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शुक्रवार, 27 जून 2014

मेरा हिस्सा

क्योंकि 
उम्र भर सिर्फ 
बँटती ही रही 
कटती ही रही 
छँटती ही रही 
पर कभी ना पाया पूरा हिस्सा 


हर बार जरूरी नहीं होता भावनाओं में कविता का होना 
क्योंकि 
आखिर हूँ तो स्त्री ही ना 
इसलिए 
आखिर कब तक ना चाहूँ अपना हिस्सा 

मुकम्मलता का अहसास सभी के लिए जरूरी होता है 
फिर ज़िन्दगी एक बार ही मिला करती है 
और जीना चाहती हूँ मैं भी उसे सम्पूर्णता के साथ 
इसलिए आज कहती हूँ 
मेरे हिस्से में से 
ले लो सब अपना हिस्सा 
ताकि जब समेटूँ खुद को 
तो सुकूँ रहे
बचा रहा कुछ मेरा हिस्सा 

8 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना शनिवार 28 जून 2014 को लिंक की जाएगी...............
    http://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस' प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (28-06-2014) को "ये कौन बोल रहा है ख़ुदा के लहजे में... " (चर्चा मंच 1658) पर भी होगी!
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुन्दर और प्रभावी रचना..

    जवाब देंहटाएं

अपने विचारो से हमे अवगत कराये……………… …आपके विचार हमारे प्रेरणा स्त्रोत हैं ………………………शुक्रिया