अब नहीं कसमसाती
एक गहन चुप्पी में
जज़्ब हो गयी है शायद
रेशम के थानों में
अब बल नहीं पड़ा करते
वक्त की फिसलन में
ज़मींदोज़ हो गए हैं शायद
बिखरी हुयी कड़ियाँ
अब नहीं सिमटतीं यादों में
काफी के एक घूँट संग
जिगर में उतर गए हैं शायद
बेतरतीब ख़बरों के
अफ़साने नहीं छपा करते
अख़बार की कतरनों में
नेस्तनाबूद हो गए हैं शायद
(खुद से खुद को हारती .......... एक स्त्री अपनी चुप से लड रही है )
Bahut Sundar, Lazabaab !
जवाब देंहटाएंBahut Sundar, Lazabaab !
जवाब देंहटाएंसब को,
जवाब देंहटाएंहर क्षण,
अपने से ही जूझना होता है,
क्या करें,
क्या न करें,
स्वयं से पूछना होता है।
इस स्त्री को हारने नहीं देना है ....
जवाब देंहटाएंबहुत गहरी बात ...दिल को छू गई रचना ...बहुत बहुत
जवाब देंहटाएंनमस्कार मित्र आपका ब्लॉग पढ़ा काफी अच्छा लिखते हो। हमने एक सामूहिक लेखन का ब्लॉग बनाया है। जिसे हम आप जैसे अनुभवी लेखकों के साथ मिलकर चलाना चाहते है। आप हमारे ब्लॉग के लेखक बने और अपनी ब्लॉग्गिंग को एक नया आयाम दें। हमे आशा है कि आप अवश्य ऐसा करेंगे। हमसे जुड़ने के लिए हमे कॉल करे 09058393330
जवाब देंहटाएंहमारा ब्लॉग है www.naadanblogger.blogspot.in
बहुत बढिया...
जवाब देंहटाएंgood
जवाब देंहटाएंnice poem....
rosy
अब जब यहाँ असमवेदानाओं की हद नहीं रही तो भला एक संवेदन शील इंसान या स्त्री कब तक इस भावना से वंचित रह सकते है यही हाल रहा तो वो दिन दूर नहीं जब शायद एक भी संवेदनशील इंसान न हो इस धरती पर और किसी को किसी भी बात का कोई असर ही न हो गहन भाव अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंदिल को छूती बहुत भावपूर्ण प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंइस मौन में छिपा बहुत शोर है
जवाब देंहटाएं