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शुक्रवार, 4 जनवरी 2013

गीता ………जो भाव बन उतर गयी



श्री मद भगवद गीता भाव पद्यानुवाद श्री कैलाश शर्मा जी द्वारा रचित काव्य संग्रह बेशक संग्रहणीय  है। बेहद सरल भाषा में भावों को संजोना और कथ्य से भी कोई समझौता न करना एक बेहद  दुष्कर कार्य है क्योंकि भावों में बहने के बाद कथ्य  पर फर्क पड़  जाता है मगर जब प्रभु की असीम कृपा होती है और भक्त जब भावों के अथाह सागर में गोते लगाने लगता है और जब उसका अंतर्घट  प्रेम रस से लबालब भर जाता है तो उसके जल का बरतना जरूरी हो जाता है क्योंकि अगर प्रयोग न किया जायेगा तो ख़राब हो जायेगा और यदि निरंतर प्रवाह बना रहेगा तो स्वच्छ बना रहेगा। नित नवीन बने रहने के लिए उसे सब में बाँटना पड़ता है और ये सब प्रभु प्रेरणा के बिना संभव ही नहीं . यूँ तो सभी दिन रात धार्मिक ग्रन्थ पढ़ते हैं , कथा कीर्तन सुनते हैं मगर सब में भावों का दरिया नहीं बहता . ये तो जो उस उच्च अवस्था को प्राप्त कर लेता है उसी की मूक वाणी में माँ सरस्वती का आह्वान होता है और जीव  वो सब कहने में सक्षम हो  जाता है जो वो स्वप्न में भी नहीं सोच सकता ........ये होता है भाव साम्राज्य .बस ऐसी ही परम कृपा जब कैलाश जी पर बरसी तो भावों ने पद्य रूप धारण कर लिया और सरल भाषा में गीता की कलि - कलि खोल दी . 

यदि मनुष्य अपने जीवन में श्री मद भगवद गीता के उपदेश उतार कर जीना शुरू कर दे तो उसका जीवन गृहस्थ में रहकर भी सन्यासी का हो सकता है क्योंकि ये कर्मयोग है और इसमें  शिक्षा कर्म की ही दी है क्योंकि इस पृथ्वी पर जो भी आया है उसे कर्म करना ही पड़ेगा वो उससे एक  क्षण भी विमुख नहीं रह सकता फिर चाहे सन्यासी ही क्यों न हो तो जब कर्म करना ही है तो सन्यास की क्या जरूरत , गृहस्थ में रहकर अपने कर्तव्यों को निरंतर करते हुए सिर्फ इतना ही तो करना है कि जो भी कर्म करो उन्हें प्रभु को समर्पित करते चलो बस यही तो मुख्य गीता ज्ञान है जिसे कैलाश जी ने अपनी भाव शैली में इतनी सरलता  से प्रस्तुत किया है जिसे यदि अल्पज्ञानी भी पढ़े तो समझ सके कि आखिर श्रीमद भगवद गीता कहना क्या चाहती है और यही किसी भी रचनाकार के लेखन का प्रमुख उद्देश्य होता है कि  जो उसने कहा वो बिना किसी प्रयास के दूसरे  के अंतस में उतर जाए  जिसका उन्होंने बेहद कुशलता से निर्वाह किया है . ईश्वर  की उन पर असीम अनुकम्पा है  जो नित्य निरंतर बनी रहे  इसी कामना के साथ कैलाश जी को हार्दिक बधाई देती हूँ .

जितना सुरुचिपूर्ण कैलाश जी का लेखन है उतना ही उम्दा प्रकाशन। हिन्द युग्म द्वारा प्रकाशित श्री मद भगवद गीता भाव पद्यानुवाद एक संग्रहनीय पुस्तक है . प्रिंटिंग और पेज बहुत  बढ़िया क्वालिटी के प्रयोग किये गये हैं साफ़ और सुन्दर शब्द मन मोहते हैं साथ ही कोई व्याकरणीय त्रुटि  न होने के कारण पुस्तक अपनी और आकर्षित करती है और ये किसी भी प्रकाशक के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण बात होती है .

यदि आप इस पुस्तक को प्राप्त करना चाहते हैं तो यहाँ से मंगा  सकते हैं 

हिन्द युग्म 
1, ,जिया सराय ,  हौज़ खास, नयी दिल्ली ..........110016


मोबाइल : 9873734046, 9968955908

ईमेल : sampadak@hindyugm.com

ये कैलाश जी का ईमेल है :

kcsharma.sharma@gmail.com

11 टिप्‍पणियां:

  1. मैं धीरे धीरे पढ़ रही हूँ ........... कृष्ण की बातों को समझने का एक सुगम माध्यम

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  2. श्रीमद्भगवद्गीता (भाव पद्यानुवाद) पर आपके विचारों के लिए बहुत बहुत आभार वंदना जी...

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  3. वाकई काबिल-ए-तारीफ काम किया है कैलाश जी ने..........बधाई उन्हें।

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  4. सचमुच कैलाश जी की लेखनी में सहज प्रवाह है और भगवदगीता तो अनुपम ग्रन्थ है ही, यानि सोने में सुहागा...बधाई इस पुस्तक के प्रकाशन पर तथा सुंदर समीक्षा के लिए भी...इसे अवश्य ही मंगवाना चाहूँगी.

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  5. सरल भाषा में गहन ज्ञान देने का कैलाशजी का प्रयास अप्रतिम है।

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  6. इस सराहनीय काम के लिये कैलाश जी को बधाई ।

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  7. bahatareen sir ji,"khuda ne aap ko mil ka patthr bana diya,aap ki kalm ne pady ki dariya baha diya....,bahut khoob sir ji,NEW POST-KHICHDI

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