क्योंकि
उम्र भर सिर्फ
बँटती ही रही
कटती ही रही
छँटती ही रही
पर कभी ना पाया पूरा हिस्सा
हर बार जरूरी नहीं होता भावनाओं में कविता का होना
क्योंकि
आखिर हूँ तो स्त्री ही ना
इसलिए
आखिर कब तक ना चाहूँ अपना हिस्सा
मुकम्मलता का अहसास सभी के लिए जरूरी होता है
फिर ज़िन्दगी एक बार ही मिला करती है
और जीना चाहती हूँ मैं भी उसे सम्पूर्णता के साथ
इसलिए आज कहती हूँ
मेरे हिस्से में से
ले लो सब अपना हिस्सा
ताकि जब समेटूँ खुद को
तो सुकूँ रहे
बचा रहा कुछ मेरा हिस्सा
आपकी लिखी रचना शनिवार 28 जून 2014 को लिंक की जाएगी...............
जवाब देंहटाएंhttp://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस' प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (28-06-2014) को "ये कौन बोल रहा है ख़ुदा के लहजे में... " (चर्चा मंच 1658) पर भी होगी!
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंसुन्दर अभिव्यक्ति |
जवाब देंहटाएंउम्मीदों की डोली !
बहुत सुन्दर और प्रभावी रचना..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंdil ko chhoo gaye ye abhivyakti. vandana kaisi hain aap.
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