे
आखिर कब तक नहीं वो
खोखली वर्जनाओं को तोड़े
जिसे देखा नहीं
जिसे जाना नहीं
कैसे उसके अस्तित्व को स्वीकारे
और यदि स्वीकार भी ले
तो क्या जरूरी है जैसा कहा गया है
वैसा मान भी ले
उसे अपने विवेक की तराजू पर ना तोले
कैसे रूढ़िवादी कुरीतियों के नाम पर
समाज को , उसके अंगों को
होम होने दे
किसी को तो जागना होगा
किसी को तो विष पीना होगा
यूँ ही कोई शंकर नहीं बनता
किसी को तो कलम उठानी होगी
फिर चाहे वार तलवार से भी गहरा क्यूँ ना हो
समय की मांग बनना होगा
हर वर्जना को बदलना होगा
आज के परिवेश को समझना होगा
चाहे इसके लिए उसे
खुद को ही क्यूँ ना भस्मीभूत करना पड़े
क्यूँ ना विद्रोह की आग लगानी पड़े
क्यूँ ना एक बीज बोना पड़े
जन चेतना , जन जाग्रति का
ताकि आने वाली पीढियां ना
रूढ़ियों का शिकार बने
बेशक आज उसके शब्दों को
कोई ना समझे
बेशक आज ना उसे कोई
मान मिले
क्यूँकि जानता है वो
जाने के बाद ही दुनिया याद करती है
और उसके लिखे के
अपने अपने अर्थ गढ़ती है
नयी नयी समीक्षाएं होती हैं
नए दृष्टिकोण उभरते हैं
क्रांति के बीज यूँ ही नहीं पोषित होते हैं
मिटकर ही इतिहास बना करते हैं
परम्पराओं मान्यताओं को तोडा
पहले तो उसका दोहन ही हुआ
हर पग पर वो तिरस्कृत ही हुआ
उसके दृष्टिकोण को ना कभी समझा गया
नहीं जानना चाहा क्यूँ वो ऐसा करता है
क्यूँ नहीं मानता वो किसी अनदेखे वजूद को
क्यूँ करता है वो विद्रोह
परम्पराओं का
धार्मिक ग्रंथों का
या सामाजिक मान्यताओं का
कौन सा कीड़ा कुलबुला रहा है
उसके ज़ेहन में
किस बिच्छू के दंश से
वो पीड़ित है
कौन सी सामाजिक कुरीति
से वो त्रस्त है
किस आडम्बर ने उसका
व्यक्तित्व बदला
किस ढोंग ने उसे
प्रतिकार को विवश किया
यूँ ही कोई नहीं उठाता
तलवार हाथ में
यूँ नहीं करता कोई वार
किसी पर
यूँ ही नहीं चलती कलम
किसी के विरोध में
यूँ ही प्रतिशोध नहीं
सुलगता किसी भी ह्रदय में
ये समाज में
रीतियों के नाम पर
होते ढकोसलों ने ही
उसे बनाया विद्रोही
आखिर कब तक
मूक दर्शक बन
भावनाओं का बलात्कार होने दे
आखिर कब तक नहीं वो
खोखली वर्जनाओं को तोड़े
जिसे देखा नहीं
जिसे जाना नहीं
कैसे उसके अस्तित्व को स्वीकारे
और यदि स्वीकार भी ले
तो क्या जरूरी है जैसा कहा गया है
वैसा मान भी ले
उसे अपने विवेक की तराजू पर ना तोले
कैसे रूढ़िवादी कुरीतियों के नाम पर
समाज को , उसके अंगों को
होम होने दे
किसी को तो जागना होगा
किसी को तो विष पीना होगा
यूँ ही कोई शंकर नहीं बनता
किसी को तो कलम उठानी होगी
फिर चाहे वार तलवार से भी गहरा क्यूँ ना हो
समय की मांग बनना होगा
हर वर्जना को बदलना होगा
आज के परिवेश को समझना होगा
चाहे इसके लिए उसे
खुद को ही क्यूँ ना भस्मीभूत करना पड़े
क्यूँ ना विद्रोह की आग लगानी पड़े
क्यूँ ना एक बीज बोना पड़े
जन चेतना , जन जाग्रति का
ताकि आने वाली पीढियां ना
रूढ़ियों का शिकार बने
बेशक आज उसके शब्दों को
कोई ना समझे
बेशक आज ना उसे कोई
मान मिले
क्यूँकि जानता है वो
जाने के बाद ही दुनिया याद करती है
और उसके लिखे के
अपने अपने अर्थ गढ़ती है
नयी नयी समीक्षाएं होती हैं
नए दृष्टिकोण उभरते हैं
क्रांति के बीज यूँ ही नहीं पोषित होते हैं
मिटकर ही इतिहास बना करते हैं
दोहन,शोषण के बाद लीक से परे की हर बात समझ में आ जाती है , जब लीक से परे ज़िन्दगी सामने खडी हो जाती है !!!
जवाब देंहटाएंक्रांति के बीज यूँ ही नहीं पोषित होते हैं...
वंदना जी बेहद संवेदनशील रचना है.
जवाब देंहटाएंवाह .. बेहद खुबसूरत ... :))
जवाब देंहटाएंसही कहा है आपने ...
जन चेतना और जन जागृति करती कलम से वो सब कुछ मुम्किन हैं जो एक युद्ध या तलवार की नोक से नही हो सकता।
जन जागृति के लिए पहले पहल तमाम मुश्किले आएँगी ... लेकिन एक दिन वो इतिहास बनेगी और सब उस पर गर्व करेंगे।
मेरी नई पोस्ट पर आपका स्वागत हैं ...
http://rohitasghorela.blogspot.in/2012/11/blog-post_6.html
वाह .. बेहद खुबसूरत ... :))
जवाब देंहटाएंसही कहा है आपने ...
