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शुक्रवार, 7 जून 2013

कभी तो लौटती डाक से जवाब आयेगा

लिखी रोज पाती तुम्हें
और फिर इंतज़ार की सीलन को
गले लगाकर बैठ गयी
इस चाह में
शायद
कभी तो लौटती डाक से जवाब आयेगा
मगर ये हकीकत भूल गयी थी
अब लिफ़ाफ़ों अन्तर्देशीय पत्रों पर लिखी इबारतों का जवाब देने का चलन नहीं रहा………
और मैं ना जाने कब से
अब भी आदिम युग की तस्वीर को सहला रही हूँ
सहेजे बैठी हूँ धरोहर के रूप में
क्योंकि ………जानती हूँ
युगों के बदलने से मोहब्बत के फ़लसफ़े नहीं बदला करते
आयेगा …………जवाब जरूर आयेगा
फिर चाहे मेरी उम्मीद के बादल को बरसने के लिये
किसी भी युग के आखिरी छोर तक इंतज़ार क्यों ना करना पडे
क्योंकि प्रेम के विस्थापित तो कहीं स्थापित हो ही नहीं पाते

16 टिप्‍पणियां:

  1. सच युग बदलने से प्रेम का फलसफा नहीं बदलता ...चाहे कितना भी परिवर्तन आ जाय .......बहुत सुन्दर

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  2. बहुत सुंदर रचना
    बढिया भाव

    पर एक बात बताऊं
    ये पुरानी बातें हैं, दुनिया बहुत आगे निकल चुकी है।

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  3. आपको यह बताते हुए हर्ष हो रहा है के आपकी यह विशेष रचना को आदर प्रदान करने हेतु हमने इसे आज (शुक्रवार, ७ जून, २०१३) के ब्लॉग बुलेटिन - घुंघरू पर स्थान दिया है | बहुत बहुत बधाई |

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  4. आएगी जरुर चिट्ठी मेरे नाम की...सुंदर भाव!

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  5. बिलकुल जवाब आयेगा ... अंतर्देशीय पत्र में नहीं लिफाफे में आएगा :):)

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  6. बहुत ही सुंदर एवं सार्थक रचना ...

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  7. प्रेम के विस्थापित तो कहीं स्थापित हो ही नहीं पाते :)
    adbhut...

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  8. सुन्दर प्रस्तुति..।
    कुदरत के घर देर है अंधेर नहीं है...
    ...
    साझा करने के लिए आभार...!

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  9. कितना भी बदल जाए युग ,मन के भीतर का आदिम संस्कार समय-समय पर जाग ही जाता है !

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  10. सुंदर रचना
    बढिया भाव जज्बात का फलसफा

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  11. युग भले ही बदल जाए ,प्रेम के मामले में मन जो कहे वही सही है.
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  12. बहुत ही सुन्दर भाव को समेटे, एक उत्कृष्ट रचना.

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  13. बहुत सुंदर....फलसफे नहीं बदलते..युग बदल जाता है

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अपने विचारो से हमे अवगत कराये……………… …आपके विचार हमारे प्रेरणा स्त्रोत हैं ………………………शुक्रिया