कुछ दिल की थीं अपनी रवायतें
कुछ ज़िन्दगी से थीं शिकायतें
चल तो दिये थे सफ़र में मगर
कुछ रुसवाइयों की थीं अपनी इनायतें
( मुकम्मल ज़िन्दगी और मुकम्मल जहान की खुशफ़हमियाँ ही शायद ज़िन्दगी गुजारने का ज़रिया हैं )
वरना
किसे मिली जमीं किसे मिला आसमाँ
हर आदम का नसीबा है इक दूजे से जुदा
ना होता कोई सडक की खाक कोई महलों का बादशाह
इक दिन पल लग्न मुहुर्त में जिनका था जन्म हुआ
ना बैसाखियों के दिन होते ना पलस्तरों की रातें
जो कर्म की भट्टी में नसीब के दाने जल जाते
फिर गरीब के झोंपड़ में भी नीलकलम खिल जाते
जो ज़िन्दगी की स्लेट से नसीब के खेल मिट जाते
फिर जात पाँत से ऊपर दिल के लेख लिखे जाते
मिलन बिछोह के सारे तटबंध ही मिट जाते
यूँ आसमान के सीने पर चहलकदमी कर पाते
जो हाथ ना भी पकड़ते मगर साथ तो चल पाते
( ख्यालों की दस्तक बेवजह भी हुआ करती है ..........यूँ ही भी )
आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति शुक्रवारीय चर्चा मंच पर ।।
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना ,
जवाब देंहटाएंवाह वाह क्या बात बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंBahut khoob
जवाब देंहटाएंBahut khoob
जवाब देंहटाएंआपकी यह रचना दिनांक 19.07.2013 को http://blogprasaran.blogspot.in/ पर लिंक की गयी है। कृपया इसे देखें और अपने सुझाव दें।
जवाब देंहटाएंहर एक को सब कुछ कहाँ मिलता है ... सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंमिली है आज तक यहाँ एक के हाथ से दुजे की कलाई...
जवाब देंहटाएंदिल पानी सा साफ हो..
ना हो दुध अलग, ना अलग मलाई...
भले हो सोने का पेन......
चाहे मिले चांदी की स्याही....
जब भी लिखे मेरी कलम...
हर सही बंदे के लिए लिखे बस "भाई"..
लिखे बस "भाई"...
कैसे गुज़रती रात अँधेरा ग़दर में था
जवाब देंहटाएंमेरे उफक का चाँद तो तेरे शहर में था
मैंने गुनाह करके आज तौबा कर तो ली
पर प्यार तेरा मेरी ख़ता के असर में था
खुद को बचाती गर तो बचाती मैं किस तरह
जितना भी ऐब था वो मेरे मोतबर में था
मैंने ग़ज़ल के पेंच -ओ-ख़म को जान लिया है
वो दर्द लाज़मी था जो मेरे जिगर में था
जब से गया है हाथ ख़ुदारा छुडा के तू
कुछ भी मज़ा न अब कहीं मेरे सफ़र में था
जोश-ओ-जुनूँ संभालती तो किस तरह 'अमूल'
मेरा असीम मेरा ख़ुदा एक घर में था........
चाँद भी देखा फूल भी देखा
जवाब देंहटाएंबादल बिजली तितली जुगनूं कोई नहीं है ऐसा
तेरा हुस्न है जैसा...
मेरी निगाहों ने ये कैसा ख्वाब देखा है
ज़मीं पे चलता हुआ माहताब देखा है
मेरी आँखों ने चुना है तुझको दुनिया देखकर
किसका चेहरा अब मैं देखूं तेरा चेहरा देखकर
मेरी आँखों ने ...
नींद भी देखी ख्वाब भी देखा
चूड़ी बिंदिया दर्पण खुश्बू कोई नहीं है ऐसा
तेरा प्यार है जैसा
मेरी आँखों ने ...
रंग भी देखा रूप भी देखा
रस्ता मंज़िल साहिल महफ़िल कोई नहीं है ऐसा
तेरा साथ है जैसा
मेरी आँखों ने ...
बहुत खूबसूरत हैं आँखें तुम्हारी
बना दीजिए इनको किस्मत हमारी
उसे और क्या चाहिये ज़िंदगी में
जिसे मिल गई है मुहब्बत तुम्हारी,.......
बेहद सुन्दर रचना वंदना जी आभार।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
जवाब देंहटाएंबिन पूछे,बिन बताए, जिसके हिस्से जो आ जाए!
जवाब देंहटाएंहाँ ,सिर्फ़ अनुमान ही कर सकते हैं कि ऐसा होता तो कितना अच्छा होता,पर क्या पता तब मन वैसा होता कि नहीं होता !
जवाब देंहटाएंसंसार तो इसी का नाम है..अगर सब कुछ ठीक हो यहाँ तो भगवान को कोई याद ही न करे...
जवाब देंहटाएंउम्दा ….
जवाब देंहटाएंबहुत खूब....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना....
जवाब देंहटाएंwah wah wah.....adbhut shabd sanyojan
जवाब देंहटाएंbahut khub mam.......
जवाब देंहटाएंबेहतरीन बहुत खुबसूरत!!
जवाब देंहटाएंबेहतरीन बहुत खुबसूरत!!
जवाब देंहटाएंबेहतरीन बहुत खुबसूरत!!
जवाब देंहटाएंneelkalam nahi hota neelkamal hota hai.
जवाब देंहटाएंNeelkalam nahi hota Neelkamal hota hai
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