जन चेतना और जन जागृति करती कलम से वो सब कुछ मुम्किन हैं जो एक युद्ध या तलवार की नोक से नही हो सकता।
जन जागृति के लिए पहले पहल तमाम मुश्किले आएँगी ... लेकिन एक दिन वो इतिहास बनेगी और सब उस पर गर्व करेंगे।
मेरी नई पोस्ट पर आपका स्वागत हैं ...
http://rohitasghorela.blogspot.in/2012/11/blog-post_6.html
बिलकुल सही .... शुरू में तो विरोध ही सहना पड़ता है ... समय के साथ जब बदलाव होता है तो मान्य हो जाती हैं बातें ... बहुत अच्छी रचना
जवाब देंहटाएंसदियों से पोषित होती व्यथायों हैं ये ।
जवाब देंहटाएंरीतियां, ढकोसले और रूढ़ियों ने ही तो सर्वनाश कर रखा है।
जवाब देंहटाएंबेहद सटीक
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत ही सुन्दर ।
जवाब देंहटाएंक्या बात ...बहुत खूब.
जवाब देंहटाएंबढिया
जवाब देंहटाएंआपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 08 - 11 -2012 को यहाँ भी है
जवाब देंहटाएं.... आज की नयी पुरानी हलचल में ....
सच ही तो है .... खूँटे से बंधी आज़ादी ..... नयी - पुरानी हलचल .... .
samaji vidroh ke ankuran ki gambhir prastuti,sabhi panktiya bejod
जवाब देंहटाएंsamajik vidroh ke ankuran me chupi jwala ki nayab abhivyakti, Aziz Junpuri ki "mukhagni 1,2 aur 3 me kuch aisa hi padha hai, KAVITA KI PRATYEK PANKTI JORDAR 'यूँ ही प्रतिशोध नहीं
जवाब देंहटाएंसुलगता किसी भी ह्रदय में
ये समाज में
रीतियों के नाम पर
होते ढकोसलों ने ही
उसे बनाया विद्रोही
आखिर कब तक
मूक दर्शक बन
भावनाओं का बलात्कार होने दे
आखिर कब तक नहीं वो
खोखली वर्जनाओं को तोड़े
जिसे देखा नहीं
जिसे जाना नहीं
कैसे उसके अस्तित्व को स्वीकारे
और यदि स्वीकार भी ले
तो क्या जरूरी है जैसा कहा गया है
वैसा मान भी ले
उसे अपने विवेक की तराजू पर ना तोले
कैसे रूढ़िवादी कुरीतियों के नाम पर
समाज को , उसके अंगों को
होम होने दे
किसी को तो जागना होगा
किसी को तो विष पीना होगा
यूँ ही कोई शंकर नहीं बनता
किसी को तो कलम उठानी होगी
itni sunder aur man ki baat kahti rachna ke liye badhai...
जवाब देंहटाएंबहुत खूब क्रांतियों से ही इतिहास बदले हैं सही सोच अपने अस्तित्व को साबित करने के लिए एक नन्हा पौधा भी आँधियों से बगावत करता है
जवाब देंहटाएंबेहद सशक्त लेखन ....
जवाब देंहटाएंसही है ! सोचना तो चाहिए ही ना ! ऐसे ही धीरे धीरे सब सोचने लगेंगे...तो क्रांति आ ही जाएगी...-बढ़िया प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएं~सादर !
बहुत सुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार !
मेरी नयी पोस्ट - नैतिकता और अपराध पर आप सादर आमंत्रित है
बहुत सुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार !
मेरी नयी पोस्ट - नैतिकता और अपराध पर आप सादर आमंत्रित है
लीक से हट कर लिखना ...हर कोई नहीं लिख सकता ..........(शायद मैं भी नहीं)
जवाब देंहटाएंआप ''इंडियन ब्लोगर्स वर्ल्ड ''की सदस्य हैं.आज आपका ब्लॉग इंडियन ब्लोगर्स वर्ल्ड के भारतीय रचना मंच पर सबमिट कर दिया गया है.अब आपकी हर नयी पोस्ट का लिंक यहाँ भी दिखाई देगा.इंडियन ब्लोगर्स वर्ल्ड पर आपका स्वागत है.
जवाब देंहटाएंइंडियन ब्लोगर्स वर्ल्ड
हर काल-गर्भ में ऐसे बीज पोषित होते रहते हैं..अच्छी लगी रचना..
जवाब देंहटाएंutam-***
जवाब देंहटाएंख़्याल अच्छे हैं।
जवाब देंहटाएंदिल मेन असर करती गंभीर रचना, बहुत खूब..
जवाब देंहटाएंक्रान्ति के बीज सरल नहीं जंक लेते |अच्छी और भाव पूर्ण रचना |
जवाब देंहटाएंआशा
A powerful composition indeed! Good to see your so many published books:)
जवाब देंहटाएंआपको दीपावली पर मंगल कामनाएं !
जवाब देंहटाएंअच्छी कविता |दीपावली की शुभकामनाएँ |
जवाब देंहटाएं"क्रांति के बीज यूँ ही नहीं पोषित होते हैं
जवाब देंहटाएंमिटकर ही इतिहास बना करते हैं"
नायाब प्रस्तुति - बधाई