ना लीक पर
और ना लीक से हटकर
कुछ भी तो नहीं रहा पास मेरे
ना कुछ कहना
ना कुछ सुनना
एक अर्धविक्षिप्त सी तन्द्रा में हूँ
किसी स्वर्णिम युग की दरकार नहीं
और ना ही किसी जयघोष की चाह
खुश हूँ अपने पातालों में
फिर भी कशमकश के खेत
कैसे लहलहा रहे हैं ........
आदिम वर्ग कितना खुश है
और मेरी जड़ सोच के समूह कितने कुंठित
फिर भी जिह्वया लपलपा रही है
ज्यों मनचाही पतंग काटी हो
ये सोच पर पड़े पालों पर
ना जाने कैसे इतने सरकंडे उग आये हैं
कि कितना दुत्कारो
कितना समझाओ
मगर आकाश बेल से बढे जा रहे हैं
अब जड़ों को चाहे कितना खोदो
बीज कब और कहाँ रोपित हुआ था
उसका न कोई अवशेष मिलेगा
जीना होगा तुम्हें ............हाँ ऐसे ही
इसी अधरंग अवस्था में
क्योंकि
ना तुम लीक पर हो
ना लीक से हटकर हो
तुम उस दुधारी तलवार पर हो
जिसके दोनों तरफ तुम्हें ही कटना है
बस निर्णय करो ..........किस तरफ से ?
इतिहास की किताब का महज एक पन्ना भर हो तुम
क्योंकि
संस्कृति और संस्कार तो सभ्यताओं संग ही ज़मींदोज़ हो चुके हैं
अब पुरातत्वविदों के लिए महज शोध का विषय हो तुम ..............
सार्थकता लिये सशक्त प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसादर
सुन्दर अभिव्यक्ति..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति , आज जरूरत है ऐसे ही अभिव्यक्ति की .
जवाब देंहटाएंआज सुधार लें, इतिहास पर गर्व करने का वातावरण बन जायेगा।
जवाब देंहटाएंविचारणीय प्रश्न ,सार्थक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंlatest post बे-शरम दरिंदें !
latest post सजा कैसा हो ?
सटीक! बस तुम्हें ही कटना है ..निर्णय करो ..किस तरफ से ........
जवाब देंहटाएंatyant sarthak prasrtuti
जवाब देंहटाएंबहुत भावपूर्ण लेखन। हार्दिक बधाई
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है..........
विचारणीय भाव.....
जवाब देंहटाएंना लीक पर
जवाब देंहटाएंऔर ना लीक से हटकर
कुछ भी तो नहीं रहा पास मेरे
ना कुछ कहना
ना कुछ सुनना
कभी कभी ऐसी भाव दशा से अनूठी सूझ मिलती है..सराहनीय प्रस्तुति..
मौजूदा हालात को लिखा है .. आक्रोश लिखा है ...
जवाब देंहटाएंi must say shabdheen kar diya aapne.....behad khoobsoorat rachna.
जवाब देंहटाएंबहुत सही चिंतन ...
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ...ज़ोरदार अभिव्यक्ति
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