किसने कहा नहीं हूँ
मैं तो वहीं हूँ हर पल
जब जब तुमने
अपने पुरज़ोर ख्यालों में
मेरा आलिंगन किया ,
मुझे पुकारा और
समय के सीने पर
एक बोसा लिया
कब और कहाँ दूर हूँ तुमसे
सिर्फ़ शरीरों का होना ही तो होना नहीं होता जानाँ ………
जब ख्यालों की सरजमीं पर
यादों की कोंपलें खिलखिलाती हों ,
हर लम्हे में एक तस्वीर मुस्काती हो,
हर ज़र्रे ज़र्रे में महबूब की झलक नज़र आती हो
वहाँ कौन किससे कब जुदा हुआ है
ये तो बस अक्सों का परावर्तन हुआ है
तुममें समायी मैं
तुम्हारी आँखों से देखती हूँ कायनात के रंगों को ,
तुममें समायी मैं
साँस लेती हूँ तुम्हारे ख्यालों के आवागमन से ,
तुममें समायी मैं
धडकती हूँ बिना दिल के भी तुम्हारे रोम रोम में
तो कहो भला कहाँ हूँ मैं जुदा ………तुमसे !
अब कभी मत कहना ………सब कुछ है …बस तुम ही नही हो कहीं
क्योंकि
तुम्हारा होना गवाह है मेरे होने का …………….
मोहब्बत में विरह की वेदी पर आस पास गिरी समिधा को कभी देखना गौर से…….
सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंसाझा करने के लिए धन्यवाद।
आपकी यह पोस्ट आज के २७ अक्टूबर, २०१३) ब्लॉग बुलेटिन - पर प्रस्तुत की जा रही है | बधाई
जवाब देंहटाएंगहन अवलोकन..
जवाब देंहटाएंbahut umdaa
जवाब देंहटाएंbahut umdaa
जवाब देंहटाएंsundar
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