नहीं है मेरी कविता का
कैनवस इतना विशाल
जिसमें सारे जहान का
दर्शन शास्त्र समा लूँ
कैसे सम्भोग से समाधि तक
पात्रों को ले जाऊँ
जहाँ विषमता का ज़हर
हर पात्र मे भरा है
कैसे प्रेम के अद्वैत को समझाऊँ
कैसे द्वैत को अद्वैत से
भिन्न दिखलाऊँ
नहीं है मेरी कविता का
कैनवस इतना विशाल
जिसमें सारी दुनिया की
फ़िलासफ़ी समा जाये
जहाँ जो नहीं है
उसको चित्रित कर दूँ
या फिर देखने वाले के
नज़रिये को ही बदल दूँ
नहीं है मेरी कविता का
कैनवस इतना विशाल
जिसे सिगरेट के धुँये
के छल्ले बना हवा में
उडा दिया जाये
और उसमें एक शख्स
उसकी वेदना
उसकी मौन अभिव्यक्ति को
व्यक्त किया जाये
चाहे वो उसकी
अभिव्यक्ति हो या नहीं
एक फ़िक्र की चादर को बुनकर
एक रिक्शाचालक के
या एक झोंपडी में रहने
वाले के दुख दर्द का
बयान कर खुद को
अग्रिम पंक्ति में
स्थापित करने का
नौस्टैलज़िया दिखा सकूँ
नहीं है मेरी कविता का
कैनवस इतना विशाल
जिसमें राजनीति के
समीकरणों को
दो दूनी आठ की
भाषा का केन्द्र बना लूँ
कुछ जोड - तोड की
नी्ति को अपना
अपने लिये एक
राजनीतिक मंच बना लूँ
और सराहना या पुरस्कारों
या सम्मानों का ढेर लगा लूँ
नहीं है मेरी कविता का
कैनवस इतना विशाल
जिसमें कहीं मोहब्बत के
तो कहीं नफ़रत के
तो कभी ख्वाबों के
शामियाने लगा लूँ
आखिर किस लिये ?
खुद को साबित करने के लिये
कब तक नकाब ओढे रखूँ
कब तक कविता की
सारी सीमायें तोडती रहूँ
हर वर्जना को
अस्वीकारती रहूँ
आखिर कब होगा अंत ?
आखिर कब होगा मुक्तिबोध ?
कविता का और खुद का
नहीं है मेरी कविता का
कैनवस इतना विशाल
जिसमे आकाशीय खगोलीय
ब्रह्मांडीय घटनाओं के
समावेश से पूर्णता मिल जाये
इतना आसान कहीं होता है
हर ब्लैक होल मे विचरण करना ?
ये ब्रह्मांड के अनन्त
अथाह परिवेश से गहरे
कविता के मर्म को जानना
क्या इतना आसान है
जो चंद लफ़्ज़ों का मोहताज़ हो
समीक्षक की दृष्टि भी तो
उसकी सीमाओं तक ही
सीमित है
मगर कविता असीम है
निस्सीम है
अनन्त है
एक छोर से अनन्त के
उस पार तक
जिस का सिरा
कोई नही पकड पाया
फिर कैसे बांधूँ
हर उपालम्भ को
कविता के दायरे में
जबकि जानती हूँ
नहीं है मेरी कविता का
कैनवस इतना विशाल
कैनवस इतना विशाल
जिसमें सारे जहान का
दर्शन शास्त्र समा लूँ
कैसे सम्भोग से समाधि तक
पात्रों को ले जाऊँ
जहाँ विषमता का ज़हर
हर पात्र मे भरा है
कैसे प्रेम के अद्वैत को समझाऊँ
कैसे द्वैत को अद्वैत से
भिन्न दिखलाऊँ
नहीं है मेरी कविता का
कैनवस इतना विशाल
जिसमें सारी दुनिया की
फ़िलासफ़ी समा जाये
जहाँ जो नहीं है
उसको चित्रित कर दूँ
या फिर देखने वाले के
नज़रिये को ही बदल दूँ
नहीं है मेरी कविता का
कैनवस इतना विशाल
जिसे सिगरेट के धुँये
के छल्ले बना हवा में
उडा दिया जाये
और उसमें एक शख्स
उसकी वेदना
उसकी मौन अभिव्यक्ति को
व्यक्त किया जाये
चाहे वो उसकी
अभिव्यक्ति हो या नहीं
एक फ़िक्र की चादर को बुनकर
एक रिक्शाचालक के
या एक झोंपडी में रहने
वाले के दुख दर्द का
बयान कर खुद को
अग्रिम पंक्ति में
स्थापित करने का
नौस्टैलज़िया दिखा सकूँ
नहीं है मेरी कविता का
कैनवस इतना विशाल
जिसमें राजनीति के
समीकरणों को
दो दूनी आठ की
भाषा का केन्द्र बना लूँ
कुछ जोड - तोड की
नी्ति को अपना
अपने लिये एक
राजनीतिक मंच बना लूँ
और सराहना या पुरस्कारों
या सम्मानों का ढेर लगा लूँ
नहीं है मेरी कविता का
कैनवस इतना विशाल
जिसमें कहीं मोहब्बत के
तो कहीं नफ़रत के
तो कभी ख्वाबों के
शामियाने लगा लूँ
आखिर किस लिये ?
