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शनिवार, 22 दिसंबर 2012

ओ देश के कर्णधारों ……अब तो जागो

कुम्भकर्णी नींद में सोने वालों अब तो जागो
ओ देश के कर्णधारों ……अब तो जागो
क्या देश की आधी आबादी से तुम्हें सरोकार नहीं
क्या तुम्हारे घर में भी उनकी जगह नहीं
क्या तुम्हारा ज़मीर इतना सो गया है
जो तुम्हें दिखता ये जुल्म नहीं
क्या जरूरी है घटना का घटित होना
तुम्हारे घर में ही
क्या तभी जागेगी तुम्हारी अन्तरात्मा भी
क्या तभी संसद के गलियारों में
ये गूँज उठेगी
क्या उससे पहले ना किसी
बहन, बेटी या माँ की ना
कोई पुकार सुनेगी
अरे छोडो अब तो सारे बहानों को
अरे छोडो अब तो कानून बनाने के मुद्दों को
अरे छोडो अब तो मानवाधिकार आदि के ढकोसलों को
क्या जिस की इज़्ज़त तार तार हुई
जो मौत से दो चार हुयी
क्या वो मानवाधिकार के दायरे मे नही आती है
तो छोडो हर उस बहाने को
आज दिखा दो सारे देश को
हर अपराधी को
और आधी आबादी को
तुम में अभी कुछ संवेदना बाकी है
और करो उसे संगसार सरेआम
करो उन पर पत्थरों से वार सरेआम
हर आने जाने वाला एक पत्थर उठा सके
और अपनी बहन बेटी के नाम पर
उन दरिंदों को लहुलुहान कर सके
दो इस बार जनता को ये अधिकार
बस एक बार ये कदम तुम उठा लो
बस एक बार तुम अपने खोल से बाहर तो आ सको
फिर देखो दुनिया नतमस्तक हो जायेगी
तुम्हारे सिर्फ़ एक कदम से
आधी आबादी को ससम्मान जीने की
मोहलत मिल जायेगी …………
गर है सच्ची सहानुभूति तभी ज़ुबान खोलना
वरना झूठे दिखावे के लिये ना मूँह खोलना
क्योंकि
अब जनता सब जानती है ………बस इतना याद रखना
गर इस बार तुम चूक गये
बस इतना याद रखना
कहीं ऐसा ना हो अगला निशाना घर तुम्हारा ही हो ……………

14 टिप्‍पणियां:

  1. न जाने कैसी नींद है जो उठाने का नाम ही नहीं ले रही ....

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  2. इन कर्णधारों को बस कुर्सी से मतलब होता है...इस लिये जबतक जनता आवाज नही उठायेगी...और दबाव नही बनायेगी तब तक इनकी नींद नही टूटेगी...आज पूरे समाज को जागरूक होने की जरूरत है...यदि ये अब भी नही हुआ तो आने वाला समय इससे भी ज्यादा भयानक होने वाला है..

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  3. बेहतर लेखनी, बधाई !!

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  4. बेहद मार्मिक कविता, जो ह्रदय को स्पर्श कर जाये |

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  5. बहुत सुन्दर प्रस्तुति..!
    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (23-12-2012) के चर्चा मंच-1102 (महिला पर प्रभुत्व कायम) पर भी की गई है!
    सूचनार्थ!

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  6. देश के कर्णधार नहीं, सौदागर कहे तो ज्यादा सही है, इनका नम्बर आ जाना चाहिए।

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  7. किस-किस पर गुस्सा करें? कहते कुछ और करते कुछ हैं वे सब, और मौका मिलते ही एक हो जाते हैं ,आज से नहीं युग-युगों से!

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  8. इनका एक शख्त कदम स्त्रियों को खुलकर जीने में सहायक होगा...और ऐसे कुकर्म होंगे ही नहीं...पता नहीं कब क्या करेंगे ये कर्णधार...

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  9. इन समाज के ठेकेदारों ,कुर्सी के लोलुप ,इंसानों से किस चीज की उम्मीद कर सकते हैं ,ये तो गहरी नींद में सोये हैं कब और कैसे जागेंगे यही देखना है ,बहुत बढ़िया प्रस्तुति

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  10. अंतस को झकझोर देने वाली शानदार रचना..लेकिन नेताओं पे कोई फर्क कहाँ पड़ने वाला है...बहुत मोती खल है इनकी

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  11. जनता में विश्वास जगाओ,
    नवजीवन की आस जगाओ।

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  12. संवेदनहीन और निर्लज्ज हैं ये तथाकथित "कर्णधार "

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