उफ़ ! ना ना ना
मत कोशिश करना
निकालने या गिनने की
ये तो हसरतें हैं
जो उगी हैं वक्त की सांसों पर
खराश बनकर
क्या फ़र्क पडता है
चेहरा सुन्न हो या
गुलाब सा खिला
हमने तो मोहब्बत कर ली है
जलते आतिशदानों से
आइनों की जरूरत क्या अब
जलती आग के हिंडोलों पर पींगें भरने का अपना ही शऊर होता है
khoobsurat kavita
जवाब देंहटाएंकमाल का शऊर....
जवाब देंहटाएंहम्म ... और ये सबके बस की बात नहीं ...
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ...
जवाब देंहटाएंमुहब्बत की कैसी इन्तहा ...
कोई हद नहीं है मुहब्बत की ये सच है ...
बेहद सुन्दर है।
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंबहुत ही गहरी बात !!
शुभकामनायें
बढ़िया है आदरेया- -
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें आपको-
hasraten jeeveet rahen..
जवाब देंहटाएंbahut khub...
अरे वाह!
जवाब देंहटाएंकम शब्दों में बहुत कुछ कह दिया आपने तो!
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जवाब देंहटाएंधन्यवाद
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वाह...बहुत खूब
जवाब देंहटाएंमत कोशिश करना
जवाब देंहटाएंनिकालने या गिनने की
ये तो हसरतें हैं
जो उगी हैं वक्त की सांसों पर
खराश बनकर
....कितना कठिन है यह कार्य...बहुत संवेदनशील अभिव्यक्ति...
बस अब बढ़ने के बाद कदम रुकते कहाँ ....
जवाब देंहटाएंलाजवाब रचना !
गहरी बात
जवाब देंहटाएंक्या बात है वंदना जी...ठीक ही है..ये इश्क नहीं आसान...... एक आग का दरिया है और...
जवाब देंहटाएंहाँ, प्रेम करना आग में जलने से क्या कम है?
जवाब देंहटाएंसिर्फ एक शब्द -- गज़ब !
जवाब देंहटाएंbehatareen
जवाब देंहटाएंगहन अनुभूति !
जवाब देंहटाएंसुंदर कविता.
जवाब देंहटाएंबहुत संवेदनशील शऊर....
जवाब देंहटाएंमुहब्बत ऐसी होती है..!
जवाब देंहटाएंवाह . एक अरसे के बाद इतनी जानदार नज़्म पढ़ी ...कमाल के अशआर हैं ...दिल की बात सीधे दिल तक पहुंची।
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