खुद को साबित करने के लिये
कब तक नकाब ओढे रखूँ
कब तक कविता की
सारी सीमायें तोडती रहूँ
हर वर्जना को
अस्वीकारती रहूँ
आखिर कब होगा अंत ?
आखिर कब होगा मुक्तिबोध ?
कविता का और खुद का
नहीं है मेरी कविता का
कैनवस इतना विशाल
जिसमे आकाशीय खगोलीय
ब्रह्मांडीय घटनाओं के
समावेश से पूर्णता मिल जाये
इतना आसान कहीं होता है
हर ब्लैक होल मे विचरण करना ?
ये ब्रह्मांड के अनन्त
अथाह परिवेश से गहरे
कविता के मर्म को जानना
क्या इतना आसान है
जो चंद लफ़्ज़ों का मोहताज़ हो
समीक्षक की दृष्टि भी तो
उसकी सीमाओं तक ही
सीमित है
मगर कविता असीम है
निस्सीम है
अनन्त है
एक छोर से अनन्त के
उस पार तक
जिस का सिरा
कोई नही पकड पाया
फिर कैसे बांधूँ
हर उपालम्भ को
कविता के दायरे में
जबकि जानती हूँ
नहीं है मेरी कविता का
कैनवस इतना विशाल
सुन्दर भावनात्मक अभिव्यक्ति कलम आज भी उन्हीं की जय बोलेगी ...... आप भी जाने कई ब्लोगर्स भी फंस सकते हैं मानहानि में .......
जवाब देंहटाएंशानदार...
जवाब देंहटाएंकविता के कैनवास को भी असीम बनना होगा..प्रभावशाली रचना..
जवाब देंहटाएंआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार 22/1/13 को राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी आपका वहां स्वागत है
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति । पर कविता का केनवस विसाल नही तो फिर किसका । यह तो गागर में सागर बरने की क्षमता रखता है ।
जवाब देंहटाएंगहन गवेषणा के साथ प्रस्तुत की गई बढ़िया रचना!
जवाब देंहटाएंकविता प्रयास करती रहे..विस्तार पाती जाती है...
जवाब देंहटाएंमुझे तो अनंत तक पसरा लगता है आपकी कविता का कैनवास....और आपकी तूलिका इन्द्रधनुष के सारे रंग उतार देती हैं...और अनायास ही बन जाया करता है एक "मास्टर पीस"....( आपके पास तो अनेक हैं वंदना...)
जवाब देंहटाएंअनु
असीम कैनवास पर रची बुनी रचना ...
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा ....सब समेटती कविता, फिर कुछ बचा रहता .....
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भावनायें और शब्द भी .बेह्तरीन
जवाब देंहटाएंविश्व में वह कौन सीमा हीन है ,
जवाब देंहटाएंहो न जिसका खोज सीमा में मिला |---
-- द्वैत --अद्वैत एक दूसरे से भिन्न नहीं अपितु पूरक हैं ...
--कविता के लिए केनवस खोजने की आवश्यकता नहीं ..बस कोमल क्षणों में ह्रदय के भाव ओठों व कलम पर आजाने चाहिए...
सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएंजानदार सोच ...बहुत बढिया
जवाब देंहटाएंजरुरत ही कहाँ हैं किसी विशाल कैनवास की -जीवन का कोई एक क्षण भी कविता बन कर निःसृत हो लेता है!
जवाब देंहटाएंविशाल कैनवास , सुन्दर भावपूर्ण बधाई
जवाब देंहटाएंविशाल कैनवास , सुन्दर भावपूर्ण बधाई
जवाब देंहटाएंGhazab ki rachana ki hai aapne... waah! waah!!
जवाब देंहटाएंMahavir Uttranchali
कैनवास की विशालता में कोई कमी नहीं
जवाब देंहटाएंहार्दिक शुभकामनायें !
बेहतरीन कविता.
जवाब देंहटाएं