मित्रों
इस बार के 'हिंदी चेतना' का अक्टूबर से दिसम्बर 'कथा - आलोचना विशेषांक' में मेरे द्वारा लिखी गयी हिंदी चेतना पत्रिका की समीक्षा (पेज ७ ) और एक आलोचनात्मक पाठकीय दृष्टिकोण ( ८९-९० पेज ) छपा है।
सुशील सिद्धार्थ जी के संपादन में निकला ये विशेषांक उम्मीद से बढ़कर हैं . सुशील जी की मेहनत साफ़ परिलक्षित हो रही है। सभी जाने माने प्रतिष्ठित साहित्यकारों की उपस्थिति और उनकी कथा कहानी पर आलोचनात्मक प्रतिक्रिया पाठक और लेखक के साथ आलोचक के दृष्टिकोण को तो एक पहचान दिलाएगी ही साथ ही लेखक और आलोचक के बीच की खायी को भी पाटने की कोशिश करेगी मुझे ऐसी उम्मीद है।
सुशील सिद्धार्थ जी द्वारा लिखा सम्पादकीय भी इसी दृष्टि को रेखांकित करता है। क्योंकि अभी इसका इ - वर्जन ही उपलब्ध हुआ है इसलिए पूरा एकदम पढ़ना संभव नहीं मगर जो एक दृष्टि डाली तो लगा ये पत्रिका तो सबके पास होनी चाहिए। एक ही जगह सभी विचारों से रु-ब-रु होने का शायद इससे अच्छा मौका जल्दी न मिले। सुशील सिद्धार्थ जी , पंकज सुबीर जी और सुधा ओम ढींगरा जी की पूरी टीम बधाई की पात्र है।
जो मित्र पढ़ना चाहें इस लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं :
http://www.vibhom.com/pdf/oct_dec_2014.pdf
साधुवाद !एक अच्छी कहानी !
जवाब देंहटाएंसाधुवाद !
जवाब देंहटाएंकहानी की कहानी.
जवाब देंहटाएंअच्छा प्रयोग
हार्दिक बधाई !
जवाब देंहटाएंहार्दिक बधाई !
जवाब देंहटाएंAapko hardik badhaayi ..sunder kahani !!
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