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रविवार, 20 अक्टूबर 2013

खनखनाहट की पाजेब

तुम्हारी हँसी में 
सुर है 
लय है 
ताल है 
रिदम है 
एक संगीत है 
मानो 
मंदिर में घंटियाँ बज उठी हों 
और 
आराधना पूरी हो गयी हो 
जब कहा उसने 
हँसी की खिलखिलाहट में 
हँसी के चौबारों पर सैंकडों गुलाब खिल उठे 
ये उसके सुनने की नफ़ासत थी 
या कोई ख्वाब सुनहरा परोसा था उसने 

खनखनाहट की पाजेब उम्र की बाराहदरी में दूर तक घुँघरू छनकाती  रही ……… 




8 टिप्‍पणियां:

  1. एक मदमाती आनंदानुभूति.अच्छी रचना है.

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज सोमवार (21-10-2013)
    पिया से गुज़ारिश :चर्चामंच 1405 में "मयंक का कोना"
    पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. मन में सरलता हो तो हंसी ऐसी हही होती है, जैसे कहीं सितार बज उठे।

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  4. सुंदर रचना !
    दीपपर्व मंगलमय हो !
    आभार !

    जवाब देंहटाएं

अपने विचारो से हमे अवगत कराये……………… …आपके विचार हमारे प्रेरणा स्त्रोत हैं ………………………शुक्रिया